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कानूनी पचड़े में फंसा ‘गंगा-पुत्र’ जीडी अग्रवाल का पार्थिव शरीर! आश्रम को नहीं सौंप सकते: SC

पर्यावरणविद प्रोफेसर जीडी अग्रवाल उर्फ स्वामी ज्ञानस्वरुप सानंद की निधन के 16 दिन बाद भी एम्स ऋषिकेश और मातृ सदन में उनके पार्थिव शरीर के लिए जंग जारी है।

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Chandra Prakash Chourasia

Oct 27, 2018

GD Agrawal

कानूनी पचड़े में फंसा 'गंगा-पुत्र' जीडी अग्रवाल का पार्थिव शरीर! आश्रम को नहीं सौंप सकते: SC

नई दिल्ली। गंगा की सफाई की मांग करते हुए प्राण त्यागने वाले पर्यावरणविद प्रोफेसर जीडी अग्रवाल (स्वामी ज्ञानस्वरुप सानंद) के पार्थिव शरीर पर विवाद अबतक नहीं थम सका है। उनकी निधन के 16 दिन बाद भी एम्स ऋषिकेश और मातृ सदन में जंग जारी है। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दिया है। जिसमें कोर्ट ने निर्देश दिया था कि स्वामी सानंद के पार्थिव शरीर को 72 घंटे के लिए मातृ सदन में रखा जाए।

एम्स और मातृ सदन की जंग सुप्रीम कोर्ट पहुंची

11 अक्टूबर को जीडी अग्रवाल उर्फ स्वामी सानंद का निधन ऋषिकेष एम्स में हुआ था। वे गंगा के अविरल धारा और उसकी सफाई को लेकर 111 दिन से अनशन पर थे। निधन के एक दिन पहले ही पुलिस उन्हें एम्स में लेकर गई थी। जिसके बाद एम्स ने दावा किया था कि उन्होंने जीते जी अपना शरीर मेडिकल रिसर्च के लिए संस्थान को दान कर गए हैं। जबकि स्वामी सानंद के आध्यात्मिक गुरु स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने उनके पार्थिव शरीर की हिंदू रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार की मांग की है। शरीर को लेकर हो रहा विवाद इतना बढ़ गया कि मामला अदालत तक पहुंच गया । हरिद्वार के एक शख्स ने हाईकोर्ट में इसे लेकर जनहित याचिका दायर कर दी।

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अगले आदेश तक हाईकोर्ट के फैसले पर रोक

स्वामी ज्ञानस्वरुप सानंद के पार्थिव शरीर को लेकर हो रहा विवाद इतना बढ़ गया कि मामला अदालत तक पहुंच गया । हरिद्वार के एक शख्स ने जनहित याचिका में कहा कि जीडी अग्रवाल के पार्थिव शरीर एम्स में रखा है। जिसकी वजह से उनके अनुयाई उनका अंतिम दर्शन तक नहीं कर पाए हैं। पीठ ने कहा कि 26 अक्टूबर के इस फैसले पर अगले आदेश तक रोक लगाना ही सही है।

हाईकोर्ट ने मातृसदन में शव रखने का आदेश दिया था

शुक्रवार को उत्तराखंड हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस राजवी शर्मा और जस्टिस मनोज तिवारी की बेंच ने कहा कि प्रोफेसर जीडी अग्रवाल का पार्थिव शरीर उनके द्वारा जताई की इच्छा के अनुरुप 3 दिन यानि 72 घंटे तक मातृ सदन में रखा जाएगा। इसके साथ ही कोर्ट ने देहरादून और हरिद्वार एसएसपी को इस दौरान कानून व्यवस्था बनाए रखने के निर्देश दिए। इसके बाद शुक्रवार को ही सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस एमबी लोकुर की पीठ ने इस आदेश पर रोक लगा दिया। कोर्ट ने कहा कि अगर उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले को लागू किया गया, तो ऐसे में मतृक के अंग प्रतिरोपण के लायक नहीं रह जाएंगे।

111 दिन की भूख हड़ताल के बाद निधन

बता दें कि गंगा को निर्मल बनाने के लिए 111 दिन तक भूख हड़ताल करने वाले आईआईटी कानपुर के पूर्व प्रोफेसर जी.डी. अग्रवाल का ऋषिकेश के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में 11 अक्टूबर,2018 को निधन हो गया। उन्होंने सरकार पर अपनी मांगों के लिए दबाव बनाने के वास्ते भूख हड़ताल के 110 वें दिन से उन्होंने जल भी त्याग दिया था। डॉक्टरों ने बताया कि उनके शरीर में कीटोन की मात्रा बहुत अधिक हो गई थी, इसके चलते उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उनका निधन हो गया।