
नागौर. भारत सरकार के तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वित्तीय वर्ष 2014-15 का बजट पेश करते हुए राजस्थान में केन्द्रीय शुष्क कृषि विश्वविद्यालय स्थापित करने की घोषणा की थी। वित्त मंत्री जेटली ने इसके साथ आंध्रप्रदेश में भी कृषि विवि तथा तेलंगाना व हरियाणा में उद्यानिकी विश्वविद्यालय की घोषणा भी की थी। राजस्थान को छोडकऱ शेष तीनों राज्यों में विश्वविद्यालय बनकर 2018 में चालू हो चुके हैं, लेकिन राजस्थान में अभी जगह ही तय नहीं हुई है। ऐसे में केन्द्रीय शुष्क कृषि विश्वविद्यालय के लिए नागौर सबसे उपयुक्त जगह है, जहां सारी परिस्थितियों अनुकूल हैं। नागौर जिले में मूंग और नागौरी मैथी (पान मैथी) का सबसे ज्यादा बुआई और उत्पादन होता है, जबकि नागौर के जीरे की गुणवत्ता उच्च होने के चलते देश के साथ विदेशों में मांग है। इसके साथ नागौर में बाजरा, मोठ, ग्वार, सौंफ आदि फसलों का भी बड़े स्तर पर उत्पादन किया जाता है। यहां कृषि विवि बनने का लाभ पूरे पश्चिमी राजस्थान को मिलेगा। गौरतलब है कि पश्चिमी राजस्थान में केन्द्रीय शुष्क कृषि विश्वविद्यालय नहीं है, जबकि पाकिस्तान में है।
कृषि विवि से बदलेगी शुष्क क्षेत्र की तस्वीर
देश आजाद होने सेे लेकर आज तक राजस्थान के शुष्क व मरूस्थलीय क्षेत्रों में कृषि विकास के लिए किसी भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया। भारत का यह शुष्क क्षेत्र शुष्क वन सम्पदा व औषधीय पौधों से परिपूर्ण है और हमें इस सम्पदा को संरक्षित करते हुए इस क्षेत्र में कृषि शिक्षा विकास को बढ़ाने की आवश्यकता है और यह विकास तभी सम्भव है, जब यहां पर एक केन्द्रीय शुष्क कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना की जाए। राजस्थान का नागौर व आसपास का क्षेत्र शुष्क और अति शुष्क होने के कारण शुरू से ही कृषि शिक्षा में पिछड़ा हुआ है। इससे पहले भारत सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों व बुन्देलखंड क्षेत्र में कृषि विवि खोले तो वहां कृषि की तस्वीर बदल गई।
नागौर का पहला नम्बर इसलिए
केन्द्रीय शुष्क कृषि विश्वविद्यालय पर नागौर का हक इसलिए भी है, क्योंकि नागौर हृदय स्थल में बसा। इसके अलावा प्रदेश में वर्तमान में पांच कृषि विश्वविद्यालय है, जो जोधपुर, बीकानेर, कोटा, जोबनेर व उदयपुर में है, ऐसे में कृषि प्रधान नागौर जिला ही बचता है, जहां पर्याप्त जमीन भी है और आवश्यकता भी।
राजस्थान में शुष्क कृषि का वर्तमान परिदृश्य
- कृषि विशेषज्ञों की रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में शुद्ध फसल क्षेत्र 183.49 लाख हेक्टेयर है, जिसमें से 116.88 लाख हेक्टेयर (75 प्रतिशत) वर्षा आधारित क्षेत्र है तथा शेष 66.61 लाख हेक्टेयर (25 प्रतिशत) सिंचित है।
- यह भारत का सबसे बड़ा प्रदेश है तथा भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 10.5 प्रतिशत है।
- यहां पर भारत की 5.5 प्रतिशत आबादी निवास करती है, जिसमें से 70 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है।
- शुष्क प्रदेश होने के बावजूद भी यहां पर देश का 10-12 प्रतिशत पशुधन पाया जाता है।
- यहां पर देश के कुल जल संसाधनों का केवल एक प्रतिशत जल उपलब्ध है।
- यहां की कुल कृषि भूमि का 10.5 प्रतिशत हिस्सा लवणीय व क्षारीय समस्या से ग्रस्त है।
इन सब के बावजूद...
इतनी समस्याओं के बावजूद राजस्थान कई फसलों के उत्पादन में अग्रणी है, जिनका देश के उत्पादन में प्रतिशत निम्नानुसार है-
सरसों - 40 प्रतिशत
बाजरा -40 प्रतिशत
ग्वार -80 प्रतिशत
ईसबगोल -95 प्रतिशत
धनिया -65 प्रतिशत
जीरा -40 प्रतिशत
राजस्थान कृषि में इसलिए पिछड़ा है...
