
19वीं सदी से चलने वाली पांच नैरो गेज लाइनों को चालू रखेगा रेलवे
नई दल्ली। भारतीय रेलवे इन दिनों आधुनिकीकरण की राह पर है। इसके तहत रेलवे अपने पुराने इंफ्रास्टचर को बदलने की प्रक्रिया में है। रेवले ने पिछले कई सालों से अपनी पुराने रेल लाइनों को बदल रहा है जिसमें मीटर गेज और नैरो गेज को ब्राड गेज में तब्दील करना शामिल है। लेकिन अपनी गेज रूपांतरण नीति में एक बड़े अपवाद की गुंजाइश रखते हुए भारतीय रेलवे ने 19वीं शताब्दी के बाद से एशिया की सबसे बड़ी नैरो गेज प्रणाली का हिस्सा बनने के साथ अपने औपनिवेशिक युग की पांच सबसे पुरानी कार्यरत नैरो गेज लाइनों को संरक्षित करने का निर्णय लिया है। ये सभी लाइनें औपनिवेशिक काल की गायकवाड़ बड़ौदा स्टेट रेलवे (जीबीएसआर) का हिस्सा हैं।
क्या है नैरो गेज लाइन
भारत में दो तरह की नैरो गेज लाइनें कार्यरत है। एक में दोनों रेलों के बीच की दूरी 2 फीट 6 इंच तथा दूसरे में 2 फीट होती है। ब्रॉड गेज के मुकाबले नैरो गेज में इंजन, कोच, मशीनरी और रखरखाव उपकरण की आवश्यकता अधिक होती है ।
अनमोल धरोहर है जीबीएसआर
वाणिज्यिक रूप से नैरो गेज लाइनें भारत के कुछ पहाड़ी क्षेत्रों के अलावा दुनिया में बहुत कम जगहों पर मौजूद हैं। अब भारतीय रेलवे द्वारा इन रेल लाइनों को विलुप्त होने से बचाने के लिए प्रयास किया जा रहा है। पांच नैरो गेज लाइनों को संरक्षित करने का आदेश रेलवे द्वारा गुरुवार को जारी किया गया था। रेलवे मंत्रालय में नीति निर्माता इस महत्वपूर्ण औद्योगिक विरासत को संरक्षित रखने के इच्छुक हैं। मंत्रालय के एक अध्ययन से पता चला है कि यह हर साल कई विदेशी पर्यटक सिर्फ इन रेलों के वजह से भारत आते है।
33 किलोमीटर की दाभोई-मियागम लाइन भारत की पहला नैरो गेज रेलवे लाइन थी । जब 1862 में जब इसका ऑपरेशन शुरू हुआ तो कोच को ऑक्सन द्वारा खींचा गया। बाद में इसमें स्टीम इंजन जोड़े गए थे। जीबीएसआर के मालिक बड़ौदा के महाराजा ने बाद में अपने राज्य के अधिकांश शहरों को जोड़ने हल्के नैरो गेज रेलवे का एक नेटवर्क बनाया था । इसके अलावा जिन रेल लाइनों को संरक्षित किया जाएगा उनमें मियागम-मल्सर (38 किमी), चारोंडा-मोती करल (19 किमी), प्रताप नगर-जंबुसर (51 किमी) और बिलमोरा-वाघी (63 किमी) हैं।
नीतियों में जरूरी बदलाव करेगा रेलवे
मंत्रालय को इस नीति परिवर्तन से पहले अतीत में स्वीकृत कुछ संबंधित गेज-रूपांतरण परियोजनाओं को बदलना पड़ सकता है। मध्य प्रदेश में पूर्व ग्वालियर लाइट रेलवे का बड़ा हिस्सा स्थानीय राजनेताओं के निरंतर दबाव के बाद गेज रूपांतरण के लिए पहले से ही चिह्नित किया गया है। रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष अश्वनी लोहानी ने कहा कि बोर्ड के वित्तीय आयुक्त और सदस्य (इंजीनियरिंग) को जीबीएसआर को संरक्षित करने के लिए जरूरी कदम उठाने के निर्देश दे दिए गए है। बता दें कि वर्तमान में गेज रूपांतरण उन लाइनों पर हो रहा है जो 15-20 साल के लिए निष्क्रिय हैं। गुजरात की दूरदराज के इलाकों को जोड़ने वाली ये पांच लाइनें असल में "द्वीप रेखाएं" हैं।
Published on:
10 Jun 2018 11:31 am
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