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Marathwada Liberation Day 2025: 5 दिन में निजाम शासन का ‘द एंड’! जानें मराठवाड़ा मुक्ति दिवस से जुड़ा रोचक इतिहास और महत्व

Marathwada Liberation Day 2025 History, Significance: हैदराबाद रियासत के भारतीय संघ में ऐतिहासिक विलय के उपलक्ष्य में हर साल 17 सितंबर को हैदराबाद मुक्ति दिवस मनाया जाता है।

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मुंबई

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Dinesh Dubey

Sep 17, 2025

Marathwada Liberation Day

Sardar Vallabhbhai Patel Operation Polo (Photo: IANS)

Marathwada Mukti Sangram Din History, Significance: 15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिली, लेकिन महाराष्ट्र के आज के मराठवाड़ा को निजाम की हुकूमत से मुक्त होने के लिए और 13 महीने इंतजार करना पड़ा। आखिरकार 17 सितंबर 1948 को मराठवाड़ा निजाम के शासन से आजाद हुआ। इस दिन की याद में हर साल 17 सितंबर को ‘मराठवाड़ा मुक्ति दिवस’ (Marathwada Liberation Day) मनाया जाता है।

छत्रपति संभाजीनगर, लातूर, नांदेड, जालना, धाराशिव, बीड, परभणी और हिंगोली ये आठ जिले मिलकर महाराष्ट्र का मराठवाड़ा क्षेत्र बनाते हैं। मराठवाड़ा मुक्ति संग्राम का इतिहास बेहद प्रेरणादायी है। यही कारण है कि इस दिन राज्यभर में अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, ताकि हर कोई इस इतिहास को जान सके और उसे याद रख सके।

मराठवाड़ा मुक्ति दिवस (Marathwada Mukti Diwas) आज (17 सितंबर) को धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। इस दिन को मराठवाड़ा मुक्ति संग्राम दिवस भी कहा जाता है। तत्कालीन हैदराबाद रियासत का 17 सितंबर 1948 को भारत संघ में विलय हुआ था। यह दिन भारतीय सैनिकों द्वारा हैदराबाद रियासत को हराने के बाद मराठवाडा के भारतीय संघ के साथ एकीकरण की याद में मनाया जाता है। इसके पीछे एक अनोखा इतिहास है। तो आइए जानते हैं इस खास दिन से जुड़ा ऑपरेशन पोलो (Operation Polo) और हैदराबाद के विलय का रोचक इतिहास।

हैदराबाद रियासत के भारतीय संघ में ऐतिहासिक विलय के उपलक्ष्य में हर साल 17 सितंबर को हैदराबाद मुक्ति दिवस मनाया जाता है। ‘ऑपरेशन पोलो’ के नाम से जाना जाने वाला यह दिन पुलिस कार्रवाई का प्रतीक है। जिससे 1948 में निजाम के दमनकारी शासन का अंत किया गया था।

हैदराबाद रियासत

भारत को अंग्रेजों से आजादी मिलने के एक साल से ज्यादा समय बाद 17 सितंबर 1948 को हैदराबाद निजाम शासन से आजाद हुआ। निजाम के शासनकाल में हैदराबाद रियासत में आज का पूरा तेलंगाना, महाराष्ट्र का मराठवाडा क्षेत्र (जिसमें औरंगाबाद, बीड, हिंगोली, जालना, लातूर, नांदेड, उस्मानाबाद, परभणी जिले है), कर्नाटक का कलबुर्गी, बेल्लारी, रायचूर, यादगिर, कोप्पल, विजयनगर और बीदर जिले शामिल थे।

जन आंदोलन ने तोड़ी निजाम शासन की कमर

1947 में शेष भारत के स्वतंत्र होने के बाद भी हैदराबाद राज्य के लोगों को स्वाधीनता के लिए 13 और महीने का इंतजार करना पड़ा। इस दौरान वहां की आम जनता को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। किसानों ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सशस्त्र संघर्ष किया। यह दुनिया का एकमात्र ऐसा संघर्ष था जिसमें किसानों को अपनी जमीन पर उचित अधिकार पाने के लिए हथियार उठाने पड़े थे।

दरअसल भारत की आजादी के बाद हैदराबाद रियासत को भारत में मिलाने का संघर्ष मुखर हो गया। वंदे मातरम् गाते हुए लोग जुड़ते गए और इस आंदोलन में जन भागीदारी अपार हो गयी। कुछ समय में यह संघर्ष हैदराबाद रियासत के भारतीय संघ में विलय की मांग के साथ एक विशाल जन आंदोलन बन गया। इस वजह से हैदराबाद रियासत की कुर्सी डगमगाने लगी।

ऐसे हुआ निजाम शासन का अंत

हैदराबाद की मुक्ति में भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल का योगदान बेहद अहम रहा। उनके ‘ऑपरेशन पोलो’ के तहत त्वरित और समय पर की गई कार्रवाई के कारण यह संभव हुआ। तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने हैदराबाद रियासत के भारतीय संघ में विलय के लिए पुलिसिया कार्रवाई का आदेश दे दिया। भारतीय सेना ने निजाम शासन और उनकी निजी सेना के राजाकारों के खिलाफ पांच दिनों तक कार्रवाई की और यह सपना हकीकत बन गया।

सैन्य अभियान में मात खाने के बाद आखिरकार आसफ जाह वंश के अंतिम निज़ाम, मीर उस्मान अली खान ने 17 सितंबर 1948 में विलय समझौते पर हस्ताक्षर किये। इस वजह से महाराष्ट्र और कर्नाटक की राज्य सरकारें आधिकारिक तौर पर 17 सितंबर को ‘मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाती हैं। सही मायनों में यह दिन मराठवाडा क्षेत्र के लिए स्वतंत्रता दिवस से कम नहीं है।