
मुस्तफाबाद के जग्गेरी लाल से पत्रिका की एक्सक्लूसिव चर्चा।
अनुराग मिश्रा/पत्रिका एक्सक्लूसिव
नई दिल्ली। दिल्ली की सांप्रदायिक हिंसा ने गहरे जख्म दिए हैं। देशवासियों को एक दूसरे का खून का प्यासा देख आजादी की लड़ाई देखने वाले जग्गेरीलाल की आंखों से आंसू बह निकले। भरे गले से उन्होंने कहा कि आज नेता और दोनों समुदाय के लोग अपनी तरक्की की बात छोड़ कर आपस में लड़ रहे हैं।
दिल्ली हिंसा से प्रभावित मुस्तफाबाद इलाके में रहने वाले 93 वर्षीय जग्गेरी लाल ने अपने होश में आजादी की लड़ाई देखी है। उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर और दूसरे इलाकों में अंग्रेजों के खिलाफ चल रहे स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया है। आज दिल्ली की हिंसा देख जग्गेरीलाल बेहद दुखी है।
उनका कहना है कि दंगों में अपने ही देश के लोगों को मरते देख आंखों में आंसू आ जाते हैं। जग्गेरीलाल ने ‘पत्रिका’ से कहा कि अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा लेकर हमने उन्हें 1947 में बाहर खदेड़ दिया, लेकिन उसके बाद विभाजन के दौरान हुए फसाद ने गहरा जख्म दिया। यह जख्म भरने लगे तो 1984 के दंगों ने दिल्ली को रुला दिया।
उन्होंने आगे कहा कि जैसे-तैसे दिल्ली के लोग इन दंगे को भी भूलने लगे थे, लेकिन अब उत्तर पूर्वी दिल्ली में दंगे हुए उसने तो हमें दुखी और परेशान कर दिया है। इस दंगे की वजह से वह पिछले 4 दिनों से घर से बाहर नहीं निकले है।
जग्गेरीलाल ने कहा कि लोग रोजी रोटी और तरक्की बात करें तो समझ में आता है। देश को आजादी इसलिए नहीं मिली थी कि आपस में एक दूसरे का खून बहाए। 93 साल के लाल जी की आंखें अपनों को ही अपने ही देश की धरती पर खून खराबे में मरते देख कर लगभग पथरा गई है।
‘पत्रिका’ से बातचीत करते-करते वह बेहद भावुक हुए और कहा कि कभी अपने ही लोगों को लंबरदार बनाकर अंग्रेज भी अत्याचार करवाते थे। आज इस भूमिका में कुछ नेता और समाज के कुछ लोग आ गए हैं।
Updated on:
01 Mar 2020 08:14 pm
Published on:
01 Mar 2020 07:45 pm
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