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Shiv Sena: व्हिप से लेकर शिंदे की नियुक्ति तक… जिसे सुप्रीम कोर्ट ने माना अवैध, स्पीकर ने बताया ‘वैध’

MLA Disqualification Case: स्पीकर ने कहा कि शिवसेना प्रमुख के पास किसी भी नेता को पार्टी से निकालने का अधिकार नहीं है।  

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मुंबई

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Dinesh Dubey

Jan 10, 2024

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एकनाथ शिंदे की हुई शिवसेना

Shiv Sena: महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने आज शिवसेना विधायक अयोग्यता मामले पर फैसला सुनाया। नार्वेकर ने एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाले धड़े को असली शिवसेना बताया है। उन्होंने पार्टी के संविधान, नेतृत्व संरचना और विधायक दल पर विचार करने के बाद यह निर्णय लिया।

चुनाव आयोग ने भी पिछले साल शिंदे की शिवसेना को असली शिवसेना माना था। विधानसभा अध्यक्ष ने यह भी कहा कि 2018 में पार्टी संविधान में किए गए बदलाव की जानकारी चुनाव आयोग के पास नहीं है। साथ ही पार्टी के भीतर कोई चुनाव भी नहीं कराया गया। उन्होंने शिवसेना का 1999 का संविधान ही वैध माना। यह भी पढ़े-एकनाथ शिंदे ही बने रहेंगे महाराष्ट्र के CM, असली शिवसेना का तमगा बरकरार, उद्धव ठाकरे के हाथ लगी निराशा

राहुल नार्वेकर ने उद्धव गुट की उस दलील को भी खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने खुद को असली शिवसेना पार्टी बताया था। नार्वेकर ने कहा कि शिवसेना प्रमुख का पद संवैधानिक नहीं है और राष्ट्रीय कार्यकारिणी ही सबसे ऊपर है। उद्धव ठाकरे के पास एकनाथ शिंदे को पार्टी नेता के पद से हटाने का अधिकार नहीं था। यह फैसला राष्ट्रीय कार्यकारिणी ही कर सकती है। साथ ही उन्होंने दोनों गुटों के विधायकों को भी अपात्र नहीं ठहराया है।

सुप्रीम कोर्ट के कौन से फैसले बदले?

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने पिछले साल महाराष्ट्र के सत्ता संघर्ष पर फैसला सुनाते हुए विधानसभा अध्यक्ष को कुछ निर्देश दिए थे। गुवाहाटी में शिंदे गुट ने भरत गोगावले को मुख्य सचेतक नियुक्त किया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस नियुक्ति को अवैध करार दिया था। हालांकि आज विधानसभा अध्यक्ष ने गोगावले को मुख्य सचेतक नियुक्त किये जाने को वैध माना है।

इसके अलावा शिंदे समूह ने एकनाथ शिंदे को अपना विधायी समूह नेता नियुक्त किया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस नियुक्ति को भी रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि व्हिप के तौर पर भरत गोगावले की नियुक्ति अवैध थी और यह पता लगाने का कोई प्रयास नहीं किया गया कि आधिकारिक व्हिप कौन था।

महाराष्ट्र में सत्ता संघर्ष के मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका की भी आलोचना की थी। एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बागी गुट ने दावा किया था कि हमारे पास विधायकों का बहुमत है, इसलिए कानूनी तौर पर हम 'विधायक दल' हैं। शिंदे खेमे ने यह भी दावा किया था कि चूंकि हम 'विधायक दल' हैं, इसलिए हमें पार्टी का नेता नियुक्त करने का अधिकार है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने शिंदे गुट के दावे को खारिज कर दिया और स्पष्ट किया कि समूह के नेता के रूप में एकनाथ शिंदे का चुनाव करना अवैध करार दिया।

शीर्ष कोर्ट ने कहा, अयोग्यता से बचने के लिए हम ही असली पक्ष हैं, यह बचाव का तरीका नहीं हो सकता है। कोई भी गुट किसी पार्टी पर दावा नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया था कि कार्रवाई से बचने का यह दावा बेतुका है।

सुप्रीम कोर्ट ने सुनील प्रभु के बतौर व्हिप चुनाव को बरकरार रखा था। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया था कि व्हिप की नियुक्ति का अधिकार राजनीतिक दल का होता है। हालांकि, विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने सुनील प्रभु को व्हिप नहीं माना और कहा कि उन्हें विधानमंडल की बैठक बुलाने का कोई अधिकार नहीं था। स्पीकर ने कहा कि शिवसेना (यूबीटी) के सुनील प्रभु 21 जून 2022 से व्हिप नहीं रहे। अपने फैसले में स्पीकर ने यह भी कहा कि शिवसेना प्रमुख के पास किसी भी नेता को पार्टी से निकालने की शक्ति नहीं है।