11 दिसंबर 2025,

गुरुवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

महाराष्ट्र में भीख मांगने से जुड़े कानून में बड़ा बदलाव, अब भिखारियों के लिए नहीं इस्तेमाल होगा ये शब्द

सुप्रीम कोर्ट ने इस साल मई में आदेश दिया था कि यह भाषा बदलनी चाहिए, क्योंकि आज के समय में कुष्ठ रोग भारत में लगभग समाप्त हो चुकी है और इसे भिखारियों से जोड़ना गलत और भेदभावपूर्ण है।

2 min read
Google source verification
Maharashtra mahayuti

(Photo: IANS)

महाराष्ट्र विधान परिषद ने महाराष्ट्र प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट 1959 (Maharashtra Prevention of Begging Act 1959) में बड़े संशोधन को मंजूरी दी है। इस संशोधन के तहत अब कानून में इस्तेमाल किए जाने वाले ऐसे सभी शब्द हटा दिए जाएंगे, जिनमें भिखारियों के संदर्भ में “कुष्ठ रोग” या “कुष्ठ रोगी (लेपर)” जैसे अपमानजनक शब्दों का प्रयोग होता था।

सुप्रीम कोर्ट ने इस साल मई में आदेश दिया था कि यह भाषा बदलनी चाहिए, क्योंकि आज के समय में कुष्ठ रोग भारत में लगभग समाप्त हो चुकी है और इसे भिखारियों से जोड़ना गलत और भेदभावपूर्ण है।

कानून में बदलाव क्यों जरूरी था?

सुप्रीम कोर्ट ने 7 मई को फेडरेशन ऑफ लेप्रोसी ऑर्गनाइजेशन की याचिका पर सुनवाई के दौरान साफ निर्देश दिए थे कि कानून से ‘leprosy’ और ‘leper’ जैसे शब्द हटा दिए जाएं। कोर्ट ने कहा कि इन शब्दों का इस्तेमाल न केवल वैज्ञानिक रूप से गलत है, बल्कि इससे समाज में भेदभाव भी बढ़ता है।

इसी निर्देश के बाद महाराष्ट्र सरकार ने एक समिति बनाई, जिसने कानून की समीक्षा कर यह सुझाव दिया कि ऐसे सभी संदर्भ हटाए जाएं, जहां भिखारियों को ‘कुष्ठ रोगी’ कहा गया था। समिति की रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने कानून में संशोधन का प्रावधान तैयार किया। इस संशोधन के तहत कानून की धारा 9 और 26 में बदलाव किया गया है, जहां पहले ‘कुष्ठ रोगी’ शब्द भिखारियों से जोड़कर उपयोग किया जाता था। सरकार ने इसे हटाकर कानून को आधुनिक और मानवीय रूप देने की कोशिश की है।

विधानसभा में हंगामा, विपक्ष ने उठाए सवाल

हालांकि यह बिल समाज के हित में माना जा रहा है, लेकिन विधान परिषद में इसे लेकर काफी हंगामा भी हुआ। विपक्षी विधायकों ने कहा कि सिर्फ शब्द बदलने से काम नहीं चलेगा, सरकार को यह भी बताना चाहिए कि वह भिखारियों के पुनर्वास के लिए क्या ठोस कदम उठा रही है। कुछ विधायकों ने यह भी आरोप लगाया कि बिल की भाषा और उद्देश्य में कई जगह विरोधाभास है।

NCP (SP) के नेता एकनाथ खडसे ने कहा कि शीर्षक और बिल की सामग्री में एकरूपता नहीं है, जिससे भ्रम पैदा होता है। शिवसेना की मनिषा कायंदे और एनसीपी के अमोल मिटकारी ने भी बिल की भाषा और प्रस्तुति पर असंतोष जताया।

इन आपत्तियों के बाद परिषद की उपाध्यक्ष नीलम गोर्हे ने महिला एवं बाल विकास विभाग से स्पष्ट और सुसंगत जानकारी देने को कहा। विवादों के बावजूद, बिल अंततः उच्च सदन में पास कर दिया गया।

सरकार बोली भिखारियों का पुनर्वास हमारी प्राथमिकता

महिला एवं बाल विकास विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सरकार अब इस कानून को सख्ती से लागू करेगी। उन्होंने कहा कि भिखारियों के पुनर्वास के लिए कई कदम पहले ही उठाए जा चुके हैं और आगे और भी योजनाएं तैयार की जा रही हैं। सरकार ने अनेक जिलों में आश्रय गृह स्थापित किए हैं इन आश्रय गृहों को मिलने वाली राशि बढ़ाई है। भिखारियों के बच्चों के लिए विशेष पुनर्वास और शिक्षा कार्यक्रम शुरू किए हैं, ताकि वे भीख नहीं मांगे।

अधिकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कानून में संशोधन करने वाला महाराष्ट्र पहला राज्य बन गया है, जो एक महत्वपूर्ण पहल है।