
इसके तहत बढ़ते कलेश में हो रही हत्या/आत्महत्या तक
नागौर. कभी सुकून की बनी आटा-साटा प्रथा अब कलेश की जड़ बन गई है। बेटियां इसके तहत परिवार की ओर से थोपे जा रहे रिश्तों को नकारने लगी हैं, बावजूद इसके उनकी कोई सुन नहीं रहा है। एक घर का विवाद दूसरे घर पर असर डाल रहा है। यह प्रथा अब कुप्रथा बनती जा रही है। इस प्रथा के तहत हुई शादियों में बढ़ती कलह के चलते हत्या/आत्महत्या ही नहीं अन्य आपराधिक मामलों में भी अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी हुई है।सूत्रों के अनुसार थानों में दर्ज मामले बताते हैं कि बेटियां खुद अब आटा-साटा प्रथा के खिलाफ हो चुकी हैं। एक युवती ने तो शादी तक से मना करते हुए पुलिस के उच्च अधिकारी ही नहीं जनप्रतिनिधियों तक इसकी शिकायत कर दी थी। बाद में इस विवाह के टलते ही घर में आई बेटी पर जुल्म होने लगे और वो भी कुछ दिनों बाद ससुराल से निकालकर पीहर भेज दी गई। मामला फिर कोर्ट तक जा पहुंचा।
श्रीबालाजी थाना इलाके में कुछ समय पहले एक युवक ने टांके में कूदकर आत्महत्या कर ली थी। वजह थी कि शादी के बाद से उसकी पत्नी ने मामूली से विवाद पर ससुराल छोड़ दिया, यहां तक कि जब अपने पीहर गई तो वहां से भाभी को भी निकलवा दिया। पुलिस की जांच में भी सामने आया कि युवक आटा-साटा प्रथा के तहत हुए विवाह के बाद पैदा हुई परेशानियों से क्षुब्ध होकर टांके में कूदा था।
बरसों से जारी...
इस परम्परा के तहत बरसों से दो परिवारों के बीच इस तरह की रिश्तेदारी होती है। एक परिवार के बेटा-बेटी दूसरे परिवार के बेटा-बेटी से शादी के बंधन में बंधते हैं। बेटियों की कमी के चलते अधिकांश शादियां अब भी इसी प्रथा के तहत हो रही है। पुलिस खुद मानती है कि इसके तहत हो रहे संबंधों में दूरियां बढ़ रही है, एक घर के विवाद के चलते दूसरा घर भी बर्बाद हो रहा है। दबाव में किए गए संबंध बिखरते जा रहे हैं। सामाजिक तौर पर बेटियां अब इसके विरोध में आगे आने लगी हैं, हालांकि उसका नतीजा फिलहाल निकल नहीं रहा है।
बढ़ रहे झगड़े के कारण
बातचीत में सामने आया कि बदलती आबोहवा और बढ़ती जागरूकता के चलते अब कुछ घर-परिवार अब इससे बचने लगे हैं। हकीकत तो यह है कि लड़कियों को ऐसे जबरन रिश्ते पसंद नहीं आ रहे। जिसके साथ रिश्ता तय किया गया है, उसकी शिक्षा, कॅरियर के साथ अपने भविष्य को लेकर आटा-साटा के तहत होने वाले रिश्तों को नकरा जाने लगा है। कई जगह युवक ऐसा कर रहे हैं। महिला सलाह एवं सुरक्षा केन्द्र के साथ वकील तक इस बात को मानते हैं कि इस प्रथा के तहत ब्याही जाने वाली बेटियां अत्यधिक शोषण का शिकार हैं।
जरा सी बात तो दोनों तरफ से मामले
पुलिस अफसर तक मानते हैं कि जरा-जरा सी बात बढ़ जाने पर जैसे ही एक परिवार थाने पहुंचता है तो दूसरा परिवार अपनी बेटी के पक्ष में उनके खिलाफ मामला दर्ज करा देता है। असल में एक बहन-भाई दूसरे बहन-भाई से जुड़ते हैं, ऐसे में जरा-जरा सी बात एक-दूसरे के बड़े-बुजुर्गों के पास पहुंचती है, बात नहीं मानने पर तनातनी शुरू हो जाती है और रिश्ते टूट जाते हैं।
करीब 23 फीसदी मामले, ऐसा ससुराल नहीं चाहती बेटियां
महिला परिवार सलाह एवं सुरक्षा केन्द्र की काउंसलर सपना टाक की माने तो आटा-साटा प्रथा के तहत हुई शादियों में कलेश ज्यादा हो रहा है। काउंसलिंग के दौरान सामने आया कि हर पक्ष यही कहता है कि आटा-साटा प्रथा के तहत तो ना बेटी लेनी ना देनी, कई तो इसका पुरजोर विरोध करते हुए इसे बंद करने की हिमायत करते हैं। मामूली बात पर चार जनों की जिंदगी बेहाल हो जाती है। आज की युवतियां ऐसी शादी के खिलाफ हैं। शहरी इलाकों में यह बंद हो चुका पर गांवों में अब भी चालू है। पुलिस तक घरेलू हिंसा या प्रताडऩा के करीब 23 फीसदी मामले आटा-साटा प्रथा से जुड़े हैं।
थोपे रिश्ते अब स्वीकार नहीं
डॉ श्रवण राव का कहना है कि असल में अब बेटा हो या बेटी थोपे हुए रिश्ते स्वीकार नहीं कर रहे हैं। इसकी वजह भी यही कि आटा-साटा प्रथा के तहत मामूली सी बात चार जनों के भविष्य को खराब कर देती है। पहले अलग संस्कार-अलग परम्परा थी, अब बदलाव के दौर में इस परम्परा को अस्वीकार किया जा रहा है।
Updated on:
27 May 2024 09:21 pm
Published on:
27 May 2024 09:20 pm
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