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नोएडा के बिसरख गांव में नहीं होती रामलीला, रावण का पुतला भी नहीं जलाते

Highlights. - रावण के पैतृक स्थान बिसरख में नहीं मनाया जाता दशहरा, 70 साल पहले हुई थी आधी-अधूरी रामलीला - यहाँ बीता लंकेश का बचपन, इसलिए आदर के साथ लिया जाता है लंकाधिपति का नाम - सूरजपुर मुख्यालय से 10 किमी दूर स्थित बिसरख गांव वर्तमान में ग्रेटर नोएडा वेस्ट में आता है

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Ashutosh Pathak

Oct 25, 2020

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नोएडा.

देशभर में बुराई पर अच्छाई का प्रतीक विजयदशमी पर्व आज बड़ी धूमधाम से मनाया जाएगा, लेकिन राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के ग्रेटर नोएडा वेस्ट स्थित बिसरख एक ऐसा गांव है, जहां दशहरा नहीं मनाया जाएगा। दरअसल, मान्यता है कि लंकेश रावण का जन्म यहीं हुआ था और उनका बचपन भी यहीं बीता था। इसलिए यहां न तो विजयदशमी का पर्व मनाया जाता है और न ही रावण के पुतले का दहन किया जाता है। आखिर इस गांव की परंपरा देशभर से अलग क्यों है? यहीं जानने के लिए 'पत्रिका' टीम ने बिसरख का दौरा किया और यहां के मौजूदा हालात को जानने का प्रयास किया। पेश है ग्राउंड जीरो से रिपोर्ट-

गौतमबुद्ध नगर के सूरजपुर मुख्यालय से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बिसरख गांव वर्तमान में ग्रेटर नोएडा वेस्ट में आता है। बिसरख गांव पहले गाजियाबाद जिले में आता था। उत्तर प्रदेश में नए जिलों के सृजन के साथ इसे गौतमबुद्ध नगर (नोएडा) में शामिल किया गया। ग्रामीण बतातें हैं कि यह गांव पहले जंगलों से घिरा था। हालांकि गौतमबुद्ध नगर जिले में आने के साथ ही यहां तेजी से विकास हुआ। अब सड़क मार्ग से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। गांव के आसपास अब बड़ी-बड़ी गगनचुंबी इमारतें बन चुकी हैं। गांव में प्रवेश करते ही यहां गौतमबुद्ध नगर का सबसे पुराना थाना बिसरख नजर आता है, जिसे अंग्रेजों के समय में बनाया गया था। इस थाने के पीछे ही एक प्राचीन शिव मंदिर स्थित है, जिसे रावण के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

अष्टभुजी शिवलिंग है यहां

प्राचीनकाल में इस गांव को विश्वेशरा के नाम से जाना जाता था। गांव के बुजुर्ग बताते हैं बिसरख गांव का जिक्र शिवपुराण में भी है। कहा जाता है कि त्रेतायुग में इस गांव में ही ऋषि विश्रवा का जन्म हुआ था। वह भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। इसी गांव में ऋषि विश्रवा ने अष्टभुजी शिवलिंग की स्थापना की थी। उन्हीं के घर रावण का जन्म हुआ था। रावण भी इसी अष्टभुजी शिवलिंग की पूजा करता था। रावण की पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे बुद्धिमान और पराक्रमी होने का वरदान दिया था। ग्रामीण बतातें हैं कि अष्टभुजी शिवलिंग की गहराई अब तक कोई भी नहीं जान सका है। यहां खुदाई भी कराई गई, लेकिन शिवलिंग का कोई छोर नहीं मिला। यहां आज भी खुदाई के दौरान शिवलिंग निकलते रहते हैं। अब तक यहां 25 शिवलिंग मिल चुके हैं।
जब हमने गांव वालों से बात की तो उनका दर्द जुबां पर आ गया। ग्रामीण दीपांशु, ललित ओर परमानंद को मलाल है कि रावण को पापी के रूप में प्रचारित किया जाता है। जबकि वह बहुत तेजस्वी, बुद्धिमान, शिवभक्त, प्रकांड पंडित एवं क्षत्रिय गुणों से युक्त थे। वह हमारे लिए आदरणीय थे। उन्होंने बताया कि दशहरे के अलावा सालभर यहां शिवभक्त पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं। मान्यता है कि जो श्रद्धालु यहां कुछ मांगता है तो उसकी मुराद जरूर पूरी होती है। इसलिए सालभर देश के कोने-कोने से यहां आने-जाने वालों का तांता लगा रहता है।

अधूरी रह गई थी रामलीला

बिसरख शिव मंदिर के पुजारी सुशील कुमार शास्त्री ने बताया कि करीब 70 साल पहले बिसरख में रामलीला का आयोजन किया गया था, लेकिन उस दौरान रामलीला के एक पात्र की मौत हो गई। इसके चलते रामलीला अधूरी ही रह गई। उसके बाद से ग्रामीणों ने दोबारा कभी रामलीला का आयोजन नहीं कराया। पुजारी शास्त्री का कहना है कि लोगों को डर है कि रामलीला करने या रावण का पुतला जलाने से गांव पर विपदा आ सकती है।

अरविंद उत्तम.