महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के साथ आने के बाद राजनीतिक समीकरण बदलने कि उम्मीद है। ऊपर से मराठी-गैरमराठी विवाद में ध्रुवीकरण होने की भी संभावना है।
उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के एक ही मंच पर आने के बाद से महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल बढ़ गई है। खासकर मुंबई और उसके उपनगरीय इलाकों में हिंदी भाषा को लेकर मराठी बनाम गैर-मराठी विवाद के उभरने से सत्तारूढ़ महायुति की चिंता बढ़ी है। इस राजनीतिक समीकरण के बदलते स्वरूप को देखते हुए महायुति यानी भाजपा, शिवसेना शिंदे गुट और एनसीपी अजित पवार पूरी तरह से अलर्ट मोड में आ गई है। महायुति के भीतरखाने यह अंदेशा है कि अगर ठाकरे भाईयों की एकता ऐसे ही रही और आगामी चुनाव में दोनों साथ चुनाव लड़ें तो मराठी मतदाताओं के ध्रुवीकरण का खतरा है। इससे महानगरपालिका चुनावों में बड़ा नुकसान हो सकता है।
मुंबई महानगरपालिका चुनावों (BMC Election) की घोषणा जल्द ही होने की संभावना है। इसी पृष्ठभूमि में महायुति ने ‘मिशन मेयर’ के तहत एक सघन रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। इस बार चुनाव जातीय या भाषायी समीकरणों से काफी हद तक प्रभावित हो सकते हैं। मुंबई में मराठी मतदाता लगभग 32 प्रतिशत हैं, जबकि मुस्लिम मतदाता 14 प्रतिशत हैं। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा लगभग 54 प्रतिशत गैर-मराठी जिसमें उत्तर भारतीय, गुजराती, मारवाड़ी मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है, जो परंपरागत रूप से भाजपा के वोट बैंक माने जाते हैं। ऐसे में यदि ठाकरे बंधु मराठी अस्मिता के मुद्दे पर जोर देते हैं, तो इसका सीधा असर भाजपा और शिंदे गुट पर पड़ सकता है।
रिपोर्ट्स कि मानें तो ठाकरे ब्रांड के चलते इस संभावित ध्रुवीकरण को देखते हुए महायुति के तीनों घटक दलों ने एक साझा रणनीति बनाई है। भाजपा पर गैरमराठी मतदाताओं को संगठित करने की जिम्मेदारी होगी, वहीं एनसीपी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, और धार्मिक अल्पसंख्यकों जैसे मतदाताओं को साधने की कोशिश करेगी। दूसरी तरफ, शिंदे गुट इस पर फोकस करेगा कि मराठी मतदाताओं को उद्धव ठाकरे के बजाय अपने पक्ष में कैसे मोड़ा जाए।
सूत्रों के अनुसार, महायुति के शीर्ष नेताओं की इस पर सहमति बन चुकी है कि महानगर पालिका चुनाव केवल पार्टी के बैनर पर नहीं, बल्कि उम्मीदवार की लोकप्रियता और व्यक्तिगत छवि पर अधिक निर्भर होगा। इसी को ध्यान में रखते हुए अगले हफ्ते से सभी घटक दल अपने-अपने स्तर पर उम्मीदवारों को लेकर सर्वेक्षण शुरू करने जा रहे हैं, ताकि सही समय पर जिताऊ चेहरे मैदान में उतारे जा सकें।
राजनीतिक विशेषज्ञ कह रहे हैं कि ठाकरे भाईयों ने मराठी अस्मिता के नाम पर जो माहौल बनाया है, वह यदि और अधिक गर्माया तो वह सिर्फ भाषायी बहस नहीं, बल्कि चुनावी नतीजों को प्रभावित करने वाला मुद्दा बन जाएगा। ठाकरे भाईयों की यह अचानक आई नजदीकी महाराष्ट्र की सियासत को एक नए मोड़ की ओर ले जा रही है। भाजपा नीत महायुति इसे भांप चुकी है और उसी के अनुसार हर कदम सोच-समझकर उठा रही है।
गौरतलब हो कि महाराष्ट्र के 29 नगर निगमों, 248 नगर परिषदों, 32 जिला परिषदों और 336 पंचायत समितियों के चुनाव इस वर्ष के अंत में या अगले वर्ष की शुरुआत में होने वाले हैं। ये चुनाव 2029 में होने वाले अगले विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में सबसे बड़ी चुनावी कवायद है।