
भंवरलाल भाकर ने छुड़ाए थे दुश्मनों के छक्के, बंकर पर चढकऱ खदेड़ा था घुसपैठियों को
nagaur news in hindi : मौलासर/बोरावड़. शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा। मुल्क की सरहद पर उसकी रक्षा के लिए अनगिनत जवानों ने अपनी जान गंवाई। देश का जन-जन उन्हें याद करता है और श्रद्धांजलि देता है। देशभक्ति की प्रेरणा बने सेना के अमर शहीदों की गाथाएं सुनकर जोश से भुजाएं तब फडकऩे लग जाती है, जब कभी भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम की बात चलेगी। करगिल की लड़ाई का जिक्र जरूर किया जाएगा, क्योंकि इसमें भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम के सामने पाकिस्तानी सेना के घुसपैठिए मुंह की खा कर लौट गए थे।
करगिल विजय दिवस को यूं तो 20 साल हो चुके हैं, लेकिन शहीद जवानों के परिवारों से मिलते ही उसकी याद ताजा हो जाती है। प्रदेश के झुंझुनूं जिले के बाद नागौर को वीरों की धरती और शहीदों की भूमि के रूप में जाना जाता है। भारतीय सेना में बात चाहें शहीदों की हो, वीर चक्र की या फिर देश सेवा के जज्बे के साथ भारतीय सेना में भर्ती की, नागौर का नाम अग्रिम पंक्ति में लिया जाता है। वर्ष 1999 में जब पाकिस्तानी घुसपैठिए और सैनिकों द्वारा भारतीय सीमा में घुसकर अपना कब्जा जमा लिया था तो उन्हें खदेडऩे के लिए भारतीस सेना ने मोर्चा संभाला। इसी करगिल की लड़ाई में नागौर के जवान देश के लिए प्राणों की आहुति देते हुए शहीद हो गए थे। उन्हीं में से एक नाम है नागौर के थेबड़ी निवासी सूबेदार भंवरलाल martyr Bhanwar lal Bhakar भाकर का।
सूबेदार भाकर ने घुसपैठियों व पाक सेना के विरुद्ध करगिल युद्ध के ऑपरेशन विजय में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए दुश्मनों के दांत खट्टे किए थे। उन्होंने लड़ाई में हाथ पर गोलियां लगने के बावजूद अपने साथियों के साथ दुश्मनों के बंकरों पर कब्जा कर लिया था, लेकिन बाद में दुश्मनों की ओर से चली दर्जनों गोलियां शरीर पर लग जाने से वे शहीद हो गए। उन्हें राष्ट्रपति की ओर से मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
भंवरलाल भाकर का परिवार मध्यम श्रेणी के परिवार के रूप में जीवन यापन कर रहा है जो व्यापार के चलते मकराना के बोरावड़ में आजकल निवास कर रहा है। तिलोकाराम ने बताया कि उनके पिता शहीद हुए थे, तब वे मात्र 13 साल के थे, तब उन्हें यह भी पता नहीं था कि शहीद किसे कहते हैं। वीरचक्र क्या होता है और उन्हें यह भी पता नहीं था कि पिता का साया उठने के बाद उनकी आगे की जिंदगी कैसे गुजरेगी, लेकिन जैसे-जैसे समझदार होते गए, उन्होंने हौसला रखते हुए परिवार को सम्भाला।
परिवार के लोगों ने शहीद भंवरलाल भाकर की यादों को संजो कर रखा हुआ है। तस्वीरों और मेडल बैठक के कमरे में संजो कर रखे हैं। भाई मनरूपराम ने उनकी आर्मी की ड्रेस, कोट और हेट दिखाते हुए बताया कि वह जब भी इन्हें देखते हैं तो उन्हें अपने भाई की याद आती है और उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।
साधारण किसान परिवार में लिया जन्म
भंवरलाल भाकर का जन्म 25 दिसम्बर 1956 में डीडवाना उपखण्ड क्षेत्र के छोटे से गांव थेबड़ी में किसान भूराराम भाकर के घर हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव थेबड़ी व तोषीणा में प्राप्त की थी। दसवीं कक्षा पास करने के बाद 15 मई 1976 को यह भारतीय सेना की सैकंड राज राइफल में भर्ती हुए। शहीद की पत्नी गोगीदेवी बताती हैं कि जब यह सूचना मिली तो वे अपने बच्चों के साथ अपने पीहर में किसी शादी समारोह में गई हुई थी और तब उन्हें अचानक से कहा गया कि आप की सास बीमार हैं और जब घर आकर मंजर देखा तो एक बार तो यकीन भी नहीं हुआ। बावजूद इसके उन्होंने अपने आप को संभालते हुए अपने जीवन की नई शुरुआत करते हुए छोटे बच्चों को पालना, पढ़ाना और घर की जिम्मेदारियां भी सम्भालना था। यह सब बताते हुए शहीद की पत्नी गोगादेवी के आंखों में पानी भर आता है। वो कहती हैं जिंदगी तो जी ही रहें है और उनकी कमी कभी पूरी नहीं होगी, लेकिन देश के लिए शहीद पति भंवरलाल भाकर की बहादुरी पर गर्व होता है। इस बात से उन्हें संबल मिलता है और फक्र भी होता है। साथ ही उन्होंने बताया कि उस समय की वाजपेयी सरकार और प्रदेश की अशोक गहलोत सरकार ने उन्हें पूरा मान और सम्मान दिया। करगिल शहीद को मिलने वाली सभी सुविधाएं उन्हें दी गई, जिसके चलते उन्हें मकराना में एक पेट्रोल पंप आवंटित किया गया। इसको संचालित करते हुए कड़ी मेहनत और लगन से आज एक और पेट्रोल पंप उन्होंने कुचामन के नजदीक स्थापित कर लिया है।
Published on:
26 Jul 2019 05:24 pm
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