
नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब से सत्ता में आए हैं, वह उनके एजेंडे में सबसे ऊपर मेक इन इंडिया का नारा रहा है। लेकिन अगर बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट की बात करें तो इसमें भारतीय कंपनियां पिछड़ती हुई नजर आ रही हैं। इसे मोदी सरकार के मेक इन इंडिया नीति के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। इस प्रोजेक्ट के अधिकतर ठेके जापानी कंपनियों को मिली है। सूत्रों के मुताबिक करीब 11 लाख करोड़ रुपए के बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट के लिए कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने में जापान की स्टील और इंजीनियरिंग की कंपनियां सबसे आगे चल रही हैं।
पीएमओ ने नहीं की कोई टिप्पणी
गौरतलब है कि मोदी सरकार को 2019 में आम चुनाव में जाना है। फिलहाल सरकार पर देश में करोड़ों बेरोजगार युवाओं के लिए नई नौकरियों के सृजन का बेहद दबाव है। ऐसे में बुलेट ट्रेन के प्रोजेक्ट के अधिकतर प्रोजेक्ट का ठेका जापानी कंपनियों मिलना मोदी सरकार की मेक इन इंडिया नीति पर सवाल उठाता है। इससे एक बार फिर मोदी सरकार के आलोचकों को यह कहने का मौका मिल गया है कि बुलेट ट्रेन जैसे प्रोजेक्ट्स से पैसों की बर्बादी हो रही है और इसका फायदा भी न भारतीय युवाओं को मिल पर रहा है और न ही भारतीय कंपनियों को। इसका इससे कहीं अधिक बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता था।
मामले की जानकारी रखने वाले 5 सूत्रों ने बताया कि इस प्रोजेक्ट की सबसे अधिक फंडिंग जापान कर रहा है और रेल लाइन के लिए कम से कम 70 फीसदी स्टील की सप्लाई भी जापानी कंपनियों की तरफ से ही की जा रही है। इस मामले पर पीएमओ कोई भी टिप्पणी करने से मना कर दिया। नाम न बताने की शर्त पर जापान के परिवहन मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि दोनों देश फिलहाल जरूरी सामान की सप्लाई पर बातचीत कर रहे हैं। जुलाई तक पूरी योजना की जानकारी सामने आने की उम्मीद है।
मेक इन इंडिया पर जोर देने की थी बात
सितंबर 2017 में भारत और जापान के बीच बुलेट ट्रेन को लेकर जब एग्रीमेंट हुआ था तो उसमें ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देने के और ‘ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी’ के प्रावधान को शामिल किया गया था। मोदी सरकार का मानना था कि तकनीक के हस्तांतरण के चलते भारत में मैन्युफैक्चरिंग सुविधाएं स्थापित की जा सकेंगी और इससे देश में नौकरियों के अवसर भी पैदा होंगे और तकनीक के लिहाज से भी भारत समृद्ध हो सकेगा।
Published on:
18 Jan 2018 06:41 pm
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