
Health insurance also covers diseases caused by air pollution
नई दिल्ली। देश के लगभग सभी metro cities इन दिनों Air Pollution से जूझ रहे हैं। इसकी वजह से लोग गंभीर रूप से प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर हैं, जो कि उनकी सेहत और स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डाल रही है। भारत में Health Risk Ranking के लिहाज से वायु प्रदूषण , अब मृत्यु होने की तीसरी सबसे बड़ी वजह बन चुका है। ऐसे में प्रदूषण से होने वाली बीमारी को कवर करने वाला health insurance का मुद्दा जरूरी हो गया है। प्रदूषण से होने वाली बीमारियों का इलाज ज्यादातर लोग General OPD में कराते हैं क्योंकि इन बीमारियों में अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं पड़ती। भारत में अब तक Health Insurance Plan में ओपीडी इलाज में हुए खर्च की भरपाई नहीं होती थी, लेकिन अब कई इंश्योरेंस प्लान ऐसे हैं जो ओपीडी पर हुए खर्च समेत कई ऐसे इलाज, जिनके लिए अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं पड़ती, उनकी भी भरपाई करते हैं।
बढ़ रही है Familly health insurance plan पर जागरुकता
पॉलिसी बाजार के हेल्थ इंश्योरेंस हेड अमित छावड़ा ने कहा कि जिन लोगों के घर में बच्चे और वृद्ध माता-पिता हों, उन्हें Familly Health Insurance Plan जरूर लेना चाहिए। बच्चे और वृद्ध नागरिक प्रदूषण जनित रोगों से जल्दी प्रभावित होते हैं। उनकी रोगप्रतिरोधी क्षमता कमजोर होती है। इसीलिए उनके गंभीर रूप से बीमार पडऩे का खतरा ज्यादा होता है। इसके लिए कई अच्छे इंश्योरेंस प्लान हैं। उन्होंने कहा कि भारत में इंश्योरेंस प्लान को को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ रही है। चूंकि प्रदूषण के कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं के मामले भारत में काफी हैं, इसीलिए अपने स्वास्थ्य की सुरक्षा और इलाज के लिए जरूरी खर्चो की पूर्ति के लिए इंश्योरेंस जरूरी है।
यह भी होता है कवर
उन्होंने कहा कि अगर आप इलाज की पद्धति बदलना चाहें, तो आप आयुष का भी फायदा ले सकते हैं। इसमें आयुर्वेद, होम्योपैथी, यूनानी और सिद्धा पद्धति से हुए इलाज का खर्च भी कवर होता है। मनचाहा इलाज चुनने की आजादी और उस पर होने वाले खर्च की पूरी कवरेज की सुविधा देने वाली हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी की मदद से प्रदूषण से होने वाली बीमारियों का अच्छा इलाज करवाया जा सकता है।
कई बीमारियां ले रही हैं जन्म
पर्यावरण संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट ( Center for Science and Encounter ) की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक बाहरी और घरेलू वायु प्रदूषण मिलकर, कुछ गंभीर बीमारियों को जन्म दे रहे हैं। वायु प्रदूषण के लिए बाहरी धूल के महीन कण यानी पार्टिकुलेट मैटर 2.5, ओजोन और घरेलू वायु प्रदूषण जैसे तत्व जिम्मेदार हैं। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि वायु प्रदूषण से क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मनरी डिजीज जैसी सांस की गंभीर बीमारियों के 49 फीसदी मामले सामने आते हैं और ये इस बीमारी से होनेवाली करीब आधी मौतों के लिए जिम्मेदार है। यही नहीं फेफड़े के कैंसर से करीब 33 फीसदी लोगों की मौत होती है।
WHO की भी रिपोर्ट
साल 2016 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के मुताबिक, विश्व के 20 में से 14 सबसे प्रदूषित शहर भारत में हैं। भारी धुंध के कारण पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी का ऐलान, विमान सेवाएं रद्द करने, स्कूल बंद करने और राजनीतिक उठापटक के कई उदाहरण देखने को मिल चुके हैं। कई चिकित्सकों का भी ये कहना है कि 30 साल पहले तक उनके पास आने वाले लंग कैंसर के मरीजों में 80 से 90 फीसदी मरीज धूम्रपान करने वाले होते थे। इनमें से ज्यादातर 50 से 60 वर्ष की उम्र के पुरुष होते थे। लेकिन पिछले छह सालों में, लंग कैंसर के आधे से ज्यादा मरीज ऐसे रहे जिन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया और इनमें करीब 40 फीसदी संख्या महिलाओं की रही।
Updated on:
19 Nov 2019 04:27 pm
Published on:
19 Nov 2019 01:01 pm
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