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Rajasthan Rape Cases: राजस्थान में साढ़े 15 हजार रेप पीड़िताओं को अब तक नहीं मिला न्याय, DNA जांच में देरी बनी बड़ी वजह

Rape Cases in Rajasthan: राजस्थान में डीएनए जांच में लेट-लतीफी से हजारों बलात्कार पीड़िताओं को समय से न्याय नहीं मिल पा रहा है।

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श्यामलाल चौधरी
नागौर। राजस्थान में डीएनए जांच में लेट-लतीफी से हजारों बलात्कार पीड़िताओं को समय से न्याय नहीं मिल पा रहा है। बलात्कार और पोक्सो के करीब 15 हजार से अधिक मामलों की डीएनए रिपोर्ट वर्ष 2020 से अटकी पड़ी हैं।

न्याय न मिलने की बड़ी वजह यह भी है कि प्रदेश की विधि विज्ञान प्रयोगशाला में न तो पर्याप्त प्रशिक्षित स्टाफ है न ही किसी रिपोर्ट को गंभीरता से लिया जाता है। इससे भी गंभीर बात यह है कि घटना स्थल से एकत्र डीएनए सैंपल में लापरवाही के चलते इतनी खामियां होती हैं कि वह सैंपल जांच के लायक ही नहीं बचता है।

इसके चलते पॉक्सो एक्ट और बलात्कार पीड़िताओं को न्याय के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। कई बार तो पुलिस की लापरवाही से कई बार लेन-देन के बाद सैंपल बदल दिए जाते हैं। सैकड़ों मामलों में पांच साल बाद भी रिपोर्ट नहीं मिल पाई है।

आंकड़ों पर गौर करें तो प्रदेश में जुलाई 2024 तक कुल 15,584 डीएनए जांच के प्रकरण लंबित थे। राज्य विधि विज्ञान प्रयोगशाला में बलात्कार प्रकरणों की डीएनए रिपोर्ट वर्ष 2020 से लम्बित है, वहीं पोक्सो एक्ट प्रकरणों की डीएनए रिपोर्ट वर्ष 2021 से लम्बित है।

पांच साल में 40 करोड़ रुपए से अधिक खर्च

राज्य सरकार ने फोरेंसिक साइंस प्रयोगशालाओं के आधुनिकीकरण के लिए पिछले 5 साल में करीब 40 करोड़ रुपए खर्च किए। लम्बित डीएनए मामलों की समय पर जांच के लिए 50 वैज्ञानिक संविदाकर्मी पर नियुक्त किए। जोधपुर व अजमेर क्षेत्रीय प्रयोगशाला में डीएनए खण्ड भी शुरू किए लेकिन वर्ष 2023 तक 4334 मामलों का ही निष्पादन कर पाए।

7 में से 3 एफएसएल ही सक्रिय

विधायक संदीप शर्मा की ओर से लगाए गए सवाल के जवाब में सरकार के गृह विभाग ने बताया कि प्रदेश में कुल 7 विधि विज्ञान प्रयोगशालाएं संचालित हैं, जो जयपुर, जोधपुर, कोटा, उदयपुर, बीकानेर, अजमेर एवं भरतपुर में हैं। इनमें से जयपुर, जोधपुर एवं अजमेर में डीएनए जांच प्रयोगशालाएं ही सक्रिय हैं।

रिपोर्ट में देरी के कारण

प्रदेश में बलात्कार व पॉक्सो के प्रतिमाह औसतन 700 मामले आ रहे हैं। इस हिसाब से स्वीकृत स्टाफ की कमी। इन्हें संख्या को देखते हुए प्रदेश में कम से कम 20 परीक्षण यूनिट की आवश्यकता है, लेकिन वर्तमान में केवल 2 यूनिट ही हैं।

ज्यादातर केस में डीएनए जांच पेंडिंग

पुलिस सूत्रों के अनुसार डीएनए जांच के लिए आने वाले केस में ज्यादातर असामान्य मौत के रहते हैं। इनके अलावा घर से लड़की को भगाकर ले जाने के बाद उसकी बरामदगी के सभी केस में डीएनए अनिवार्य है। पैंडेंसी हत्या के कुछ मामलों में भी है। सेंपल जमा करने की पावती के साथ थानों से केस का चालान कोर्ट में पेश किया जाता है।

पहचान की संभावना बढ़ जाती है

डीएनए जांच के बाद अपराधी की पहचान की संभावना बढ़ जाती है। यदि राज्य किसी अपराधी के खिलाफ आरोप लगाता है, तो डीएनए सबूत अदालत में वजनदार साबित होते हैं।

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इनका कहना है

बलात्कार और पॉक्सो के मामलों में पुलिस जांच करके चार्जशीट कोर्ट में पेश कर देती है। हालांकि कुछ संदिग्ध मामलों में डीएनए रिपोर्ट की जरूरत होती है। यदि डीएनए रिपोर्ट समय पर मिल जाए तो जांच में देरी बच जाती है। डीएनए रिपोर्ट का ज्यादा असर कोर्ट में ट्रायल के दौरान अहम होता है।
-नूर मोहम्मद, एएसपी, स्पेशल इन्वेस्टिगेशन, क्राइम अगेंस्ट वूमेन, नागौर

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