
बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने मंगलवार को कोल्हापुर जिले के ऐतिहासिक विशालगड किले (Vishalgad Fort) के परिसर में स्थित हजरत पीर मलिक रेहान दरगाह (Hazrat Peer Malik Rehan Dargah) में बकरीद (7 जून) और उर्स (8 से 12 जून) के अवसर पर जानवर की कुर्बानी की अनुमति दे दी है। कोर्ट ने यह अनुमति कुछ सख्त शर्तों के पालन के साथ दी और स्पष्ट किया कि यह आदेश याचिकाकर्ताओं के साथ-साथ दरगाह में कुर्बानी देने आने वाले श्रद्धालुओं पर भी लागू होगा।
जस्टिस नीला गोखले और जस्टिस फिरदौश पूनावाला की अवकाशकालीन खंडपीठ हजरत पीर मलिक रेहान दरगाह ट्रस्ट (Vishalgad Dargah) की अंतरिम याचिका पर सुनवाई कर रही थी। ट्रस्ट ने राज्य सरकार के विभिन्न विभागों पुरातत्व निदेशालय, कोल्हापुर पुलिस अधीक्षक और जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी द्वारा दरगाह परिसर में पशु और पक्षियों की बलि पर लगाए गए प्रतिबंध को चुनौती दी थी।
प्रशासन का तर्क था कि विशालगड किला एक संरक्षित स्मारक है और महाराष्ट्र प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल अधिनियम, 1962 के अनुसार ऐसे स्थलों पर खाना पकाना और खाना परोसना भी प्रतिबंधित है। प्रशासन ने जानवरों की कुर्बानी को इस नियम का उल्लंघन बताया था।
हालांकि, ट्रस्ट की ओर से वकील सतीश तलेकर और माधवी अय्यप्पन ने दलील दी कि विशालगढ़ दरगाह 11वीं सदी का एक ऐतिहासिक स्थल है, जहां हिंदू और मुस्लिम दोनों ही समुदाय श्रद्धा के साथ आते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि कुर्बानी का स्थान दरगाह परिसर के अंदर नहीं, बल्कि उससे लगभग 1.4 किलोमीटर दूर एक निजी भूमि पर है। साथ ही जानवरों की कुर्बानी सार्वजनिक स्थान पर नहीं बल्कि बंद दरवाजे के अंदर दी जाएगी।
ट्रस्ट ने यह भी कहा कि कुर्बानी के बाद उन जानवरों का मांस श्रद्धालुओं और आसपास के ग्रामीणों को भोजन के रूप में वितरित किया जाता है, जो कई गरीब परिवारों के भोजन का स्रोत रहा है।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद विशालगढ़ दरगाह पर 7 जून को बकरीद (Bakrid) और 8 से 12 जून तक चार दिवसीय उर्स के दौरान पशु वध की अनुमति दी। अदालत ने पिछले साल जून में दिए अपने एक आदेश का हवाला दिया, जिसमें इसी दरगाह में बकरीद और उर्स पर बलि की अनुमति दी गई थी।
हालांकि अदालत ने इस बार भी शर्तों को दोहराते हुए कहा कि पशु या पक्षियों की कुर्बानी केवल बंद परिसर में, निजी जमीन पर ही की जा सकती है। साथ ही किसी भी खुले या सार्वजनिक स्थान पर कुर्बानी की इजाजत नहीं होगी।
बता दें कि विशालगढ़ किले का मराठा इतिहास में गहरा महत्व है क्योंकि छत्रपति शिवाजी महाराज 1660 में पन्हाला किले में घेराबंदी के बाद यहां बचकर आए थे। मराठा शाही परिवार के वंशज और पूर्व सांसद संभाजीराजे छत्रपति ने कुछ महीनों पहले विशालगढ़ किले पर अतिक्रमण को लेकर कहा था कि किले पर बकरे-मुर्गियों का कत्ल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा था कि किले से सभी अतिक्रमणों को हटाया जाना चाहिए, भले वह किसी भी जाति और धर्म के लोगों या फिर सरकार के ही क्यों न हो।
Updated on:
03 Jun 2025 03:41 pm
Published on:
03 Jun 2025 03:34 pm
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