scriptमुंबई में 1750 से अधिक महिलाओं पर केवल एक टॉयलेट, खुले में शौच से मुक्ति के दावे निकले झूठे | Only one toilet on more than 1750 women in Mumbai, claims of freedom from open defecation turned out to be false | Patrika News

मुंबई में 1750 से अधिक महिलाओं पर केवल एक टॉयलेट, खुले में शौच से मुक्ति के दावे निकले झूठे

locationमुंबईPublished: Oct 03, 2022 07:49:53 pm

Submitted by:

Siddharth

निताई मेहता ने बताया कि साल 2015 में स्वच्छ भारत अभियान के तहत किए गए शौचालय सर्वे के रिजल्ट बताते हैं कि मुंबई में महज 28 फीसदी ही शौचालय पाइप सीवरेज प्रणाली से जुड़े थे। वहीं 78 फीसदी शौचालयों में पानी के कनेक्शन की कोई सही व्यवस्था नहीं थी। जबकि शौचालय ब्लॉकों में से करीब 58 फीसदी में बिजली की सुविधा उपलब्ध नहीं थी।

open_toilet.jpg

Open Toilet

देश के पीएम नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान के तहत मुंबई को साल 2017 में ही खुले में शौच से मुक्ति का सर्टिफिकेट मिल गया था, लेकिन 5 साल भी मुंबई के कई इलाकों में लोग खुले में शौच जाने पर मजबूर हैं। मुंबई में गोवंडी, कुर्ला, चेंबूर, मानखुर्द, मालाड हिल, देवनार, शिवाजी नगर, वडाला, एंटॉप हिल , माहिम जैसे इलाकों में आज भी लोग सुबह-शाम खुले में शौच में जाते हैं।
आज भी बड़े पैमाने पर लोग वडाला के संगम नगर इलाके में सॉल्ट पेन की खाली जमीन पर खुले में शौच के लिए जाते हैं। जबकि संगम नगर से सटी बड़ी स्लम एरिया है और सामने एक कॉलेज भी है। इसी प्रकार माहिम, मंडाला जैसे इलाकों में भी लोग खुले में शौच के लिए जाते हैं। पूर्वी उपनगर और पश्चिम उपनगर में कई इलाकों में कुछ लोग आज भी रेलवे की पटरियों के आसपास शौचालय को जाते हैं।
यह भी पढ़ें

Mumbai News: टाइम टेबल में हुए बदलाव की वजह से छूटी 50 यात्रियों की ट्रेन, लोगों ने दर्ज कराई शिकायत

करीब 25 लोगों पर एक शौचालय है। इसके साथ ही वहां काफी लंबी लाइन होती है, जिससे बहुत ज्यादा समय खराब होता है। जिसकी वजह से लोग थोड़ा दूर ही सही खुले में चले आते हैं। वहीं, झोपड़पट्टियों में बने शौचालय का दरवाजे टूटे है, पानी की व्यवस्था भी नहीं रहती। स्वच्छ भारत अभियान के तहत साल 2022 की रैंकिंग में मुंबई की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। लेकिन अभी भी मुंबई देश में टॉप 30 से बाहर है।
साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, मुंबई में करीब 52 लाख लोग झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं, जो मुंबई की कुल आबादी का 42 फीसदी था। जबकि 10 साल बाद मुंबई में ये आबादी बढ़ कर करीब 60 लाख हो गई है। इस आंकड़े के मुताबिक, मुंबई में कुल 2.50 लाख सार्वजनिक शौचालय होने चाहिए। लेकिन अभी मुंबई में सिर्फ एक लाख बीस हजार के आसपास ही शौचालय हैं। जिनका निर्माण म्हाडा और बीएमसी द्वारा किया गया है।
1769 महिलाओं पर केवल एक टॉयलेट: बता दें कि प्रजा फाउंडेशन ने पिछले दिनों बताया था कि मुंबई में 1769 महिलाओं पर केवल एक टॉयलेट की व्यवस्था है। वहीं 696 पुरुषों पर एक टॉयलेट है। साल 2018 में यह देखा गया कि 4 सार्वजनिक शौचालयों में से सिर्फ 1 महिलाओं के लिए था। केंद्र सरकार द्वारा शुरू किए गए स्वच्छ भारत अभियान के तहत तय किए गए मानक 100-400 पुरुषों तथा 100-200 महिलाओं के लिए 1 शौचालय से बहुत कम है।
इस मामले में बीएमसी के एक अधिकारी ने बताया कि साल 2014 में स्वच्छता अभियान शुरू होने के बाद बीएमसी को घरेलू टॉयलेट बनाने के लिए हजारों आवेदन आए, लेकिन शर्तों को पूरा न करने की वजह से आधे को ही मंजूरी दी गई। उसमें से भी महज 20 फीसदी टॉयलेट बनाए गए है। इसका सबसे बड़ा कारण जमीन की कमी, सीवेज लाइन बिछाने के निर्माण के लिए कम जगह और पहाड़ी इलाका हैं।

ट्रेंडिंग वीडियो