
Hindi Compulsory in Maharashtra : महाराष्ट्र में पहली कक्षा से हिंदी भाषा अनिवार्य किए जाने को लेकर राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ है। इस मुद्दे को महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने जोरशोर से उठाया है। जिसके बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इसका परोक्ष रूप से जवाब देते हुए कहा कि "अंग्रेजी को बढ़ावा दिया जाता है लेकिन हिंदी जैसी भारतीय भाषा का विरोध किया जाता है।" उन्होंने मनसे और शिवसेना (उद्धव ठाकरे) का नाम लिए बिना निशाना साधा। अब मनसे ने भी इस टिप्पणी पर पलटवार किया है और मुख्यमंत्री को खुली चुनौती दी है।
मनसे के मुंबई इकाई के अध्यक्ष संदीप देशपांडे ने सीएम फडणवीस पर पलटवार करते हुए कहा कि यदि मुख्यमंत्री को वास्तव में भाषा को लेकर चिंता है तो पहले वे अंग्रेजी माध्यम की स्कूलों को बंद करके दिखाएं। उन्होंने कहा, "आप सरकार में हैं, ताकत आपके पास है। अगर आपको लगता है कि हिंदी का विरोध किया जा रहा है, तो पहले अंग्रेजी स्कूलों को बंद कर उसकी जगह मराठी स्कूल खोलकर दिखाइए।"
मनसे के प्रवक्ता देशपांडे ने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार पहली भाषा माध्यम की भाषा होनी चाहिए, दूसरी अनिवार्य भाषा मराठी है, जबकि तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को अनिवार्य नहीं रखा गया है। राज्यों को इस तीसरी भाषा के चयन का अधिकार दिया गया है। ऐसे में महाराष्ट्र में हिंदी को जबरन थोपने की कोशिश क्यों की जा रही है। सरकार में शामिल पार्टी को जिम्मेदारी से काम करने की जरूरत है।
मनसे के वरिष्ठ नेता संदीप देशपांडे ने आगे कहा, भाषा के मुद्दे पर हमारे साथ चर्चा कीजिए। भाषा समिति के साथ भी संवाद कीजिए। जब आप कहते हैं 'सबका साथ, सबका विकास', तो फिर सभी के साथ चर्चा भी कीजिए। मुख्यमंत्री फडणवीस कहते हैं कि अंग्रेज़ी का विरोध नहीं किया जाता, लेकिन हिंदी का विरोध होता है। आप तो सरकार में हैं। आप अंग्रेज़ी स्कूलों को बंद कीजिए, हमें कोई आपत्ति नहीं है। अगर हिम्मत है, तो अंग्रेजी स्कूलों को बंद करके दिखाइए और उनकी जगह मराठी स्कूलें शुरू करके दिखाइए।
गौरतलब हो कि महाराष्ट्र के स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के तौर पर शामिल किए जाने पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि महाराष्ट्र में मराठी भाषा अनिवार्य है, सभी को इसे सीखना चाहिए। इसके साथ ही अगर छात्र दूसरी भाषाएं सीखना चाहते हैं तो वो भी सीख सकते हैं। हिंदी का विरोध और अंग्रेजी को बढ़ावा देना आश्चर्यजनक है। अगर कोई मराठी का विरोध करता है तो उसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
राज्य के प्राइमरी स्कूलों (कक्षा 1 से 5 तक) में हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने के फैसले का विरोध सिर्फ राजनीतिक दलों तक सीमित नहीं है। राज्य की कई शैक्षणिक संगठनों ने भी इस निर्णय पर ऐतराज जताया है। संगठनों ने मांग की है कि जब तक उत्तर भारत के स्कूलों में मराठी भाषा नहीं पढ़ाई जाती, तब तक महाराष्ट्र में भी हिंदी को अनिवार्य नहीं किया जाना चाहिए।
Updated on:
21 Apr 2025 11:58 am
Published on:
21 Apr 2025 11:52 am
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