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भ्रूण परीक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश, जांच संबंधित सभी सामग्री इंटरनेट से हटवाए सरकार

कोर्ट ने परीक्षण से जुड़ी सामग्री के इंटरनेट सहित अन्य माध्यमों पर प्रकाशन पर रोक लगाने निर्देश दिया है।

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Pradeep Kumar Pandey

Dec 13, 2017

supreme court

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने जन्म से पहले बच्चे की जांच करने वाली परीक्षण पर कड़ा रुख अख्तियार कर लिया है और कोर्ट ने परीक्षण से जुड़ी सामग्री के इंटरनेट सहित अन्य माध्यमों पर प्रकाशन पर रोक लगाने निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस केंद्र सरकार की नोडल एजेंसी को इससे जुड़ा एक आदेश भी दिया है ।

छह हफ्ते में ऐसे सभी सामग्री हटाए जाने का आदेश
कोर्ट ने आदेश दिया है कि इंटरनेट कंपनियों गूगल, याहू और माइक्रोसॉफ्ट के साथ ही तमाम हित धारकों की बैठक बुलाकर छह हफ्ते के अंदर इससे संबंधी सामग्री का प्रकाशन उनके साइटों से हटा दिया जाए।

फरवरी में भी दिया था ऐसा ही आदेश
आपको बता दें कि देश की शीर्ष अदालत ने इससे पहले भी फरवरी माह में गूगल, याहू और माइक्रोसॉफ्ट को आदेश दिया था कि वह विशेषज्ञों की समिति बना कर यह सुनिश्चित करें कि प्रसव पूर्व बच्चा लड़का है या लड़की इस परीक्षण से संबंधित तमाम सामग्री को अपने साइट से हटा लें। जिससे प्रसव पूर्व लड़के-लड़की की जांच पर बने भारतीय कानूनों का उल्लंघन न हो।

यही नहीं 2006 के 19 सितंबर को भी सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय में गूगल, याहू और माइक्रोसॉफ्ट को अपनी साइट्स से ऐसे कंटेट हटाने का आदेश दिया था, जिससे पीसीपीएनडीटी अधिनियम 1994 के प्रावधान-22 का उल्लंघन होता हो। उस समय कोर्ट ने इंटरनेट पर दिखने वाले ऐसे शब्दों या संकेत शब्द को भी हटाने का आदेश दिया था जिससे प्रसव पूर्व इस तरह के परीक्षण संबंधी कंटेट का पता चलता हो। उस वक्त इस मामले में गूगल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, याहू इंडिया और माइक्रोसॉफ्ट कॉरपोरेशन इंडिया को अभियोगी बनाया गया है।

क्या था मामला?
गौरतलब है कि डॉ. साबू जॉर्ज ने साल 2008 में इस संबंध में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि गूगल और याहू जैसे सर्च इंजन प्रसव पूर्व बेटा-बेटी परीक्षण से संबं‌धित सामग्री प्रकाशित कर पीसीपीएनडीटी अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन कर रही हैं। दरअसल में गूगल, याहू और माइक्रोसॉफ्ट जैसे सर्च इंजनों पर इस तरह के परीक्षण से संबंधित विज्ञापन दिखाए जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन सर्च इंजनों पर इस तरह के तमाम विज्ञापन मौजूद हैं, जिससे ऐसे परीक्षण को बढ़ावा मिलता है। जबकि भारत में प्रसव पूर्व ऐसा परीक्षण अपराध है और इसके लिए पीसीपीएनडीटी अधिनियम लागू किया गया था।