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UGC गाइडलाइन: साहित्यिक चोरी पड़ेगा भारी,  न जॉब मिलेगी न प्रमोशन

  इसका मकसद उच्च शिक्षा की गुणवत्ता और विश्वसनीयता को बरकरार रखना अब सलेक्शन और प्रमोशन साहित्यिक चोरी के मूल्यांकन पर आधारित होंगे कंटेंट को रिसाइकिल करने का काम भी इसी दायरे में आएगा

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नई दिल्ली। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ( UGC ) ने शोध कार्य और पेपर पब्लिकेशन के लिए नई गाइडलाइन जारी की है। गाइडलाइन के मुताबिक अपने ही पब्लिश किए जा चुके शोध कार्य, पेपर वर्क या अध्ययन का दोबारा इस्तेमाल करना साहित्यिक चोरी ( Self Plagiarism ) माना जाएगा। ऐसा करने पर जॉब सलेक्शन और प्रमोशन ( Job Selection and Promotion ) रद्द कर दिए जाएंगे। यूजीसी ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया है कि सलेक्शन और प्रमोशन अब साहित्यिक चोरी के मूल्यांकन पर आधारित होंगे।

यूजीसी के इस गाइडलाइन का मकसद भारतीय उच्च शिक्षा के क्षे़त्र में अनुसंधान की गुणवत्ता और विश्वसनीयता को बरकरार रखना है। यूजीसी की ओर से जारी गाइडलाइन के मुताबिक किसी दूसरे व्यक्ति का रिसर्च वर्क चुराना गैर कानूनी तो है ही, अब खुद के कंटेंट को रिसाइकिल करने का काम भी इसी दायरे में आएगा। किसी भी तरह के शैक्षिक लाभ के लिए अपने ही प्रकाशित किए जा चुके शोध कार्य को रीप्रोड्यूस करना, उसके कुछ हिस्से को या पूरे काम को असली होने का दावा करना टेक्स्ट रीसाइक्लिंग माना जाएगा। इस तरह के शोध कार्यों को साहित्यिक चोरी मानते हुए यूजीसी उसे स्वीकार नहीं करेगी।

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इसके साथ ही यूजीसी ने देशभर के सभी विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलर, सलेक्शन कमेटी, स्क्रीनिंग कमेटी और बाकी सभी एक्सपर्ट को ये निर्देश दिए हैं कि किसी भी केंडिडेट का प्रमोशन, सेलेक्शन, क्रेडिट अलाॅटमेंट और रिसर्च डिग्री उसके पब्लिकेशन वर्क पर आधारित होगी। ऐसे में जरूरी है कि केंडिडेट का मूल्यांकन करते हुए यह ध्यान में रखा जाए कि उसका वर्क साहित्यिक चोरी की केटेगरी में न आता हो। यूजीसी ने साफ कर दिया है कि साहित्यिक चोरी प्रमोशन और सलेक्शन में पाए जाने पर एप्लीकेशन रिजेक्ट कर दी जाएगी।

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टेक्स्ट रीसाइक्लिंग क्या है

यूजीसी ने बिना फुल साइटेशन के प्रकाशित हो चुके पेपर को रिपब्लिश करने को टेक्स्ट रीसाइक्लिंग माना है। इतना ही नहीं, बिना साइटेशन के अपने ज्यादा पुराने किसी पिछले वर्क का कुछ हिस्सा या छोटा भाग प्रकाशित करना, पब्लिश हो चुके कार्य के कुछ डाटा का दोबारा इस्तेमाल करना।, बड़ी और लंबी स्टडी के छोटे-छोटे हिस्सों को तोड़कर नया पेपर पब्लिश करन, पहले प्रकाशित हो चुके कार्य के कुछ पैराग्राफ का इस्तेमाल करते हुए उसे ऑरिजनल बताने को भी इसी दायरे में रखा है।