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जालियांवाला बाग़ 100वीं बरसी : किताब के पन्ने काटकर छिपाई थी बंदूक, इस शख्स ने मारी थी जनरल डायर को गोलियां

शहीद ऊधम सिंह का असली नाम शेर सिंह था 21 सालों तक जलियांवाला बाग का बदला लेने की फिराक में रहे किताब के पन्नों को काटकर बीच में रखी गई थी बंदूक

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Vineeta Vashisth

Apr 13, 2019

shaheed udham singh

जालियांवाला बाग़ 100वीं बरसी : किताब के पन्ने काटकर छिपाई थी बंदूक, इस शख्स ने मारी थी जनरल डायर को गोलियां

नई दिल्ली: वो सालों तक शहीदों की मौत का बदला लेने की योजना बनाता रहा। एक एक करके 21 साल बीत गए...लेकिन उसने हार नहीं मानी। एक दिन योजना फलीभूत हुई और तड़ तड़ तड़... । मौका पाते ही इसने जान की परवाह किए बिना जलियांवाला बाग के हजारों निहत्थे मासूमों के हत्यारे जनरल डायर के सीने में गोलियां ठोक दीं।

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देश जलियांवाला बाग हत्याकांड की सौंवी बरसी मना रहा है। 13 मार्च को ही पंजाब के जलियांवाला बाग में जनरल डायर ने शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे हजारों निहत्थे मासूम लोगों पर गोलियां चलवाई थी। शहीदों की याद में आज भी पंजाब खून के सौ सौं आंसू रोता है। ऐसे में उस शख्स का जिक्र करना जरूरी हो जाता है जिसने जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लिया।

बात हो रही है, शहीद ऊधम सिंह की जिसने 21 सालों की मेहनत के बाद आखिरकार जलियांवाला बाग का बदला लिया औऱ जनरल डायर के सीने में गोलियां दागकर शहीदों की आत्माओं के साथ इंसाफ किया। shaheed udham singh का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब ( Punjab ) में संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था। कम उम्र में ही माता-पिता चल बसे और ऊधम सिंह अनाथाश्रम में रहने लगे। 1919 में हुए Jallianwala bagh हत्याकांड का उन पर गहरा असर पड़ा और वो उसका बदला लेने की फिराक में लग गए।

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ऊधम सिंह जानते थे कि बिना जंग में कूदे वो जनरल डायर को नहीं मार सकते। उन्होंने पढ़ाई जारी रखने के साथ-साथ स्वतंत्रता आंदोलन में कूदने का फैसला किया। उस वक्त वे मैट्रिक की परीक्षा पास कर चुके थे। जनरल डायर को मारना अब उनका मकसद बन गया था लेकिन ये काम कैसे किया जाए, वो समझ नहीं पा रहे थे।

आजादी की इस लड़ाई के दौरान ही शहीद ऊधम सिंह के पांच साल की जेल हुई। जेल से बाहर निकलने के बाद उन्होंने अपना नाम बदला और विदेश चले गए। आपको बता दें कि लाहौर जेल में ही ऊधम सिंह की मुलाकात भगत सिंह ( Bhagat Singh ) से हुई और वो डायर पर हमले की बड़ी योजना बनाने लगे। फिर वही दिन आया, 13 मार्च, लेकिन जलियांवाला बाग को 21 साल बीत चुके थे। ऊधम सिंह को उस वक्त मौका मिला।

वो लंदन ( London ) में थे और लंदन के कैक्सटन हॉल में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की एक बैठक में जनरल डायर आया था। ऊधम ने एक किताब में पन्नों को काटकर एक बंदूक रखी हुई थी। किसी को भनक तक न लगी औऱ ऊधम सिंह किताब लेकर बैठक में पहुंच गए। बैठक के खत्म होने पर ऊधम सिंह ने किताब से बंदूक निकाली और डायर पर फायर झोंक डाले।

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जनरल डायर को दो गोलियां लगीं वो उसने मौके पर ही दम तोड़ दिया। फायर करने के बाद भी मतवाले ऊधम सिंह ने फरार होने का प्रयास तक न किया। वो भारत माता की जय के नारे लगाते रहे, जब तक गिरफ्तार न कर लिए गए। उन पर ब्रिटेन में हत्या का मुकदमा चला और 4 जून 1940 को उन्हें फांसी दे दी गई।

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