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Patrika Explainer: ‘भारत में दुनिया का पहला DNA वैक्सीन जायडस कैडिला’, जानिए ZyCoV-D कैसे करता है काम

locationनई दिल्लीPublished: Jul 21, 2021 04:51:12 pm

Submitted by:

Anil Kumar

गुजरात के अहमदाबाद स्थित फार्मास्यूटिकल कंपनी Zydus Cadila द्वारा विकसित किए जा रहे ZyCoV-D COVID-19 वैक्सीन के तीसरे चरण के परीक्षण समाप्त हो चुके हैं और सितंबर-अक्टूबर तक बाजार में उपलब्ध होने की संभावना है।

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Patrika Explainer: ‘Zydus Cadila World’s first DNA Vaccine In India’, Know How ZyCoV-D Shot Works

नई दिल्ली। देश में कोरोना महामारी से निपटने के लिए तेजी से टीकाकरण अभियान को आगे बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। भारत में अभी तीन वैक्सीन (कोविशील्ड, कोवैक्सीन और स्पुतनिक-वी) का टीका लगाया जा रहा है। लेकिन अब भारत को एक और वैक्सीन मिलने वाला है। इससे देश में टीकाकरण अभियान में तेजी आएगी। यह स्वदेशी वैक्सीन है। सबसे खास बात कि यह दुनिया की पहली DNA आधारित कोविड वैक्सीन होगी।

गुजरात के अहमदाबाद स्थित फार्मास्यूटिकल कंपनी Zydus Cadila द्वारा विकसित किए जा रहे ZyCoV-D COVID-19 वैक्सीन के तीसरे चरण के परीक्षण समाप्त हो चुके हैं और सितंबर-अक्टूबर तक बाजार में उपलब्ध होने की संभावना है।

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राज्यसभा में जवाब देते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा कि जायडस कैडिला का ZyCoV-D भारत की पहली डीएनए वैक्सीन होगी और 7 करोड़ खुराक जल्द उपलब्ध होने की उम्मीद है। उन्होंने आगे बताया कि भारत दुनिया का पहला ऐसा देश बनने वाला है, जिसने कोविड के खिलाफ डीएनए वैक्सीन तैयार की है।

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कब तक उपलब्ध होगी वैक्सीन?

स्वास्थ्य मंत्री ने सदन में बताया कि सितंबर-अक्टूबर तक बाजार में यह वैक्सीन उपलब्ध हो जाएगी। वहीं, इस महीने की शुरुआत में Zydus Cadila ने कहा था कि उसने दुनिया के पहले प्लास्मिड डीएनए वैक्सीन के लिए ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) से आपातकालीन इस्तेमाल के लिए प्राधिकरण से इजाजत मांगी थी।

इस वैक्सीन के तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल के प्रारंभिक परिणामों से पता चला कि इसकी प्रभावशीलता दर 66.6 प्रतिशत है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा ”कंपनी ने घोषणा की कि परीक्षण के दौरान टीका लेने वाले किसी भी वॉलेंटियर्स (स्वयंसेवक) के गंभीर रूस से बीमार होने या उसकी मृत्यु की रिपोर्ट सामने नहीं आई। इससे ये साफ है कि ZyCoV-D कोवि़-19 के खिलाफ प्रभावी तौर पर काम करने वाला दुनिया का पहला डीएनए-आधारित टीका बन गया”।

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तीसरे चरण का परीक्षण देश भर में 50 साइटों पर किया गया था और इसमें 28000 से अधिक वॉलेंटियर्स शामिल थे। कंपनी ने कहा कि यह वैक्सीन डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ अधिक प्रभावकारी है। इसके अलावा, 12-18 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के बीच भी टीके का परीक्षण किया गया और इसे सुरक्षित पाया गया।

रिपोर्ट के अनुसार, दवा नियामक ने कंपनी से अतिरिक्त डेटा मांगा है और एक बार संतोषजनक ढंग से समीक्षा किए जाने के बाद अगस्त में ZyCoV-D को जारी करने की मंजूरी दे सकता है। अनुमति मिलने के बाद यह भारत बायोटेक के कोवैक्सिन के बाद दूसरा स्वदेश निर्मित वैक्सीन बन जाएगा। कंपनी ने कहा था कि वह सालाना अपने टीके की 10-12 करोड़ खुराक बनाने की योजना बना रही है।

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ZyCoV-D किस तरह करता है काम?

Zydus Cadila की ZyCoV-D वैक्सीन एक डीएनए प्लास्मिड वैक्सीन है, जो एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को प्रोत्साहित करने के लिए वायरस में आनुवंशिक कोड डीएनए या आरएनए के एक हिस्से का उपयोग करता है। जेनेटिक टीके RNA पर आधारित हो सकते हैं- जैसे फाइजर और मॉडर्न mRNA शॉट्स अमरीका में इस्तेमाल किए जा रहे हैं- या DNA।

यूएस-बेस थिंक टैंक मिलकेन इंस्टीट्यूट के अनुसार, “डीएनए-आधारित टीके टीकाकरण वाले लोगों में इंजेक्शन के लिए वायरल जीन (एस) के आनुवंशिक रूप से इंजीनियर ब्लूप्रिंट को छोटे डीएनए अणुओं (प्लास्मिड कहा जाता है) में डालने का काम करते हैं”। एक बार मानव शरीर के अंदर “कोशिकाएं डीएनए प्लास्मिड में ले जाती हैं और वायरल प्रोटीन बनाने के लिए उनके निर्देशों का पालन करती हैं, जिसे प्रतिरक्षा प्रणाली के रूप में पहचानती है, प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को ट्रिगर करती है जो रोग से बचाती है”।

तीन खुराक वाला शॉट है जायडस कैडिला

अभी तक कोविड के लिए बनाए गए करीब-करीब सभी वैक्सीन दो-खुराक वाले हैं (जॉनसन एंड जॉनसन द्वारा बनाई गई वैक्सीन एकल खुराक की है), लेकिन दुनिया में ZyCoV-D इकलौता तीन खुराक वाला वैक्सीन है। इस वैक्सीन के डोज को चार सप्ताह के अंतराल में दिया जाता है। लेकिन कंपनी ने कहा है कि उसने “ZyCoV-D वैक्सीन के लिए एक दो खुराक आहार का मूल्यांकन भी किया है, जिसमें प्रति विज़िट 3mg खुराक का उपयोग किया गया है और इम्युनोजेनेसिटी के परिणाम वर्तमान तीन खुराक आहार के बराबर पाए गए हैं”।

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ZyCoV-D के साथ सबसे अच्छी बात ये है कि यह एक ‘इंट्राडर्मल वैक्सीन’ है जिसे “needle-free system” का उपयोग करके लागू किया जाता है। सुइ के डर के कारण झिझक दिखाने वालों का टीकाकरण करने की बात आती है तो इसका एक बड़ा लाभ मिल सकता है।

वैक्सीन को 2-8 डिग्री सेल्सियस तापमान पर संग्रहीत किया जा सकता है, लेकिन कंपनी का कहना है कि “कम से कम तीन महीनों के लिए 25 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर अच्छी स्थिरता दिखाई है”। यह mRNA टीकों के विपरीत आसान परिवहन और भंडारण को सक्षम करेगा, जिसमें अल्ट्रा-कोल्ड स्टोरेज की आवश्यकता होती है।

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