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सुप्रीम कोर्ट ने टीवी चैनलों के खिलाफ कार्रवाई पर लगाई रोक, कहा- देशद्रोह कानून पर फिर से विचार करने की जरूरत

सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश पुलिस को देशद्रोह के आरोप में दो टीवी चैनलों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने पर रोक लगाई है। सुनवाई के दौरान शीर्ष कोर्ट ने यह भी कहा कि अब समय आ गया है जब राष्ट्रद्रोह की सीमा तय करनी होगी।

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Supreme Court

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश पुलिस को देशद्रोह के आरोप में दो टीवी चैनलों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने पर रोक लगाई है। इसके साथ ही सुनवाई के दौरान शीर्ष कोर्ट ने यह भी कहा कि अब समय आ गया है जब राष्ट्रद्रोह की सीमा तय करनी होगी। कोरोना काल में मीडिया, सोशल मीडिया पर सरकारी अंकुश से नाखुश सुप्रीम कोर्ट ने तंज कसते हुए उस घटना का जिक्र किया जिसमें पीपीई किट पहने दो लोगों को एक शव नदी में फेंकते देखा गया।

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मीडिया की आजादी खत्म करने की कोशिश
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आंध्र प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि उसे समाचार चैनलों टीवी के खिलाफ कोई कठोर कदम नहीं उठाना चाहिए। न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, एल नागेश्वर राव और एस रविंद्र भट्ट की पीठ ने कहा कि आंध्र प्रदेश सरकार चैनलों के खिलाफ देशद्रोह के मामले दर्ज कर उनको दबा रही है। कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह एफआईआर मीडिया की आजादी को खत्म करने की कोशिश है। यह समय है कि अदालत देशद्रोह को परिभाषित करे।

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4 सप्ताह में जवाब दे राज्य सरकार
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़़ की अध्यक्षता वाली एक विशेष पीठ ने चैनलों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से चार सप्ताह के अंदर अपना जवाब देने के लिए कहा है। बता दें कि इन चैनलों के खिलाफ राजद्रोह सहित विभिन्न अपराधों के लिए आरोप लगाए गए है। इस पर कोर्ट ने कहा कि समाचार चैनलों के कर्मचारियों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।

अपनी राय रखना देशद्रोह नहीं माना जा सकता
आपको बता दें कि इससे पहले मार्च में कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर के सांसद फारुक अब्दुल्ला के मामले में दायर याचिका को निरस्त करते हुए कहा था कि सरकार से अपनी राय रखने को देशद्रोह नहीं माना जा सकता। उस मामले में कोर्ट ने याचिका दाखिल करने वाले पर 50 हजार का जुर्माना भी लगाया था। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना संकट के बीच सोशल मीडिया के जरिए मदद मांग रहे लोगों पर कार्रवाई करने पर राज्य सरकारों को सख्त हिदायत दी थी। अप्रैल में अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोई नागरिक सोशल मीडिया पर शिकायत दर्ज कराता है तो इसे गलत जानकारी नहीं कहा जा सकता है।