आज भी बड़े पैमाने पर लोग वडाला के संगम नगर इलाके में सॉल्ट पेन की खाली जमीन पर खुले में शौच के लिए जाते हैं। जबकि संगम नगर से सटी बड़ी स्लम एरिया है और सामने एक कॉलेज भी है। इसी प्रकार माहिम, मंडाला जैसे इलाकों में भी लोग खुले में शौच के लिए जाते हैं। पूर्वी उपनगर और पश्चिम उपनगर में कई इलाकों में कुछ लोग आज भी रेलवे की पटरियों के आसपास शौचालय को जाते हैं।
करीब 25 लोगों पर एक शौचालय है। इसके साथ ही वहां काफी लंबी लाइन होती है, जिससे बहुत ज्यादा समय खराब होता है। जिसकी वजह से लोग थोड़ा दूर ही सही खुले में चले आते हैं। वहीं, झोपड़पट्टियों में बने शौचालय का दरवाजे टूटे है, पानी की व्यवस्था भी नहीं रहती। स्वच्छ भारत अभियान के तहत साल 2022 की रैंकिंग में मुंबई की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। लेकिन अभी भी मुंबई देश में टॉप 30 से बाहर है।
साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, मुंबई में करीब 52 लाख लोग झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं, जो मुंबई की कुल आबादी का 42 फीसदी था। जबकि 10 साल बाद मुंबई में ये आबादी बढ़ कर करीब 60 लाख हो गई है। इस आंकड़े के मुताबिक, मुंबई में कुल 2.50 लाख सार्वजनिक शौचालय होने चाहिए। लेकिन अभी मुंबई में सिर्फ एक लाख बीस हजार के आसपास ही शौचालय हैं। जिनका निर्माण म्हाडा और बीएमसी द्वारा किया गया है।
1769 महिलाओं पर केवल एक टॉयलेट: बता दें कि प्रजा फाउंडेशन ने पिछले दिनों बताया था कि मुंबई में 1769 महिलाओं पर केवल एक टॉयलेट की व्यवस्था है। वहीं 696 पुरुषों पर एक टॉयलेट है। साल 2018 में यह देखा गया कि 4 सार्वजनिक शौचालयों में से सिर्फ 1 महिलाओं के लिए था। केंद्र सरकार द्वारा शुरू किए गए स्वच्छ भारत अभियान के तहत तय किए गए मानक 100-400 पुरुषों तथा 100-200 महिलाओं के लिए 1 शौचालय से बहुत कम है।
इस मामले में बीएमसी के एक अधिकारी ने बताया कि साल 2014 में स्वच्छता अभियान शुरू होने के बाद बीएमसी को घरेलू टॉयलेट बनाने के लिए हजारों आवेदन आए, लेकिन शर्तों को पूरा न करने की वजह से आधे को ही मंजूरी दी गई। उसमें से भी महज 20 फीसदी टॉयलेट बनाए गए है। इसका सबसे बड़ा कारण जमीन की कमी, सीवेज लाइन बिछाने के निर्माण के लिए कम जगह और पहाड़ी इलाका हैं।