
नई दिल्ली। अफगानिस्तान में रिपोर्टिंग के दौरान मारे गए भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी (Danish Siddiqui) का शव आज शाम भारत लाया जाएगा। तालिबान लड़ाकों ने एक संघर्ष के दौरान गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उनका शव तालिबान ने अंतरराष्ट्रीय रेडक्रॉस समिति (ICRC) को सौंप दिया था। इसकी जानकारी भारत सरकार को भी दे दी गई थी जिसके बाद भारतीय अधिकारियों ने उनके शव को भारत वापिस लाने की कार्यवाही आरंभ कर दी थी। दानिश सिद्दीकी का नाम विश्व के टॉप फोटो जर्नलिस्ट्स में शामिल किया जाता था।
वह एक अंतरराष्ट्रीय न्यूज एजेंसी के लिए अफगानिस्तान में तालिबान और अफगान सेना के बीच युद्ध कवर कर रहे थे। इसी दौरान कंधार के स्पिन बोल्डक (Spin Boldak Area) क्षेत्र में 16 जुलाई को सेना और तालिबान के बीच हो रही झड़प को कवर करने के दौरान तालिबान द्वारा किए गए एक हमले में उनकी मृत्यु हो गई थी। वह अफगान सुरक्षा बलों के साथ उनके वाहन में सवार थे।
अमरीका ने प्रकट किया दुख
उनकी मृत्यु पर दुख व्यक्त करते हुए अमरीकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता जलीना पोर्टर ने कहा कि सिद्दीकी को उनके काम के लिए जाना जाता था। वह अपनी फोटोज के जरिए मानवीय चेहरों को सामने लाते थे और उनमें छिपी भावनाओं को उजागर करते थे। उन्होंने कहा कि सिद्दीकी की मौत पूरे विश्व के लिए एक बड़ा नुकसान है। उन्होंने तालिबान से हिंसा को रोकने की भी अपील की और कहा कि अफगानिस्तान में आपसी बातचीत के जरिए आगे बढ़ा जा सकता है।
सीपीजे एशिया प्रोग्राम के कोऑर्डिनेटर स्टीव बटलर ने भी उनकी मृत्यु पर दुख प्रकट करते हुए कहा कि दानिश सिद्दीकी की मौत एक दुखद घटना है, चाहे अमरीका व उसके सहयोगी देश अफगानिस्तान से अपनी सेना बुला लें परन्तु पत्रकार अपना काम जारी रखेंगे। उन्होंने तालिबान से अपील करते हुए कहा कि तालिबान के लड़ाकों को पत्रकारों की सुरक्षा की भी जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
तालिबान ने भी उनकी मृत्यु पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी हत्या में तालिबान का हाथ नहीं है। हालांकि अफगान सुरक्षा बलों के अनुसार तालिबान लड़ाकों की गोली से ही दानिश की मृत्यु हुई थी।
मृत्यु से पहले ट्वीटर पर शेयर किए थे हमले के वीडियो
दानिश सिद्दीकी पूरी सक्रियता के साथ अफगानिस्तान में अफगान सेना और तालिबान के बीच छिड़े युद्ध को कवर कर रहे थे। इस दौरान वे अफगान सुरक्षा बलों के साथ थे। उनके काफिले पर हुए हमलों के भी उन्होंने कुछ वीडियो माइक्रोब्लॉगिंग वेबसाइट पर शेयर किए थे।
ऐसी थी दानिश की जीवन यात्रा
दानिश के पिता प्रो. अख्तर सिद्दीकी जामिया मिलिया इस्लामिया में शिक्षा संकाय के डीन पद से रिटायर हुए थे। दानिश का बचपन भी यहीं पर बीता। बड़े हुए तो उनका रुझान फोटोग्राफी की ओर हुआ और उन्होंने जर्नलिज्म में ही पढ़ाई शुरू कर दी। उन्होंने जामिया मिलिया से ही वर्ष 2005-2007 में मास कम्युनिकेशन में मास्टर्स की डिग्री प्राप्त की और एक टीवी न्यूज कॉरेस्पॉन्डेंट के रूप में अपने कॅरियर की शुरूआत की। इसके बाद उन्होंने एक अंतरराष्ट्रीय न्यूज एजेंसी ज्वॉइन कर ली।
रोहिंग्या संकट की कवरेज के लिए दिया गया पुलित्जर अवॉर्ड
दानिश ने कई अंतरराष्ट्रीय समस्याओं की कवरेज के लिए भी काम किया। उन्होंने वर्ष 2016-17 में इस्लामिक स्टेट के उभार के बीच मोसुल की लड़ाई को कवर किया। इसके बाद रोहिंग्या नरसंहार से उत्पन्न शरणार्थी संकट तथा वर्ष 2020 में दिल्ली दंगों की कवरेज की। उन्हें रोहिंग्या शरणार्थी संकट की कवरेज के लिए पुलित्जर अवॉर्ड भी दिया गया।
Published on:
18 Jul 2021 09:56 am
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