scriptडाबड़ा आंदोलन लडकऱ स्वतंत्रता सेनानी बने नावां के शाह | Jagirdars had firing in Dabda Kisan Sammelan | Patrika News

डाबड़ा आंदोलन लडकऱ स्वतंत्रता सेनानी बने नावां के शाह

locationनागौरPublished: Aug 06, 2020 02:24:02 pm

Submitted by:

shyam choudhary

पत्रिका अभियान – जरा याद उन्हें भी कर लो : डाबड़ा में जागीरदारों ने बरसाई थी गोलियां

Dabda Shahid samarak

Dabda Shahid samarak

कुचामनसिटी/नागौर. आजादी से पूर्व जागीरदारी प्रथा के विरोध में डाबड़ा कांड की लड़ाई लड़ चुके मारवाड़ लोक परिषद के क्रांतिकारी नेता किशनलाल शाह नावां के पहले विधायक बने थे।

वर्ष 1932-34 में जयनारायण व्यास के नेतृत्व में प्रजामण्डल का गठन किया गया और सामंतवाद के खिलाफ किसान एकता शुरू हुई। इसके बाद 16 मई 1938 को मारवाड़ लोक परिषद बनाया गया, जिसके मुख्य संरक्षक थे जयनारायण व्यास। परिषद का मुख्य उद्देश्य था उत्तरदायी शासन व्यवस्था लागू करना, जिसमें बेगार प्रथा, लाग प्रथा और मादा पशुओं का निर्यात करना मुख्य मांगें शामिल की गई थी। परिषद का पहला सम्मेलन लाडनूं में हुआ था और दूसरा बड़ा किसान सम्मेलन 13 मार्च 1947 को मौलासर के निकट ग्राम डाबड़ा में हुआ था। डाबड़ा कांड में मुख्य भूमिका निभाई थी माथुरादास माथुर ने। इस सम्मेलन में सामंतवादी जागीरदारों ने सशस्त्र हमला कर दिया, जिसमें 5 किसानों की मौत हुई थी और अनेकों किसान घायल हुए थे। बोयताराम साहू की ढाणी को जला दिया गया। डाबड़ा निवासी भू वैज्ञानिक हरिशचंद्र साहू ने बताया कि डाबड़ा किसान सम्मेलन के दौरान हमला अंग्रेजों ने नहीं बल्कि जागीरदारों ने किया था।
क्रांतिकारी मथुरादास माथुर, द्वारकाप्रसाद, अचलेश्वर पुरोहित, नावां के किशनलाल शाह, बृजमोहन धूत व धन्नालाल टेलर सहित अन्य लोग भी थे, जिन्हें डाबड़ा ठाकुर ने कैद कर लिया। हमले के दौरान इन क्रांतिकारियों के चोटें भी आई थी, जिसमें किशनलाल शाह घायल हुए थे। इतिहासकारों ने यह भी बताया है कि आजादी से पूर्व मारवाड़ में तीन व्यवस्था थी, अंग्रेजी हुकूमत के साथ जोधपुर दरबार व स्थानीय जमींदारों का राज था, जिसमें किसानों को लाग व बेगारी प्रथा झेलनी पड़ रही थी।
आजादी के बाद बने प्रदेशाध्यक्ष
देश आजाद होने के बाद किशनलाल शाह राजस्थान कांग्रेस कमेटी के प्रदेशाध्यक्ष बनाए गए। शाह ने पहला चुनाव 1951 में चुनाव जीतकर नावां के विधायक बने थे। राज्य सरकार ने शाह को स्वतंत्रता सेनानी की उपाधी से नवाजा था। इसके बाद शाह की 1991 में मृत्यु हो गई। शाह को स्वतंत्रता सेनानी तो बना दिया गया लेकिन इनके नाम से ना तो कोई विद्यालय है और ना ही कोई सडक़ मार्ग है, जबकि बरसों पहले शाह के नाम से सर्किल बनाने की मांग उठी थी। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो