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गांधी जयंती विशेष: परंपरा और परिवर्तन का मिश्रण रहे बापू, स्वच्छता को लेकर थे बेहद संजीदा

2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाई जा रही है।

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गांधी जयंती विशेष: परंपरा और परिवर्तन का मिश्रण रहे बापू, स्वच्छता को लेकर थे बेहद संजीदा

नई दिल्ली। मोहनदास करमचंद गांधी परिवर्तनरत भारत के प्रतीक और सामाजिक समरता के पुरोधा थे। भारत की आजादी को लेकर जितना उनमें जोश और जूनुन था, उतना ही वह स्वच्छता को लेकर संजीदा थे। बापू ने देश की आजादी के साथ ही स्वच्छ भारत का सपना संजोया था। इसके लिए वह देशभर में घूमे भी। वह साफ सफाई को देशभक्ति के समान मानते थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती दो अक्टूबर को पूरे देश में मनाई जा रही है।उस वक्त उनके स्वच्छता के क्षेत्र में किए गए कार्य को भी याद किया जाएगा। स्वच्छता को लेकर गांधी जी के कई किस्से कहानियां हैं जो लोगों को प्रेरित करती आई हैं।

जब कस्तूरबा गांधी को बापू ने बताया सफाई का पहला पाठ, गांव के बच्चों को नहलाने के लिए कहा

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कुछ किस्से, कुछ कहानी

-समय के अति पाबंद, गांधी स्वच्छता व व्यवस्थिता के कायल थे। उनके करीबी लोगों ने बताया था कि बापू खुद तो स्वच्छ रहते ही थे, साथ ही स्वच्छता की शिक्षा सभी को देते थे। गांधी एक अध्ययन किताब के पृष्ठ नंबर 174 के अनुसार, महात्मा गांधी के करीबियों ने उन्हें कभी दाढ़ी बनाए बिना नहीं देखा, नाखून हमेशा सफाई से कटे होते थे। वे साबुन का प्रयोग नहीं करते थे किंतु स्वच्छता के उनके प्रतिमान बहुत ऊंचे थे।

-गांधी जी की संपूर्ण दिनचर्या स्वच्छता पर आधारित थी। उनके आश्रम में रहने वाले सभी स्त्री-पुरुष स्वच्छता के नियमों को अपनाते थे। अपने हाथों से साफ-सफाई करना। गांधी के बाद भी उनकी विचारधारा में चल रहे विभिन्न आश्रम और विद्यालयों में स्वयं अपने हाथों शौचालय की सफाई की जाती थी।

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-बापू ने अपनी आत्मकथा 'सत्य के प्रयोग' में अपना जीवन जीते हुए कई प्रसंगों का वर्णन किया है, जब उन्हें सफाई से रहने के लिए लोगों को उत्साहित करना पड़ा। शुरूआत में लोग मानने को तैयार नहीं थे। गांधी के जीवन का अध्ययन करने पर ऐसा लगता है कि स्वच्छता के क्षेत्र में झाड़ू लगाकर घर-आंगन बुहारने से अधिक घरों में शौचालयों का होना और उन्हें साफ-सुधरा रखने के लिए घर वालों को तैयार कराने में उन्हें बहुत मशक्कत करनी पड़ी।
-स्वच्छता संस्कार किताब के पृष्ठ नंबर 37 के अनुसार, महात्मा गांधी ने अपनी आत्म कथा 'सत्य के प्रयोग' में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटने के बाद बंबई में प्लेग के प्रकोप का वर्णन किया। उन्होंने बताया स्वच्छता के लिए एक कमेटी बनाई गई। जिसमें बापू को भी शामिल किया गया। वह गांव-गांव जाकर सफाई के बारे में लोगों को जागरुक कर रहे थे साथ ही स्वच्छता अभियान के लिए घरों में भी जा रहे थे। गांधी जी ने पाया कि गरीब और निचली जातियों के घर और शौचालय ऊंचे और सेठ लोगों के घर-शौचालय से अधिक स्वच्छ थे।

-एक बार दक्षिण अफ्रीका में एक महामारी फैली। हिंदुस्तानियों के लिए म्युनिसिपैलिटी ने अलग जगह नहीं दी। हिंदुस्तानी उसी स्थान में रहे। वहां की गंदगी और बढ़ गई क्योंकि वे वहां मालिक नहीं, किराएदार बन गए थे। किराएदार के रूप में उन्होंने वहां सफाई करनी छोड़ दी। उसी समय काला प्लेग फूट निकला। भाई मदनजीत ने एक खाली पड़े मकान का ताला तोड़कर उस पर कब्जा कर लिया। उसी में उन बीमारों को रखा। चार हिंदुस्तानियों ने मिलकर उनकी सेवा की। वहां सफाई की व्यवस्था कराई। दूसरे दिन उन्हें एक खाली गोदाम दिया गया। गांधी लिखते हैं, मकान बहुत मैला और गंदा था हम लोगों ने स्वयं उसे साफ किया।

गांधीजी ने स्वास्थ्य और स्वच्छता को अन्योन्याश्रित नहीं, बल्कि स्वच्छता का पर्याय माना।