प्लास्टिक के कप में चाय या दूध पीने से ग्लास का केमिकल मुंह के अंदर चला जाता है, जिससे डायरिया व गंभीर बीमारियों का खतरा रहता है। यह गत्ते, कपड़े, कागज की तरह नहीं होता, बल्कि यह न तो गलाने से गलता है और ना ही जलाने से जलता है।
प्लास्टिक की थैलियों ने आज हमें अपना पूरी तरह से गुलाम बना लिया है। बाजारों में दुकानों व ठेलों पर हर उम्र के लोगों के हाथों में थैलियां ही नजर आएंगी। आज घर से निकलते समय कपड़े का थैला या थैली ले जाने में शर्म महसूस करते हैं। हम देखें तो कई बार जानवरों के पेट का ऑपरेशन केवल इसलिए किया जाता है क्योंकि उनके पेट में प्लास्टिक की थैलियां जमा हो जाती है।
&पॉलीथिन को लेकर कितनी भी कार्रवाई की जाए, लेकिन जब तक हमारे अंदर जागरुकता नहीं आएगी, तब तक हम इसके प्रभाव को नहीं रोक सकते।
दरियाव राजपुरोहित, छात्रा महिलाएं उठाएं बीड़ा
शहर में पॉलीथिन को लेकर अभियान बहुत कम देखने को मिलते हैं। महिलाओं को बीड़ा उठाते हुए कपड़े के थैले ज्यादा से ज्यादा बना कर वितरित करने चाहिए।
आरती सांखला, छात्रा
बच्चों को बताएं नुकसान
बच्चों को स्कूल में ज्यादा से ज्यादा पॉलीथिन के उपयोग से होने वाले नुकसान के बारे में बताना चाहिए, जिससे हमार भविष्य खतरे में ना पड़े।
अंकिता शेखावत पर्यावरण प्रेमी बनें
पॉलीथिन मनुष्य के साथ-साथ
पर्यावरण के लिए भी नुकसानदाय होती है। इससे पर्यावरण को खतरा है। पर्यावरण प्रेमी बनते हुए अपनी जिम्मेदारी समझें।
हेन्द्र ईनाणियां
कार्रवाई की जरूरत
प्रशासन द्वारा बहुत कम कार्रवाई
की जाती है या फिर करते हैं तो छोटे-छोटे दुकानदारों से दो-तीन किलो पॉलीथिन जब्त कर कागजी कार्रवाई पूरी कर लेते हैं। उत्पादन एवं डीलर के कार्रवाई हो तो असर होगा।
भागीरथ शर्मा, छात्र
पिछले डेढ़ माह में काम ज्यादा होने के कारण पॉलीथिन को लेकर किसी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं कर सके। हां, दो-तीन दिन पहले कोई कार्रवाई की गई थी ।
नरेन्द्र चौधरी, सफाई निरीक्षक, नगर परिषद, नागौर