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सुप्रीम कोर्ट: असहमति को दबाने के लिए देशद्रोह कानून का गलत इस्तेमाल कर सकती है सरकार

भारतीय दंड सहिंता की धारा 124ए की प्रासंगिकता पूछते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को भेजा नोटिस, दो सप्ताह में देना होगा जवाब।

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Supreme Court of India asks the government about the relevance of sedition law

Supreme Court of India asks the government about the relevance of sedition law

नई दिल्ली। देश में देशद्रोह (124 ए) के कानून को लेकर बहस बहुत पुरानी है। एक समूह इसके पक्ष में विचार रखता है तो दूसरा विपक्ष में। इसके बीच सुप्रीम कोर्ट की ओर से देशद्रोह के कानून को लेकर एक अहम टिप्पणी की गई है। मुख्य न्यायधीश एनवी रमन्ना ने सरकार से पूछा, "क्या आजादी के 75 साल बाद भी देशद्रोह जैसे क़ानून की ज़रूरत है?" उन्होंने आगे कहा, "देशद्रोह क़ानून एक औपनिवेशिक क़ानून है। किसी समय महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक जैसे स्वतंत्रता सेनानियों की आवाज़ को दबाने के लिए ब्रिटिश सत्ता इस क़ानून का इस्तेमाल करती थी।"

सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख जज ने टिप्पणी करते हुए कहा, "इस कानून में दोषी साबित होने का प्रतिशत काफी अधिक है, पुलिस चाहे तो इस क़ानून का सहारा लेकर किसी को भी फंसा सकती है। इस कानून से हर कोई आशंकित रहता है, सरकार भी विपक्ष अथवा असहमति की आवाज दबाने के लिए इसका इस्तेमाल कर सकती है। वहीं, आजादी के बाद बहुत से कानून रद्द कर दिए गए लेकिन क्या सरकार इसे रद्द करने पर विचार कर रही है?"

कोर्ट ने आगे कहा कि संविधान की इस धारा को बारीकी से जांचा जाएगा और इस पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने ये वक्तव्य भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के खिलाफ आई एक याचिका की सुनवाई के दौरान दिया है।

याचिकाकर्ता ने याचिका में कहा है कि भारती दंड संहिता की धारा 124ए (देशद्रोह) द्वारा लगाया गया प्रतिबंध अनुचित है तथा संविधान के अनुच्छेद 19(2) में दिए गए एक मौलिक अधिकार का उल्लंघन भी करता है। याचिकाकर्ता ने कोर्ट से मांग की है कि इस कानून को असंवैधानिक घोषित करते हुए भारतीय दंड संहिता से हटा देना चाहिए।

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सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार कर लिया है, जिसकी सुनवाई जस्टिस एन वी रमन्ना, जस्टिस एएस बोपन्ना तथा जस्टिस ह्रषिकेश रॉय की पीठ द्वारा की जाएगी। 30 अप्रैल को कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल (एजी) को इस याचिका पर नोटिस जारी करते हुए जवाब देने के लिए कहा था। इसके बाद कोर्ट में केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब के लिए दो सप्ताह के समय की मांग की थी, जिसके बाद अदालत ने उन्हें समय प्रदान करते हुए मामले की अगली सुनवाई 27 जुलाई तक के लिए टाल दी है।

बता दें कि कुछ दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ ने अमरीकी संयुक्त ग्रीष्मकालीन सम्मेलन को संबोधित करते हुए आतंकवाद विरोधी कानून पर भी एक अहम टिप्पणी की, जिसमें उन्होंने कहा कि देश के नागरिकों की असहमति दबाने के खातिर आतंकवाद विरोधी कानून समेत किसी भी आपराधिक क़ानून का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए।