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विदेशी मीडिया में भी छाया भीमा-कोरेगांव हिंसा केस में हुई गिरफ्तारियों का मामला

भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में हुई गिरफ्तारियों के मामले से संबंधित खबरों को विदेशी मीडिया ने भी खास जगह दी है।

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विदेशी मीडिया में भी छाया भीमा-कोरेगांव हिंसा केस में हुई गिरफ्तारियों का मामला

भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इससे देश में राजनीति गर्माई हुई है। विदेशी मीडिया ने भी इसे अलग-अलग तरह से कवरेज दी है। किसी ने इसे इमरजेंसी की सज्ञा दी है, तो कोई इसे मानवाधिकारों के साथ जोड़ रहा है। आइए इस मामले को लेकर दुनिया के भर के मीडिया में हुई कवरेज पर..

बता दें, पांच लोगों की गिरफ्तारी के बाद मामले पर विवाद गहरा गया है। जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया है, उन पर माओवादियों से संबंध होने का आरोप लगाया गया है। मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है।

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पड़ोसी देश पाकिस्तान के प्रमुख अखबार डॉन ने इस मामले पर वामपंथी विचारधारा वाली लेखिका अरुंदति राय के बयान को प्रमुखता से छापा है। अरुंधति के हवाले से लिखा है कि इस मामले में अपराधियों को नहीं, बल्कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया है। साथ ही इस घटना की तुलना इमरजेंसी से भी की है। अखबार में इस खबर को पहले पन्ने पर जगह दी गई है।

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चीन के ‘साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट’ ने अपनी कवरेज में भीमा कोरेगांव मामले में कांग्रेस के विचारों को प्रमुखता दी है। कांग्रेस का बयान प्रकाशित करते हुए वेब ने लिखा है कि मोदी सरकार अपने विरोधियों को जेल में बंद करने का काम कर रही है। वेबसाइट ने पुलिस के उस बयान को भी स्थान दिया है जिसमें कहा गया है कि वामपंथी कार्यकर्ताओं की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और गृह मंत्री राजनाथ सिंह की हत्या के षड्यंत्र से संबंधित पत्रों का अदान-प्रधान किया गया है। इसी वजह से ये गिरफ्तारियां की गई हैं।

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खाड़ी देशों के प्रमुख मीडिया नेटवर्क ‘अल जजीरा’ ने लिखा है कि पुलिस ने वामपंथी विचारधारा से जुड़े उन लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनके प्रतिबंधित माओवादी संगठन से संबंध थे। साथ ही लिखा है कि इन गिरफ्तारियों का पूरे देश में विरोध हो रहा है। कई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने गिरफ्तारी की निंदा की है। रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि भारत सरकार ने अपने विरोधियों के खिलाफ बड़ी कारवाई की है।

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ब्रिटेन के मीडिया हाउस बीबीसी ने अपनी रिपोर्ट में जातीय हिंसा को प्रमुखता दी है। साथ ही लिखा है कि इसी की जांच के कारण गिरफ्तारियां हुई हैं और इसमें अहम भूमिका निभाने के शक में कुछ वामपंथी वकीलों और प्रोफेसर को गिरफ्तार किया गया है।