
SC's question to Central Government and Election Commission, should re-election if NOTA gets more votes?
नई दिल्ली। लोकतंत्र में किसी भी शासक का निर्णय जनता अपने वोट के माध्यम से करती है। जनता जिसे पसंद करती है और सही मानती है उसे अपने वोट देकर सत्ता सौंपती है। यानी सरल शब्दों में कहें तो सत्ता के लिए चुनाव होते हैं और जिसे अधिक वोट मिले वही सत्ता में काबिज होता है। लेकिन कभी-कभी चुनाव में सही उम्मीदवार न होने की वजह से लोग वोट नहीं देते हैं और फिर जो उम्मीदवार चुनावी मैदान में होता है वह महज कुछ लोगों की वोट के बल चुनाव जीत जाता है, जो कि लोकतंत्र के लिए सही नहीं है।
किसी भी उम्मीदवार को वोट न करने पर चुनाव आयोग ने NOTA विकल्प की व्यवस्था की है। इससे आप अपने मताधिकार का प्रयोग कर ये बताते हैं कि आपकी पसंद के उम्मीदवार चुनावी मैदान में नहीं है। कभी-कभी NOTA पर उम्मीदवारों से अधिक वोट पड़ते हैं। ऐसे में कई तरह के सवाल उठते रहे हैं। अब इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई, जिसपर अदालत ने सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से जवाब मांगा है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से पूछा है कि क्या NOTA को अधिक वोट मिलने पर फिर से चुनाव कराया जा सकता है? कोर्ट ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने कहा कि दोनों ही पक्ष इस मामले में 4 हफ्तों में जवाब दाखिल करें।
बता दें कि इस संबंध में वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी। कोर्ट में उपाध्याय की ओर से पेश हुए सीनियर अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि नोटा का अर्थ मतदाताओं की ओर से उम्मीदवार को रिजेक्ट किए जाने का अधिकार है। यदि किसी उम्मीदवार से अधिक वोट नोटा को मिलता है तो ऐसी स्थिति में फिर से चुनाव कराया जाना चाहिए।
.. ऐसे में तो संसद ही नहीं चल पाएगा: CJI
बता दें कि इस याचिका पर चीफ जस्टिस एस.ए. बोबड़े की अध्यक्षता में सुनवाई हुई। इस दौरान CJI ने याचिकाकर्ता से पूछा कि यदि किसी राजनीतिक पार्टी का मतदाताओं पर अच्छा प्रभाव है और उसके कैंडिडेट्स को रिजेक्ट कर दिया जाता है तो ऐसे में संसद ही नहीं चल पाएगी। क्योंकि उम्मीदवार को रिजेक्ट करने से निर्वाचन क्षेत्र खाली रह जाएगा। ऐसे में संसद का संचालन कैसे होगा?
इसपर मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि ऐसी परिस्थिति में चुनाव आयोग की ओर से कहा गया है कि यदि कहीं पर NOTA को उम्मीदवार से अधिक वोट मिलते हैं तो वहां फिर से चुनाव कराएंगे। लेकिन अभी कोई स्पष्टता नहीं है। यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में 99 फीसदी वोट नोटा को मिलता है और एक फीसदी वोट उम्मीदवार को तो वह विजेता घोषित कर दिया जाता है।
मेनका ने कहा कि नागरिकों को ‘राइट टू रिजेक्ट’ अधिकार मिला है और इससे राजनीतिक दलों को डर होना चाहिए। राजनीतिक दलों पर साफ छवि और सही उम्मीदवार को टिकट देने का दबाव होना चाहिए।
क्या मांग की गई है याचिका में?
आपको बता दें कि जनहित याचिका में मांग की गई है कि जिस निर्वाचन क्षेत्र में NOTA को उम्मीदवार से अधिक वोट मिले वहां फिर से चुनाव कराया जाना चाहिए। याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग को आर्टिकल 324 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए NOTA का वोट सबसे ज्यादा होने पर चुनाव को रद्द करना चाहिए और नए चुनाव कराने चाहिए।
इसके अलावा याचिका में ये भी मांग की गई कि चुनाव रद्द किए जाने के बाद उन उम्मीदवारों को फिर से चुनाव लड़ने की इजाजत न दी जाए जिन्हें जनता ने पहले खारिज कर NOTA को अधिक वोट दिया है। बता दें कि इस याचिका पर शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए तैयार नहीं थी, लेकिन बाद में फिर याचिका स्वीकार कर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से जवाब दाखिल करने को कहा है।
Updated on:
15 Mar 2021 05:34 pm
Published on:
15 Mar 2021 05:05 pm
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