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जब एक मुख्यमंत्री ने कहा कि…मैं रावण का वंशज हूं

देश के कई हिस्सों में रावण की पूजा की जाती है। झारखंड की भी कई असुर जनजातियां नवरात्र में दुर्गा पूजा और रावण दहन से खुद को अलग रखती हैं।

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Chandra Prakash Chourasia

Sep 29, 2017

ravan dahan

रांची: देश के कई हिस्सों में रावण की पूजा की जाती है। तो कई स्थानों पर उनके मंदिर भी हैं। झारखंड की भी कई असुर जनजातियां नवरात्र में दुर्गा पूजा और रावण दहन से खुद को अलग रखती हैं। विजयदशमी पर हम आपको झारखंड से जुड़े कुछ रोचक किस्से बताते हैं।

शिबू सोरेन बोले- मैं रावण का वशंज
वर्ष 2008 में झारखंड मुक्ति मोर्चा प्रमुख और मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने रावण का पुतला दहन करने से इनकार कर दिया था। शिबू ने कहा कि महाज्ञानी रावण उनके कुलगुरु हैं। कोई व्यक्ति अपने कुलगुरु को कैसे जला सकता है, जिसकी वह पूजा करता है? इसी आधार पर उन्होंने रांची के मोरहाबादी मैदान में आयोजित होने वाले रावण दहन से इंकार कर दिया था।

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नवरात्र में पूरे इलाके में शोक का माहौल
गुमला जिले के बिशनपुर और डुमरी प्रखंड में रहने वाले असुर प्रजाति के लोग भी नवरात्र में मां दुर्गा की पूजा-अर्चना नहीं करते हैं। इस प्रजाति के लोगों का मानना है कि वे सभी महिषासुर के वंशज है, इस कारण नवरात्र में इन लोगों में दुःख का माहौल रहता है। दुर्गा पूजा नहीं मनाने की उनकी यह परंपरा सैकड़ों वर्षां से चली आ रही है और इस दौरान असुर प्रजाति परिवार की महिला सदस्य पूरी तरह से मातमी वेशभूषा में रहती है।

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नवरात्र में नहीं होती दुर्गा की पूजा
इस असुर प्रजाति के सदस्य न तो किसी पूजा पंडालों का दर्शन करते है और न ही नवरात्र में किसी प्रकार के जश्न में शामिल होते है। असुर जनजाति पर अध्ययन करने वाले साहित्यकार अजय किशोर नाथ पांडे ने बताया कि असुर समाज शुरु से ही जंगलो में निवास करती आई है और ये लोग शुरु से ही भैंस की पूजा करती आई है, क्योंकि मां दुर्गा ने ही महिषासुर का सर्वनाश किया था, इसलिए ये लोग मां दुर्गा की पूजा आराधना नहीं करते और दुर्गा पूजा के दौरान शोक के माहौल में रहते है।

ऐतिहासिक कथाओं के अनुसार.....
देवघर स्थित विश्व प्रसिद्ध बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर के बारे में भी मान्यता है कि रावण ने ही यहां शिवलिंग की स्थापना की थी। लोकयुक्तियों के अनुसार कठिन तपस्या के बाद भगवान शिव प्रसन्न हो गये थे और कैलाश पर्वत से लंका जाने को तैयार हो गये, परंतु उन्होंने यह शर्त भी रखी थी कि शिवलिंग को रास्ते में कहीं नहीं रखना होगा और यदि कहीं रखा गया, तो फिर वह उसी जगह स्थापित हो जाएंगे। इस बात की जानकारी जब अन्य देवी-देवाताओं को लगी, तो देवता ने बैजु नामक चरवाहे का रुप धारण किया।
उसके बाद देवघर में शिवगंगा के समीप जब रावण ने पेशाब करने के दौरान शिवलिंग को पास में खड़े बैजु नामक चारवाहे को पकड़ा दिया और सख्त हिदायत दी कि उसे जमीन पर न रखे, लेकिन देवताओं की महिमा के कारण रावण काफी देर तक पेशाब करता और ऐसी मान्यता है कि मूत्र से एक नदी व जलकुंड का निर्माण हो गया। इस बीच बैजु चरवाहे ने शिवलिंग को वहीं रख दिया और इस तरह से बैद्य्ननाथधाम में प्रसिद्ध शिवलिंग की स्थापना हुई। इस धाम की पहचान रानेश्वर के रुप में भी है और यहां रावण की भी पूजा होती है।