
नई दिल्ली: केंद्र और दिल्ली सरकार के अधिकारों के मामले पर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद आज फैसला सुरक्षित रख लिया । सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से 2 सप्ताह में लिखित दलीलें पेश करने को कहा। दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि मुख्यमंत्री के पास कार्यकारी शक्तियां निहित है और निर्णय लेने का अधिकार मुख्यमंत्री के पास है। दिल्ली सरकार ने कहा कि अनुच्छेद 77 के तहत दो तरीके के नियम होते है, जो कि दिल्ली सरकार के पास मौजूद है। पहले नियम के तहत कार्यों का आवंटन और दूसरे नियम के तहत अधिकार को निर्धारित करना।
दिल्ली पर पूरे देश का हक
इससे पहले की सुनवाइयों के दौरान केंद्र सरकार ने कहा था कि दिल्ली देश की राजधानी है और इस पर पूरे देश का अधिकार है । केंद्र सरकार की ओर से एएसजी मनिंदर सिंह ने पूछा था कि क्या दिल्ली सरकार को ये अधिकार दिया जा सकता है कि वो ये कह सके कि 26 जनवरी की परेड दिल्ली में नहीं होगी । केंद्र सरकार ने कहा कि दिल्ली सरकार के मंत्रिमंडल की सलाह पर अमल करने के लिए उप-राज्यपाल बाध्य नहीं हैं । संविधान ने दिल्ली सरकार को कोई एक्जीक्युटिव अधिकार नहीं दिए हैं ।
नगरपालिका की तरह है दिल्ली सरकार
केंद्र सरकार ने कहा था कि संविधान में साफ है कि दिल्ली एक केंद्र शासित क्षेत्र है और इसे राज्य की तरह नहीं देख सकते हैं । दिल्ली को अनुच्छेद 239AA मे अलग से कार्यपालिका की शक्ति नहीं दी गई है । दिल्ली सरकार की भूमिका नगरपालिका की तरह है जो नागरिकों के रोजाना के कामों से जुड़ा है ।
उप-राज्यपाल की भूमिका सबसे अहम
राष्ट्रपति के प्रतिनिधि उप-राज्यपाल की भूमिका यहां सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है । केंद्र सरकार ने कहा था कि ये गलत छवि बनाई जा रही है कि दिल्ली सरकार को उप-राज्यपाल काम नहीं करने दे रहे हैं। पिछले तीन साल में करीब 600 से ज़्यादा फाइलें उप-राज्यपाल के पास आई हैं जिसमें मात्र तीन को राष्ट्रपति के पास भेजा गया है। वो भी इसलिए क्योंकि वो पुलिस से जुड़ी थीं और पुलिस केंद्र के तहत हैं। बाकी फाइलों का निपटारा एलजी सचिवालय में ही हो गया ।
दिल्ली में तीन गवर्निंग बॉडी
केंद्र ने कहा था कि दिल्ली सरकार चाहती है कि उसे असीमित शक्तियां प्राप्त हों । वे राज्य नहीं हैं लेकिन राज्य की सुविधाएं चाहते हैं । जब आपके पास राज्य की शक्तियां नहीं हैं तो आप उसका इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं । आपको खर्च करने के लिए आपके पॉकेट में पैसे होने चाहिए । दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा था कि उप-राज्यपाल को राष्ट्रपति पदासीन करते हैं । इसलिए दिल्ली में तीन गवर्निंग बॉडी हैं । राष्ट्रपति, उप-राज्यपाल और मुख्यमंत्री । राजीव धवन ने कहा कि जहां तक दिल्ली का सवाल है मंत्रिमंडल किसी भी विधायिका की बदौलत नहीं
है । कोई भी संविधान एक प्राधिकार को संपूर्ण शक्ति नहीं दे सकती है । पहले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उप-राज्यपाल रोजाना के काम मे दखल नहीं दे सकते हैं। आखिरकार इसका एक संवैधानिक हल निकालना होगा । सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार के वकील गोपाल सुब्रह्मण्यम ने कहा था कि वैल्यू ऑफ कैबिनेट के एग्जीक्यूटिव पावर को समझना होगा। अदालत को इसकी मान्यता देनी होगी।
कोर्ट को इस आलोक में देखना चाहिए
दिल्ली में चुनी हुई सरकार है और कोर्ट को इसी आलोक में देखना होगा। जो भी केन्द्र शासित प्रदेश है वहां उप-राज्यपाल के जरिए राष्ट्रपति अपना शासन चलाते हैं। लेकिन दिल्ली का स्पेशल करैक्टर है और यहां विधानसभा बनाया गया है । उन्होंने कहा था कि धारा 239एए की संकल्पना सहयोग और सलाह पर आधारित है । और अगर सहयोग और सलाह पर अमल नहीं होता तो इस धारा की मूल कल्पना से भटकने की कोशिश होती है ।
उप-राज्यपाल ब्रिटिश क्राउन के वाइसराय की तरह नहीं हैं
दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील पी. चिदंबरम ने कहा था कि उप-राज्यपाल ब्रिटिश क्राउन के वाइसराय की तरह नहीं हैं। वे तभी तक राष्ट्रपति के प्रतिनिधि हैं जब तक राष्ट्रपति ऐसा चाहें । चिदंबरम ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम की धारा 29 को उद्धृत करते हुए कहा कि अगर विधानसभा कोई विधेयक उप-राज्यपाल के पास दोबारा भेजती है तब उप-राज्यपाल को नागरिकों की इच्छाओं का सम्मान करते हुए राष्ट्रपति के पास भेज देना चाहिए । ऐसा नहीं कि उसे लटका दें या उसे दोबारा लौटा दें । चिदंबरम ने कहा कि संविधान की कोई भी वैसी व्याख्या जो लोकतंत्र को सीमित करे उसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज किया जाना चाहिए । चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली इस संविधान बेंच में जस्टिस एके सिकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण शामिल हैं।
Published on:
06 Dec 2017 08:32 pm
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