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Marathwada Liberation Day 2023: मराठवाड़ा मुक्ति संग्राम दिन आज, जानें इससे जुड़ा रोचक इतिहास

Marathwada Liberation Day 2023 History, Significance: भारत की आजादी के बाद हैदराबाद रियासत को भारत में मिलाने का संघर्ष मुखर हो गया। वंदे मातरम् गाते हुए लोग जुड़ते गए।

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मुंबई

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Dinesh Dubey

Sep 17, 2023

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मराठवाड़ा मुक्ति दिवस 2023 का इतिहास और महत्त्व

Marathwada Mukti Sangram Din History, Significance: मराठवाड़ा मुक्ति दिवस (Marathwada Liberation Day) आज (17 सितंबर) धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। आज के दिन को मराठवाड़ा मुक्ति संग्राम दिवस भी कहा जाता है। तत्कालीन हैदराबाद रियासत का 17 सितंबर 1948 को भारत संघ में विलय हुआ था। यह दिन विशेष रूप से भारतीय सैनिकों द्वारा हैदराबाद रियासत को हराने के बाद मराठवाडा के भारतीय संघ के साथ एकीकरण की याद दिलाता है। इसके पीछे एक अनूठा इतिहास है। तो आईये जानते है इस विशेष दिन से जुड़े ऑपरेशन पोलो (Operation Polo) और हैदराबाद के विलय का इतिहास।

हैदराबाद रियासत के भारतीय संघ में ऐतिहासिक विलय के उपलक्ष्य में 17 सितंबर को हैदराबाद मुक्ति दिवस मनाया जाता है। 'ऑपरेशन पोलो' के नाम से जाना जाने वाला यह दिन पुलिस कार्रवाई का प्रतीक है। जिससे 1948 में निजाम के दमनकारी शासन का अंत किया गया था। यह भी पढ़े-Lalbaugcha Raja Darshan: लालबाग के राजा की पहली झलक आई सामने, देखें बप्पा की मनमोहक तस्वीरें-वीडियो


हैदराबाद रियासत

भारत को अंग्रेजों से आजादी मिलने के एक साल से ज्यादा समय बाद 17 सितंबर 1948 को हैदराबाद निजाम शासन से आजाद हुआ। निजाम के शासनकाल में हैदराबाद रियासत में आज का पूरा तेलंगाना, महाराष्ट्र का मराठवाडा क्षेत्र (जिसमें औरंगाबाद, बीड, हिंगोली, जालना, लातूर, नांदेड, उस्मानाबाद, परभणी जिले है), कर्नाटक का कलबुर्गी, बेल्लारी, रायचूर, यादगिर, कोप्पल, विजयनगर और बीदर जिले शामिल थे।

ऐसे बना विशाल जन आंदोलन

1947 में शेष भारत के स्वतंत्र होने के बाद भी हैदराबाद राज्य के लोगों को स्वाधीनता के लिए और 13 महीने का इंतजार करना पड़ा था। इस दौरान वहां आम लोगों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। जबकि किसानों ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सशस्त्र संघर्ष किया। दुनिया में एकमात्र यही ऐसा संघर्ष है जिसमें किसानों को अपनी जमीन पर उचित अधिकार पाने के लिए हथियार उठाने पड़े थे।

दरअसल भारत की आजादी के बाद हैदराबाद रियासत को भारत में मिलाने का संघर्ष मुखर हो गया। वंदे मातरम् गाते हुए लोग जुड़ते गए और इस आंदोलन में जन भागीदारी अपार हो गयी। कुछ समय में यह संघर्ष हैदराबाद रियासत के भारतीय संघ में विलय की मांग के साथ एक विशाल जन आंदोलन बन गया।

पांच दिनों में निजाम शासन का अंत!

हैदराबाद की मुक्ति भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के ‘ऑपरेशन पोलो’ के तहत त्वरित और समय पर की गई कार्रवाई के कारण संभव हुई। तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने हैदराबाद रियासत के भारतीय संघ में विलय के लिए पुलिसिया कार्रवाई का आदेश दे दिया। बाद में यह सपना तभी हकीकत बना, जब भारतीय सेना ने निजाम शासन और उनकी निजी सेना के राजाकारों के खिलाफ पांच दिनों तक कार्रवाई की।

विलय समझौते पर हस्ताक्षर

सैन्य अभियान में परास्त होने के बाद आखिरकार आसफ जाह वंश के अंतिम निज़ाम, मीर उस्मान अली खान ने 1948 में आज ही के दिन विलय समझौते पर हस्ताक्षर किये। इस वजह से महाराष्ट्र और कर्नाटक की राज्य सरकारें आधिकारिक तौर पर 17 सितंबर को ‘मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाती हैं। यह दिन सही मायनों में मराठवाडा के लिए स्वतंत्रता दिवस से कम नहीं है।