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प्रदेश में अभियोजन स्वीकृति 600 प्रकरण लम्बित, विभागों की चुप्पी बनी बड़ी बाधा

अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार निरोधक दिवस पर विशेष रिपोर्ट : 15 साल पुराने भ्रष्टाचार मामलों पर भी कार्रवाई नहीं, रिश्वत लेते पकड़े जाने के बाद संबंधित विभाग नहीं देते कार्रवाई की स्वीकृति, कई कार्मिक हो गए रिटायर, सबसे ज्यादा लम्बित प्रकरण स्वायत्त शासन विभाग के, 23 विभाग ऐसे जिनके एक-एक प्रकरण लम्बित

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Rajasthan ACB

फोटो- पत्रिका नेटवर्क

नागौर. राजस्थान में भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई की सबसे बड़ी बाधा अब जांच नहीं, बल्कि विभागों की ओर से अभियोजन स्वीकृति देने में हो रही देरी बन गई है। एसीबी (भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो) की ओर से विभिन्न विभागों के कार्मिकों व अधिकारियों के खिलाफ दर्ज किए गए लगभग 600 प्रकरण वर्षों से लंबित पड़े हैं। कई मामलों में तो 15 साल बीत जाने के बाद भी विभागों ने कार्रवाई मंजूर नहीं की, जिससे कानून का पूरा ढांचा सवालों के घेरे में है।

राज्य में भ्रष्टाचार से लड़ाई को प्रभावी बनाने के लिए अभियोजन स्वीकृति की यह गांठ खोलना सबसे जरूरी है। वर्तमान की तस्वीर यह है कि भ्रष्टाचार पकड़ में तो आ जाता है, लेकिन कार्रवाई की अंजाम तक पहुंच ही नहीं पाती।

स्वायत्त शासन विभाग के सबसे अधिक प्रकरण लटकाए हुए

सभी विभागों में सबसे ज्यादा लंबित प्रकरण स्वायत्त शासन विभाग के हैं, जहां रिश्वत लेते पकड़े गए कई कार्मिकों के विरुद्ध आज तक विभागीय अनुमति तक जारी नहीं की गई। वहीं 23 विभाग ऐसे हैं जिनमें एक-एक प्रकरण सालों से लंबित है, बावजूद इसके कि एसीबी ने जांच पूरी कर दी और आरोप पक्के पाए।

रिश्वत लेते पकड़े गए, लेकिन कार्रवाई का इंतजार

एसीबी की गिरफ्त में आने के बावजूद भ्रष्टाचार के आरोपियों को वास्तविक कानूनी कार्रवाई का सामना नहीं करना पड़ रहा है, क्योंकि विभागीय स्वीकृति के बिना कोर्ट में आरोप पत्र दायर नहीं किया जा सकता। इसमें कई कर्मचारी रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़े गए, जिसको लेकर एसीबी ने जांच के बाद फाइल आगे बढ़ा दी, लेकिन संबंधित विभागों ने न तो अनुमति दी, न ही किसी प्रकार की विभागीय कार्रवाई की। कई मामले तो ऐसे हैं जिनमें विभाग ने स्वीकृति देने से ही मना कर दिया। स्थिति यह है कि कई आरोपी कर्मचारी अब रिटायर हो चुके हैं, लेकिन प्रकरण आज भी फाइलों में धूल फांक रहे हैं।

प्रदेश में विभागवार लम्बित अभियोजन स्वीकृति के मामले

विभाग - लम्बित मामले

कार्मिक विभाग - 42

राजस्व - 60

पंचायत - 49

ग्रामीण विकास - 32

पुलिस - 42

जल संसाधन विभाग - 7

पीएचईडी - 12

चिकित्सा - 7

स्वायत्त शासन - 144

ऊर्जा - 30

बाल अधिकारिता - 7

सहकारिता - 19

शिक्षा - 16

परिवहन - 10

श्रम विभाग एवं श्रम कौशल नियोजन एवं उद्यमिता - 5

खजिन - 11

वन - 14

राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम - 10

सार्वजनिक निर्माण विभाग - 7

एक से पांच तक लम्बित मामलों वाले विभाग

उद्योग के 5, पंजीयन एवं मुद्रांक के 4, कोष एवं लेखा के 3, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता के 3, नगरीय विकास के 5, पशुपालन के 2, गृह रक्षा के 3, महालेखा के 5, रेल के 3, सीजीएसटी के 4, बैंक के 2, विश्वविद्यालय के 3, रीको के 2, वाणिज्यिक कर के 2, महाराष्ट्र पुलिस के 3, हरियाणा पुलिस के 2, एक्स सर्विसमैन के 2 मामले लम्बित हैं। इसी प्रकार राज्य बीमा एवं प्रावधायी निधि, कारागार, नारकोटिक्स, आयकर, एसबीआई जनरल इंश्योरेंस कम्पनी, कर्नाटक पुलिस, आरएसआरडीसी, डेयरी, गृह रक्षा, राजस्थान खादी एवं ग्रामोद्योग, औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान, तकनीकी शिक्षा, श्री आसरा विकास संस्थान, महिला एवं बाल विकास विभाग, कृषि, उप निवेशन, जल ग्रहण विकास एवं भू संरक्षण सहित अन्य विभागों के एक-एक मामले लम्बित चल रहे हैं।

कानूनी ढांचा भी हुआ बेअसर

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अनुसार, सरकारी कर्मचारी के खिलाफ कोर्ट में कार्रवाई शुरू करने के लिए विभाग की स्वीकृति अनिवार्य है। लेकिन विभागों की सुस्ती और गलत मिसाल बनने के डर ने इस प्रक्रिया को लगभग निष्क्रिय कर दिया है। कानूनविदों का कहना है कि ‘जब तक अभियोजन स्वीकृति की बाधा दूर नहीं होती, तब तक भ्रष्टाचार के मामले न्यायिक प्रणाली में प्रवेश ही नहीं कर पाते’।

अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार निरोधक दिवस पर बड़ा सवाल

9 दिसम्बर को मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार निरोधक दिवस पर यह स्थिति की पारदर्शी कानून व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न खड़े करती है -

- क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ एसीबी की कार्रवाई सिर्फ कागजी रह जाएगी?

- क्या विभाग अपने ही कर्मचारियों को बचाने के लिए नियमों का दुरुपयोग कर रहे हैं?

- क्या आम नागरिकों का विश्वास इस व्यवस्था में बचा रह पाएगा?

समाधान क्या?

विशेषज्ञों के अनुसार - अभियोजन स्वीकृति की समय सीमा कानूनन तय की जाए।

- विभागों में जवाबदेही तय कर देरी करने पर व्यक्तिगत जिम्मेदारी सुनिश्चित की जाए।

- फाइलों को पेंडिंग रखने की प्रवृत्ति पर कड़े दंडात्मक प्रावधान लाए जाएं।

देरी से भ्रष्टाचारियों को समय पर सजा नहीं मिल पाती

अभियोजन स्वीकृति में विभागीय स्तर पर होने वाली देरी भ्रष्टाचार के मामलों में सबसे बड़ी बाधा है। अभियोजन स्वीकृति के अभाव में भ्रष्टाचारियों को समय पर सजा नहीं मिल पाती। कई बार आरोपी न्यायालय से स्थगन ले लेते हैं और विभाग अभियोजन स्वीकृति जारी ही नहीं करते। इस कारण मामले वर्षों तक लंबित रह जाते हैं। नागौर में एक मामला 13 साल से लम्बित है।

- कल्पना सोलंकी, एएसपी, एसीबी, नागौर