8 दिसंबर 2025,

सोमवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

जस्टिस केएम जोसेफ के नाम पर कोलेजियम में बनी आम सहमति, 16 मई को अगली बैठक

चीफ जस्टिस के नाम लिखे पत्र में जस्टिस चेलमेश्वर ने अपील की है कि कोलेजियम अपनी सिफारिश पर कायम रहते हुए जस्टिस जोसेफ का नाम केंद्र को दोबारा भेजे।

2 min read
Google source verification
Justice KM Joseph

नई दिल्ली। उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के एम जोसफ की सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के संबंध में कोलेजियम की आज एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। इसमें उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के.एम जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत करने के लिए उनके नाम पर पुनर्विचार करने के संबंध में विशेष रूप से चर्चा हुई। लेकिन बैठक के शेष समय में कुछ अन्य जजों को भी पदोन्नत करने के लिए शीर्ष अदालत में भेजने पर विचार किया गया। शुक्रवार की बैठक के बाद अब इस मामले में कोलेजियम की अगली बैठक 16 मई को होगी।

जस्टिस चेलमेश्वर ने पत्र लिखकर की थी सिफारिश

बता दें कि एक दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस चेलमेश्वर ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के नाम एक पत्र लिखा था जिसमे उन्होंने मांग की थी कि उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के एम जोसेफ की सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए कोलेजियम को दोबारा अपनी सिफारिश सरकार के पास भेजना चाहिए।

कोलेजियम की सिफारिश पर दिए थे तर्क

भारत के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के नाम भेजे गए एक पत्र में जस्टिस चेलमेशवर ने कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद द्वारा कोलेजियम की पहली सिफारिश लौटाने की वजहों पर अपने तर्क दिए हैं। इस पत्र में कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद की दलीलों को खारिज करते हुए चीफ जस्टिस के नाम लिखे पत्र में उन्होंने अपील की है कि कोलेजियम अपनी सिफारिश पर कायम रहते हुए जस्टिस के एम जोसेफ का नाम केंद्र को दोबारा भेजे।

क्या है जस्टिस चेलमेश्वर मामला

केंद्र सरकार ने जजों की नियुक्ति के संबंध में कोलेजियम की सिफारिश मानते हुए वरिष्ठ वकील इंदु मल्होत्रा को सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश बनाने को मंजूरी दे दी है। लेकिन, उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के एम जोसेफ की सुप्रीम कोर्ट में जज बनाने की सिफारिश पुनर्विचार के लिए लौटा दी है। सरकार ने इसके पीछे वजह यह बताई थी कि केरल से सुप्रीम कोर्ट में पहले ही पर्याप्त प्रतिनिधित्व है। जबकि सरकार पर आरोप है कि इस मामले में उसने उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा राष्ट्रपति शासन को निरस्त करने के फैसले पर अपनी खीज निकाली है।