दरअसल, पश्चिम बंगाल में पीरजादा अब्बास सिद्दीकी हुगली जिले में फुरफुरा शरीफ दरगाह के प्रमुख हैं। उनकी मुस्लिम वोटरों में अच्छी पैठ है। बंगाल में लगभग 31 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं। माना जाता है कि राज्य में मुस्लिम मतदाता जिस दल की ओर झुकते हैं, करीब-करीब सत्ता उसी दल के हाथ होती है। ऐसे में यह जानना-समझना मुश्किल नहीं होना चाहिए कि बंगाल के राजनीतिक समीकरण में पीरजादा क्या महत्व है और राज्य में हर दल पीरजादा को इतनी तवज्जो क्यों दे रहा है।
हालांकि, कहा यह भी जाता है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सत्ता पर काबिज कराने में पीरजादा का अहम रोल रहा है। इस बात से खुद तृणमूल कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता भी इनकार नहीं करते, मगर खुलकर नहीं बोलते। बहरहाल, यह भी सही है कि अब पीरजादा ने खुद की पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट बनाने का ऐलान किया है। राज्य की राजनीतिक को करीब से जानने वाले यह भी कह रहे कि पीरजादा अब ममता दीदी से काफी नाराज हैं, इसलिए उन्होंने खुद की पार्टी बनाई है। वहीं, तृणमूल के कुछ नेता दबी जुबान में कहते हैं कि पीरजादा की महत्वाकांक्षा बढ़ती जा रही है। पार्टी बनाने का ऐलान करना इसी की एक कड़ी है।
बंगाल के मुस्लिम समाज पर फुरफुरा शरीफ दरगाह की भूमिका अहम है। मुस्लिम समुदाय पर इसका गहरा प्रभाव है। वामपंथी सरकार के दौरान इसी दरगाह की मदद से ममता बनर्जी ने सिंगूर और नंदीग्राम जैसे बड़े आंदोलन किए और सत्ता हासिल की। वर्ष 2011 में ममता बनर्जी की धमाकेदार जीत के पीछे मुस्लिम वोटरों का बड़ा योगदान रहा है। बंगाल की 294 सीटों में से करीब 90 सीटों पर मुस्लिम समुदाय के वोटरों का अच्छा प्रभाव है। सूत्रों की मानें तो कुछ महीनों पहले पीरजादा और ममता बनर्जी के बीच किसी बात को लेकर मतभेद हो गया था। सिद्दीकी ने यह भी दावा किया है कि ममता बनर्जी ने मुख्यमंत्री रहते हुए मुस्लिम समुदाय की अनदेखी की है।
बहरहाल, चर्चाएं ऐसी भी हैं कि कांग्रेस से गठबंधन से ठीक पहले यानी पिछले महीने जनवरी में आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी पीरजादा से मुलाकात कर चुके हैं। तब ओवैसी ने दावा किया था कि उन्हें फुरफुरा शरीफ दरगाह के मौलाना पीरजादा का समर्थन हासिल है। ममता से नाराजगी और ओवैसी से बात नहीं बनने के बाद ही पीरजादा ने कांग्रेस-वाममोर्चा का रुख किया होगा। मगर उनका जाना कांग्रेस में कलह की वजह बन गया है। अब देखना यह होगा कि अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी मोल लेने के बाद क्या पीरजादा राज्य में कांग्रेस का सूखा खत्म करने में मददगार साबित होंगे?