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नागौर

नगर परिषद में बजट  के अभाव में थमा विकास का पहिया

नगर परिषद में आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपया की स्थिति , हर माह वेतन पर खर्च हो रहे 1 करोड़ 15 लाख , सरकार से हर महीने मिलने वाला अनुदान नाकाफी

नागौरDec 21, 2019 / 07:25 am

Dharmendra gaur

नगर परिषद बजट  के अभाव में थमा विकास का पहिया

सरकार से हर महीने मिलने वाला अनुदान नाकाफी

नागौर. नगर परिषद के पास बजट के अभाव में शहर में विकास का पहिया थम चुका है। माली हालत से गुजर रही नगर परिषद कर्मचारियों को देने के लिए वेतन तक नहीं है। राजस्व बढ़ाने के लिए गृह कर वसूली तो दूर घरों का सर्वे तक पूरा नहीं हो पाया। दो साल पहले स्थानीय स्तर पर राजस्व वृद्धि में नाकाम रही नगर परिषद की गृह कर वूसली के लिए सर्वे का बीड़ा खुद सरकार ने उठाया और सरकार द्वारा नियुक्त एजेंसी ने शहर में घरों का सर्वे भी किया था लेकिन आम लोगों से गृह कर वसूलने में सफलता नहीं मिली। ऐसे में आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपया वाली स्थिति बनी हुई है। शहर में नई सड़कें बनाने, गलियों में पर्याप्त रोशनी देने व शहर में साफ-सफाई के लिए नगर परिषद के पास ना तो पर्याप्त संसाधन है और ना ही बजट।

आय-व्यय हो रहे बराबर
नगर परिषद क्षेत्र में आने वाले भूखंडों, भवन एवं प्रतिष्ठानों पर बकाया चल रही कर राशि एकमुश्त जमा कराने पर मूल राशि में छूट एवं जुर्माना पर छूट प्रदान की जाती है। इसके बावजूद शहर के समझदार व ‘जिम्मेदारÓ नागरिक अपना कत्र्तव्य निभाना आवश्यक नहीं समझते। नगर परिषद के आय का मुख्य स्रोत विभिन्न प्रकार के कर व भूमि विक्रय से होने वाली आय है, लेकिन परिषद के दायरे में खाली पड़ी भूमि पर लोगों द्वारा अतिक्रमण कर नियमन करवा लिए जाने के चलते परिषद को जमीन का वास्तविक मूल्य नहीं मिल पाता। इसके अलावा राजस्व व जिला प्रशासन की ओर से परिषद को खसरों का हस्तांतरण किया जाता है, लेकिन अधिकांश खसरों में पहले से ही कब्जे होने व पक्के निर्माण होने के चलते इन खसरों में कॉलोनियां नहीं काटी जा सकी। ऐसे में परिषद की आय के स्रोत कम हो गए।

यह हैं आय के स्रोत
नगर परिषद में भवन निर्माण अनुमति, पानी व बिजली के लिए एनओसी, तह बाजारी, नकल शुल्क, 91 के तहत रुपांतरण शुल्क, भूमि विक्रय-लीज लाइसेंस जारी करने की एवज में शुल्क वसूला जाता है। आय के इन स्रोतों में प्रति माह होने वाली आय में से वेतन व पेंशन के लिए काट लिए जाते हैं। ऐसे में नगर परिषद के पास जमा राशि नहीं के बराबर रहती है। इसके अलावा एक बड़ी राशि कोर्ट में चल रहे विभिन्न मामलों की पैरवी में खर्च हो जाती है। नगर परिषद में हर महीने करीब 1 करोड़ 15 लाख रुपए कर्मचारियों के वेतन पर खर्च हो जाता है नगर परिषद को राज्य सरकार से अनुदान के रूप में महज 92 लाख रुपए ही मिलते हैं। सफाई कर्मचारियों की नई भर्ती व सातवां वेतनमान लागू होने से कर्मचारियों का वेतन बढऩा भी आय-व्यय में असंतुलन का बड़ा कारण है।

चुंगी ने बिगाड़ दिया गणित
शहर में आने वाले माल पर चुंगी से मिलने वाली राशि नगर परिषद की आय का प्रमुख स्रोत थी, लेकिन 1998 के बाद राज्य सरकार द्वारा चुंगी बंद कर अनुदान देने की व्यवस्था करने के बाद आर्थिक स्थिति गड़बड़ा गई। सरकार ने हर साल दस प्रतिशत राशि बढ़ाकर अनुदान देने की व्यवस्था की लेकिन सरकार से मिलने वाला अनुदान पर्याप्त नहीं है। अधिकारियों व कर्मचारियों के वेतन पर करीब 1 करोड़ 15 लाख रुपए खर्च हो जाते हैं। इसके अलावा वाहनों के इंधन व मरम्मत पर भी हर महीने बड़ी राशि खर्च होती है। नगर परिषद की आय से ज्यादा खर्च होने से आय-व्यय का संतुलन गड़बड़ा जाता है।
नगर परिषद द्वारा गत पांच साल में संग्रहित गृह कर
वर्ष प्रस्तावित कर संग्रहित कर
2010-11 20 लाख 63 हजार
2011-12 25 लाख 1.73 लाख
2012-13 20 लाख 40 हजार
2013-14 25 लाख 0.42 हजार
2014-15 25 लाख 1.79 लाख
वेतन पर खर्च हो रहा अनुदान
सरकार से मिलने वाला अनुदान कर्मचारियों के वेतन में भी कम पड़ रहा है। हर माह मिलने वाली अनुदान राशि समय पर नहीं मिलने से विकास कार्र्यों पर भी असर पड़ता है।
जोधाराम विश्नोई, आयुक्त, नगर परिषद, नागौर
आय के सीमित स्रोत
नगर परिषद की आय के सीमित स्रोत के चलते बजट की समस्या है। प्रभारी मंत्री को अवगत करवाया है। बजट नहीं मिलने से शहर में विकास के काम प्रभावित होते हैं।
मांगीलाल भाटी, सभापति नगर परिषद नागौर
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