- सुदूर शुष्क क्षेत्र में कृषि शिक्षा का शुरू से अभाव।
- मृदा हल्की व बालू होने के कारण भूमि में जलधारण क्षमता कम है।
- मृदा में कार्बनिक पदार्थ कम है।
- भूमिगत जल स्तर निरन्तर गिर रहा है तथा उसकी गुणवत्ता भी खराब हो रही है।
- अत्यधिक तापमान : अधिकतम 45-48 डिग्री तक रहता है। गर्मियों में कुछ जिलों में 50 डिग्री तक पहुंच जाता है।
- अत्यधिक मात्रा में भूमि से पानी का वाष्पीकरण।
- अनियमित व बहुत ही कम वर्षा का होना।
- किसान गरीब होने के कारण खेती में निवेश करने में असमर्थ।
- अनियमित वर्षा व सुखा पडऩे की संभावना के कारण खेती में निवेश नहीं करना।
समस्याओं के बाद भी पश्चिमी राजस्थान इनमें आगे
- बीजीय मसालों (जीरा, धनिया, सुवा, कलोंजी, मैथी, पान मैंथी) में राजस्थान अग्रणी है।
- औषधीय फसलें जैसे ईसबगोल, सोनामुखी, सतावरी व ग्वारपाठा में अग्रणी है।
- शुष्क उद्यानिकी फसलों (आवंला, अनार, बेर व लसोड़ा) में अग्रणी है।
- बाजरा व ज्वार में अग्रणी है।
- तिलहनी फसलों (सरसों, तिल व मुंगफली) में अग्रणी।
- ग्वार जैसी औद्योगिक फसलों में अग्रणी।
- क्षमतावान व भविष्य की फसलें जैसे कि जैतुन, खजुर, चिया, क्विनाओ, असालिया व राजगिरा का उत्कृष्ठ प्रदर्शन रहा है तथा भविष्य में इनके उत्पादन की अच्छी संभावना है।
केन्द्रीय शुष्क कृषि विवि की आवश्यकता क्यों ?
शुष्क क्षेत्रों में कृषि शिक्षा की कमी।
कृषि प्रसार व तकनीकी हस्तान्तरण की कमी।
भारत सरकार ने अब तक शुष्क क्षेत्रों में कृषि के शिक्षा व प्रसार पर ध्यान केन्द्रित नहीं किया है जबकि शुष्कक्षेत्र विपरीत परिस्थितियां होने के बावजूद यहां के लोग कृषि के व्यवसाय से जुझारू रूप से जुड़े हुए है। अगर यहां के जुझारू किसानों व उनके परिवारजनों को कृषि शिक्षा दी जाए तो वे देश को दूसरी हरितक्रान्ति दिला सकते है।
यहां की वृहद् कृषि व शुष्क जमीनों के लिए सुखा प्रतिरोधी तथा सहनशील बीजों का विकास, पशुपालन व पशुपालन शिक्षा, गृह शिक्षा का ज्ञान उपलब्ध करवाने के लिए भारत सरकार द्वारा पोषित कृषि विश्वविद्यालय की अति आवश्यकता है।
यहां की महिलाओं को कृषि व्यवसाय में लाने के लिए कृषि शिक्षा को बढ़ावा देना।
यह शुष्क क्षेत्र देश के लिए अभिशाप न बनें इसके लिए भारत सरकार को जिम्मेदारी लेते हुए यहां पर कृषि शिक्षा के लिए संस्थान खोलना।
नागौर में केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना एक नया आयाम लिखेगी । नागौर पूरे राजस्थान का केन्द्रीय बिंदु पर है, जहाँ पर पुराने ज़माने से ही कृषि के साथ साथ में पशुपालन जैसे नागौरी बैल, परबतसरी बकरी और कृषि में नागौरी मेंथी, जीरा, मूंग, बाजरा बहुतायत से होता है । यहाँ पर विश्वविद्यालय की स्थापना से ही मानव संसाधन अनुसंधान एवं विस्तार की नई सम्भावनाएँ जन्म लेगी।
-डॉ ओ पी खेदड़, सेवानिवृत प्रोफ़ेसर
नागौर में खुलवाने का प्रयास करेंगे
केन्द्र सरकार की ओर से की गई कृ?षि विश्वविद्यालय को नागौर में स्थापित करवाने के लिए मैंने उस समय केन्द्रीय कृषि मंत्री व मुख्यमंत्री से बात की थी, जिसके बाद नागौर को कृषि कॉलेज दिया गया। चूंकि अब तक कृ?षि विवि खुल नहीं पाया है, इसलिए हम मुख्यमंत्री जी से मिलकर प्रयास करेंगे कि नागौर में विश्वविद्यालय खुले। क्योंकि नागौर कृषि प्रधान जिला है और यहां जमीन के साथ अन्य सभी सुविधाएं उपलब्ध है। कृषि विवि खुलने से नागौर सहित प?श्चिमी राजस्थान में कृषि के क्षेत्र में क्रांति आएगी।
- सीआर चौधरी, अध्यक्ष, राजस्थान किसान आयोग
Published on:
03 Dec 2024 08:01 pm
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