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पॉक्सो एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का अहम निर्देश, सभी मामलों की फास्ट ट्रैक कोर्ट में हो सुनवाई

पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामलों की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से सभी मामलों की फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई के निर्देश दिए हैं।

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Chandra Prakash Chourasia

May 01, 2018

pocso court

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बाल यौन अपराध संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम के अंतर्गत चलने वाले मामलों की जल्द सुनवाई और फैसले को लेकर एक अहम आदेश दिया है। कोर्ट ने देश के सभी हाईकोर्ट से कहा है कि निचली अदालतों को पॉक्सो जैसे गंभीर कानून के तहत लंबित मामलों की गैरजरूरी सुनवाई स्थगित नहीं करने के निर्देश जारी किए जाए, ताकि जांच में तेजी लाई जा सके।

हाईकोर्ट गठित करे विशेष समितियां
मंगलवार को प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी.वाई.चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट यौन हिंसा संबंधी मामलों की निगरानी और नियमन के लिए न्यायाधीशों की समितियां गठित करने के निर्देश दिए हैं। जो निचली अदालत में चल रहे फास्ट ट्रैक कोर्ट का मॉनिटर करेंगी।

पुलिस को एटीएफ गठित करने के निर्देश
कोर्ट राज्यों के राज्य के पुलिस महानिदेशकों या आयुक्तों को भी विशेष कार्य बल (एसटीएफ) गठित करने के निर्देश दिए, ताकि ऐसे मामलों की जांच तेजी से किया जा सके और गवाहों की पेशी के दिन ही अदालत में सबूत पेश किए जा सकें। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पिंकी आनंद ने अदालत को सूचित किया कि सरकार ने पॉक्सो कानून में संशोधन कर 12 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों के साथ दुष्कर्म करने वालों को मृत्युदंड देने का प्रावधान किया है।

यूपी में लंबित हैं पोक्सो एक्ट के सबसे ज्यादा मामले
अदालत को बताया गया कि पूरे देश की निचली अदालतों में पॉक्सो अधिनियम से जुड़े 112,628 मामले लंबित हैं, जिनमें से उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 30,883 मामले लंबित हैं। इसके बाद अदालत ने ये निर्देश जारी किए।

ये है देश का हालात
महाराष्ट्र समेत गोवा, केंद्रशासित प्रदेशों दीव एवं दमन, दादर एवं नगर हवेली में इस संबंध में लगभग 16,099 मामले लंबित हैं। इसके बाद मध्यप्रदेश में 10,117, पश्चिम बंगाल में 9,894, ओडिशा में 6,849, दिल्ली में 6,100, केरल व केंद्रशासित प्रदेश लक्षद्वीप में 5,409, गुजरात में 5,177, बिहार में 4,910 और कर्नाटक में 4,045 मामले लंबित हैं।

पॉक्सो एक्ट में हो चुका है बदलाव
बता दें कि 22 अप्रेल को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 12 साल से कम आयु के बच्चों के साथ दुष्कर्म करने के दोषियों को मृत्युदंड के प्रावधान वाले अध्यादेश कोमंजूरी दे दी। राष्ट्रपति ने आपराधिक कानून (संशोधन) अध्यादेश, 2018 को मंजूरी दे दी, जिसे कैबिनेट ने शनिवार को मंजूरी दी थी। इसमें दुष्कर्म के खिलाफ सख्त सजा और महिलाओं, खास तौर से युवतियों के बीच सुरक्षा की भावना जगाने की कोशिश की गई है। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद बाल यौन अपराध निवारण (पोक्सो), भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) व साक्ष्य अधिनियम संशोधित हो गया है।
उन्नाव और कठुआ रेप के बाद संसोधन
यह अध्यादेश जम्मू एवं कश्मीर के कठुआ में आठ साल की बच्ची से दुष्कर्म व हत्या, उत्तर प्रदेश के उन्नाव में किशोरी से दुष्कर्म व देश के अन्य भागों में इसी तरह के अपराधों की पृष्ठभूमि के खिलाफ आया है। इसके फलस्वरूप जांच के लिए दो महीने की समय सीमा, सुनवाई पूरी करने के लिए दो महीने का समय और अपीलों के निपटारे के लिए छह महीने सहित जांच में तेजी व दुष्कर्म की सुनवाई के लिए कई उपाय किए गए हैं।