19 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

अधिकारी स्कूल गए न बच्चों से मिले और हो गई उत्पीडऩ की जांच…!

बच्चों की मौलिकता पर निजी शिक्षण संस्थानों का डाका

2 min read
Google source verification
Nagaur patrika

Guinani school again operated in single innings

नागौर. शिक्षा विभाग की ओर निजी शिक्षण संस्थानों में अध्ययनरत बच्चों के संदर्भ में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग नई दिल्ली से मिले दिशा-निर्देश के बाद विभाग इनकी जांच करना ही भूल गया। मानवाधिकार आयोग की ओर से छोटे बच्चों के अध्ययन के दौरान उनके साथ उत्पीडऩ की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए कहा गया था। स्पष्ट निर्देश थे कि शिक्षा विभाग के अधिकारी स्कूलों की व्यवस्था व वातावरण की तथ्यात्मक रिपोर्ट बनाकर मुख्यालय भेजेंगे। निर्देश के छह माह बाद भी शिक्षा विभाग के अधिकारी न तो स्कूलों में पहुंचे और न ही रिपोर्ट तैयार की।
शिक्षा अधिकारियों के अनुसार जिले में आठ सौ से ज्यादा निजी शिक्षण संस्थान है। इनमें अध्ययनरत बच्चों की संख्या भी डेढ़ हजार से अधिक बताई जाती है।
अहमदाबाद, चेन्नई, दिल्ली, हरियाला एवं लखनऊ के निजी शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई के नाम पर बच्चों के साथ हुई उत्पीडऩ की घटनाओं के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने देश के सभी राज्यों में राज्य सरकारों को पत्र भेजकर तत्काल जांच कराने के आदेश दिए थे। लेकिन दिशा-निर्देश अधिकारियों की फाइलों में दब कर रह गए। विभाग के अधिकारियों का मानना था कि विभाग के पास पहले से ही ज्यादा काम है। अब ऐसे में प्रत्येक स्कूल का माहौल देखना, बच्चों से बात कर रिपोर्ट तैयार करना व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है। हालांकि अधिकारिक तौर पर अधिकारी जांच करने की बात तो कहते हैं, लेकिन रिपोर्ट मांगने पर टाल जाते हैं।
अब चाइल्ड लाइन करेगी जांच
इस संबंध में जिले के मुख्य जिला शिक्षाधिकारी गोरधनलाल सुथार का कहना था कि निजी शिक्षण संस्थानों में बच्चों के शारीरिक-मानसिक उत्पीडऩ संबंध की शिकायतें चाइल्ड हेल्पलाइन संस्था के माध्यम से आई है।
संस्था के लोगों का कहना है कि निजी शिक्षण संस्थानों की ओर से इसमें कोई सहयोग नहीं किया जाता है।
इस पर शिक्षा विभाग ने हेल्पलाइन संस्था को इसे लेकर अधिकृत पत्र दिया है कि वह स्कूलों में जाकर इसकी जांच कर सकते हैं। शिकायतों की पुष्टी होने पर निश्चित रूप से कार्रवाई की जाएगी।
शिक्षण संस्थानों में यह हैं हालात
निजी शिक्षण संस्थानों में कइयों में न तो पेयजल की समुचित व्यवस्था है, और न ही खेलने की, और न ही बच्चों के व्यवहार की समझ रखने वाले विशेषज्ञों की...। इसके बाद भी ऐसे शिक्षण संस्थान धड़ल्ले से चल रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि छोटे बच्चों की शिक्षण शैली खेल-खेल के माध्यम से होने पर ही उनकी मौलिक क्षमताओं का विकास होता है, न कि दबाव डालकर रटाने की पद्धति से। रटाने की पद्धति से बच्चों की न केवल सोचने की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, बल्कि पढ़ाई के प्रति अरुचि होने लगती है। विशेषज्ञों के अनुसार अक्सर बच्चों को रटने में भूल होने पर शिक्षक की ओर से उनकी पिटाई कर दी जाती है। इससे बच्चों के अवचेतन मन में डर बैठ जाता है। बच्चे अभिभावकों के दबाव में स्कूल तो जाते हैं, लेकिन स्कूल में ऐसे वातावरण के कारण वह चिड़चिड़े होने लगते हैं। जिले के नागौर, मकराना, डीडवाना, मेड़ता, परबतसर, गोटन, कुचामन, परबतसर, डेगाना, खींवसर, जायल के ज्यादातर स्कूलों में शिक्षा के आदर्श मापदंड का खुला उल्लंघन होने से बच्चों के विकास रुकने लगा है।