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नागौर-जोधपुर फोरलेन सड़क के निर्माण से पहले सामने आई बड़ी लापरवाही, समय पर नहीं चेते तो होंगे हादसे, जानिए ठेकेदार क्या कर रहा है गड़बड़ी

ठेकेदार ने 218 लाख का काम 86 लाख में ले लिया और समय पर काम शुरू करने की बजाए टालमटोल करता रहा। ठेकेदार की लापरवाही से नागौर व जोधपुर जिले को बड़ा नुकसान हुआ है, लेकिन अ​धिकारी हैं कि ठेकेदार के ​खिलाफ कार्रवाई करने की बजाए उसका बचाव कर रहे हैं।

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NH 62

नागौर. किसी भी काम का ‘बेड़ागर्क’ कैसे किया जाता है, इसका ताजा उदाहरण एनएच-62 की नागौर-जोधपुर रोड को फोरलेन बनाने के लिए तैयार करवाई जा रही डीपीआर में हो रहा है। ठेकेदार ने पहले तो 218 लाख का काम मात्र 86.40 लाख में यानी 60.36 प्रतिशत नीचे की दर पर ले लिया और फिर समय पर रिपोर्ट ही तैयार नहीं की। अनुबंध के अनुसार कंसलटेंट (ठेकेदार) वीकेएस इंफ्राटेक मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड को 17 जुलाई 2023 को काम शुरू करके 17 जनवरी 2024 तक डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) तैयार करके सौंपनी थी, लेकिन सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कार्य पूरी करने की तिथि तक कंसलटेंट ने काम शुरू तक नहीं किया। उसने न तो यहां अपना कार्यालय खोला है और न ही नियमानुसार विशेषज्ञ अभियंता लगाए हैं, केवल खानापूर्ति करने में लगा हुआ है, जिसका परिणाम यह होगा कि जब सडक़ बनेगी, तब मानासर आरओबी की तरह बार-बार हादसे होंगे। इसके बावजूद उच्चाधिकारी कंसलटेंट को ब्लैकलिस्ट करने की बजाए बचाने में जुटे हुए हैं।

1400 करोड़ का प्रोजेक्ट अटक गया

कंसलटेंट फर्म यदि डीपीआर समय पर तैयार करके देती तो नागौर से जोधपुर जिले के नेतड़ा तक फोरलेन बनाने का काम इस वित्तीय वर्ष में स्वीकृत हो जाता, लेकिन समय पर डीपीआर तैयार नहीं होने से यह काम अगले वर्ष तक के लिए अटक गया है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार फोरलेन का काम करीब 1400 करोड़ का है, जो प्रदेश के 15 प्रमुख प्रोजेक्ट में शामिल है।

न इंजीनियर लगाए, न कार्यालय खोला

नागौर-जोधपुर सडक़ को दो लेन से चार लेन करने के लिए कंसलटेंसी फर्म के साथ जो अनुबंध हुआ, उसके अनुसार कंसलटेंट फर्म को सबसे पहले नागौर में एक कार्यालय खोलकर उसमेें प्रोजेक्ट टीम नियोजित करनी थी। टीम में 10 प्रकार के विशेषज्ञ इंजीनियर/एक्सपर्ट को शामिल करना था, लेकिन ऐसा नहीं किया।

एक्सपर्ट नहीं होंगे तो डीपीआर भी फौरी बनेगी, फिर हादसे होना तय

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सडक़ों व आरओबी के लिए ठेकेदारों के साथ होने वाले अनुबंध में सरकार नियम व शर्तें तो डाल देती हैं, लेकिन ठेकेदार फर्म बड़े खर्च से बचने के लिए विशेषज्ञ नियुक्त नहीं करती है। जबकि इस कंसलटेंट को नियमानुसार 10 इंजीनियरों की टीम में सीनियर हाइवे इंजीनियर के नेतृत्व में सीनियर ब्रिज इंजीनियर, सीनियर सर्वे इंजीनियर, ट्राफिक व सडक़ सेफ्टी विशेषज्ञ, पर्यावरण विशेषज्ञ, क्वालिटी सर्वेयर मय डोक्यूमेंटेशन विशेषज्ञ, यूटीलिटी विशेषज्ञ (पीएचईडी के लिए) एवं यूटीलिटी विशेषज्ञ (बिजली के लिए) का नियोजन करना था। अब बड़ा सवाल यह है कि जब विशेषज्ञ और सीनियर इंजीनियर ही नहीं लगेंगे तो फोरलेन की डीपीआर भी उस स्तर की तैयार नहीं हो पाएगी, जिसके कारण रोड इंजीनियरिंग की कमी से आने वाले दिनों में हादसे होंगे। अनुबंध की खास बात यह है कि कार्यालय में सभी इंजीनियर व विशेषज्ञों की बॉयोमेट्रिक उपस्थिति दर्ज करके उसकी मासिक रिपोर्ट पेश करनी थी, लेकिन यह सब कागजी बन कर रह गया।

काम तो कर रहा है

फोरलेन की डीपीआर बनाने का काम तो चल रहा है। रिपोर्ट पेश करने की अंतिम तिथि क्या थी, इसकी जानकारी नहीं है।

- पंकज यादव, एसई, एनएच, बीकानेर सर्किल