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ट्रेंडिंग: सुबह के अर्घ्य के साथ छठ पूजा संपन्न, यमुना किनारे उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब

छठ घाट पर भक्ति में डूबे नजर आए लोग लोकगायन की मधुर ध्‍वनियों से सराबोर रहा वातावरण लोक आस्‍था का पर्व है छठ

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नई दिल्ली। लोक आस्था का महापर्व छठ रविवार की सुबह देश भर में उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ संपन्न हो गया। छठ पर्व के चौथे और अंतिम दिन व्रती और श्रद्धालु अपने परिजनों के साथ रविवार की सुबह नदी, घाटों और तालाबों के किनारे पहुंचे। आज लोगों ने पानी में खड़े होकर उगते सूर्य को दूसरा अर्घ्य दिया।

दिल्ली में यमुना, पटना में गंगा किनारे तो और मुंबई चौपाटी पर श्रद्धालुओं का सैलाब इस मौके पर उमड़ पड़ा। छठ घाट पूरी तरह से भक्ति संगीत व लोकगायन की मधुर ध्‍वनियों से सराबोर रहा।

रविवार की सुबह घुटने तक पानी में खड़े होकर व्रतधारियों ने सूप, बांस की डलिया में मौसमी फल, गन्ना, मूली, गाजर, नारियल, केला, चुकंदर, शकरकंद, अदरख, सेव, संतरा, अंकुरी सहित अन्य पूजन सामाग्री औऱ गाय के दूध से भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया। साथ ही परिवार व समाज के सभी लोगों के सुख समृद्धि की कामना की।

लोक आस्था का यह महापर्व नहाय-खाय के साथ 31 अक्तूबर को शुरू हुआ था। इस पर्व के दूसरे दिन व्रतियों के सूर्यास्त होने पर खरना के तहत रोटी एवं खीर का भोग लगाए जाने के बाद उनके द्वारा रखा गया 36 घंटे का निर्जला उपवास शनिवार की शाम डूबते हुए सूर्य एवं रविवार की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद पारण (भोजन) के साथ संपन्न हो गया।

बता दें कि पंरपरा से आखिरी दिन डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है। इसी के साथ व्रती घाट पर ही पूजा के बाद प्रसाद खाकर अपना व्रत खोलते हैं। 31 अक्टूबर को नहाय खाय के साथ शुरू हुआ ये पर्व सप्तमी को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही समाप्त हुआ।

छठी मैया के वो गाने जिनके बिना है छठ पूजा अधूरी

1. छठि माई के घटवा पर आजन-बाजन बाजा बजवाइब हो। गोदिया में होइहें बलकवा, त अरघ देबे आईब हो।
2. कबहूं न छूटी छठ मइया, हमनी से वरत तोहार, तोहरे भरोसा हमनी के, छूटी नाहीं छठ के त्योहार।
3. चाहे समंदर या तलवा तलैया, हर घाटे होखे ला छठ के पूजैया, गउवां चाहे देख कौनौ शहर, जयकारा ठहरे-ठहर मइया जी राउर सगरो।
4. बेरी-बेरी बिनई अदित देव, मनवा में आह लाई आजु लेके पहली अरघिया, त कालु भोरे जल्दी आईं।
5. केरवा से फरे ला घवद से, ओहपर सुगा मेडराय मारबो रे सुगवा धनुष से, सुगा गिरे मुरुझाय।