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बारह ज्योतिर्लिंगों के समान फलकारी है परशुराम द्वारा स्थापित ये शिवलिंग

कांवड़ स्पेशलः महाशिवरात्रि पर बीस लाख कांवड़िए इस शिवलिंग पर चढ़ाने हैं जल

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lokesh verma

Jul 23, 2016

Pura Mahadev

Pura Mahadev

बागपत।
शिव भक्त परशुराम की भक्ति की मिसाल दी जाती है। वह जितने बड़े शिव भक्त थे उतने ही बड़े पितृ भक्त भी थे। यहां तक कि अपने पिता के कहने पर उन्होंने अपनी मां की गर्दन धड़ से अलग कर दी थी, लेकिन इसी पश्चताप में फिर उन्होंने बागपत के पुरा गांव में शिवलिंग की स्थापना की और शिव भक्ति की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनकी मां को फिर से जीवित कर दिया था। वर्तमान समय में पुरा महादेव मंदिर नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर शिव भक्तों की आस्था का केंद्र है। महाशिवरात्रि पर यहां बीस लाख कांवड़िए जल चढ़ाने आते हैं। परशुराम द्वारा स्थापित इस शिवलिंग की मान्यता बारह ज्योतिर्लिंगों के समकक्ष मानी जाती है। हरिद्वार से गंगाजल लेकर कांवड़िए करीब 180 किलोमीटर की यात्रा करके यहां पहुंचते हैं।


कजरी वन पहुंचे राजा सहस्त्रबाहु


यह क्षेत्र पहले कजरी वन नाम से जाना जाता था। इसी वन में परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि अपनी पत्नी रेणुका और पुत्रों के साथ रहते थे। एक बार राजा सहस्‍त्रबाहु शिकार के लिए कजरी वन आए तो रेणुका ने कामधेनु की सहायता से उनका राजसी भोज से सत्‍कार किया। राजा ने सोचा कि एक ऋषि वन में रहकर इतना अच्छा भोजन कैसे उपलब्ध करा सकता है? राजा के सैनिकों ने राजा को बताया कि ऋषि के पास कामधेनु नाम की गाय है। उस गाय से जो मांगों मिल जाता है। राजा को बात खटक गयी कि एक ऋषि ऐसी गाय का क्या कर रहा है।


किवंदति नंबर एक

राजा ने कामधेनु को अपने साथ ले जाने की इच्‍छा जताई तो रेणुका ने इंकार कर दिया। इससे क्रोधित होकर राजा, रेणुका को जबरन अपने महल में ले गया। वहां राजा सहस्‍त्रबाहु की रानी ने उन्‍हें चुपके से मुक्‍त कर दिया। रेणुका वापस आश्रम लौटी तो जमदग्नि ने रेणुका को अपवित्र बताकर आश्रम से जाने का आदेश दिया।


रेणुका ने जमदग्नि से मोक्ष प्राप्ति के लिए उनका गला दबा देने की गुहार लगाई। इस पर जमदग्नि ने वहां मौजूद चारों पुत्रों को अपनी माता की हत्‍या करने का आदेश दिया। तीन पुत्रों ने इसे महापाप बताते हुए आदेश मानने से इंकार कर दिया मगर परशुराम ने पिता के आदेश का पालन करते हुए माता का सिर धड़ से अलग कर दिया।


माता की हत्‍या की ग्‍लानि से परशुराम काफी अशांत हो गए। उन्होंने आत्‍मशांति के लिए कजरी वन के निकट शिवलिंग स्‍थापित कर भगवान शिव की घोर तपस्‍या की। शिव ने प्रसन्‍न होकर उनकी माता रेणुका को भी जीवित कर दिया।


किवंदति नंबर दो


वहीं एक अन्य किवंदति के अनुसार दावत के बाद राजा ने ऋषि को वह गाय देने को कहा तो ऋषि ने मना कर दिया। ऋषि के मना करते ही राजा ने ऋषि (परशुराम के पिता) को मार दिया। इसके बाद राजा गाय भी साथ ले गया। परशुराम को पता लगा तो उसने राजा को मार ड़ाला और अपनी भक्ति से पिता को फिर से जिंदा कर लिया। ऋषि को पता लगा कि परशुराम ने राजा को मार ड़ाला है तो ऋषि ने परशुराम को प्रायश्चित करने को कहा। परशुराम ने शिवलिंग की स्थापना की और गंगा जल लाकर शिवलिंग का जल से अभिषेक करते रहे। इसके बाद कालांतर में परशुराम की मृत्यु हो गई और उनके द्वारा स्थापित शिवलिंग भी धरती में दब गया।


रानी ने बनाया मंदिर


परशुराम का बनाया शिव मन्दिर भी समय बीतते खंड़हर में बदल गया। एक दिन लंडौरा की रानी इधर घूमने निकली तो रानी का हाथी यहां एक जगह आकर अटक गया। महावत की पुरजोर कोशिश के बाद भी हाथी वहां से नहीं निकल पाया। आखिरकार रानी ने यह स्थान खुदवाया तो पता लगा कि यहां तो एक शिवलिंग है तो रानी ये यहां पर मंदिर का निर्माण कराया। बताया जाता है कि यहां पर जगतगुरु शंकराचार्य कृष्ण बोध महाराज ने तपस्या भी की है उन्हीं ने पुरामहादेव समिति की स्थापना की।

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