
Soil health card
नागौर. केन्द्र सरकार की योजना के तहत मृदा स्वास्थ्य जांच का काम गत 31 मार्च को पूरा हो चुका है। कृषि वैज्ञानिकों ने फौरी तौर पर ही सही लेकिन मृदा के नमूनों की जांच कर मिट्टी की बीमारी एवं गुणवत्ता का पता भी लगा लिया है, लेकिन योजना की खामी एवं किसानों में जागरुकता की कमी के चलते उपचार नहीं हो रहा है। राजस्थान राज्य की बात करें तो मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के तहत पिछले चार सालों में एक करोड़ 85 लाख से अधिक किसानों को कार्ड वितरित किए जा चुके हैं, लेकिन कार्ड का महत्व एवं जानकारी के अभाव में उन पर धूल जम रही है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 19 फरवरी 2017 को राजस्थान के सूरतगढ़ से मृदा स्?वास्?थ्?य कार्ड योजना का शुभारम्भ करते हुए मार्च 2019 तक प्रदेश के एक करोड़ 65 लाख से अधिक मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित करने का लक्ष्य रखा, ताकि किसान को मिट्टी की गुणवत्ता का अध्ययन करके एक अच्छी फसल प्राप्त करने में सहायता मिल सके। कृषि विभाग के अधिकारियों ने पूरी मेहनत से काम करते हुए 31 मार्च 2019 तक लक्ष्य से अधिक करीब एक करोड़ 85 लाख मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाकर किसानों को बांट दिए। मजे की बात यह है कि किसानों को डाकिए या तीसरे व्यक्ति के माध्यम से मिले मृदा कार्ड के बारे में इतनी भी जानकारी नहीं है कि यह बला क्या है। यही कारण है कि चार साल में 80 प्रतिशत से अधिक किसानों ने कृषि विभाग द्वारा जारी कार्ड के अनुरूप न तो उर्वरकों का उपयोग किया और न ही मृदा के उपचार के लिए कोई प्रयास किए गए।
राजस्थान - योजना के तहत वितरित मृदा स्वास्थ्य कार्ड
डिविजन - प्रथम चरण - द्वितीय चरण
जयपुर - 17,46,139 - 15,80,369
उदयपुर - 11,25,283 - 7,18,114
कोटा - 8,80,046 - 6,03,241
जोधपुर - 4,02,186 - 3,77,073
भरतपुर - 16,91,232 - 18,75,121
भीलवाड़ा - 7,35,631 - 6,15,087
बीकानेर - 3,31,725 - 3,11,749
गंगानगर - 5,29,601 - 5,53,990
जालोर - 6,83,716 - 6,67,766
सीकर - 9,84,206 - 9,62,378
पीपीपी मोड की प्रयोगशालाएं बंद
नागौर जिला मुख्यालय की मृदा प्रयोगशाला के कनिष्ठ वैज्ञानिक सहायक मोइनुदीन ने बताया कि जिले में योजना को लेकर मेड़ता, डेगाना, कुचामन व लाडनूं में पीपीपी मोड पर प्रयोगशालाएं खोली गई थीं, लेकिन मार्च 2019 में योजना का काम पूरा होने पर चारों प्रयोगशालाओं को बंद कर दिया गया है। अब जिला मुख्यालय की सरकारी प्रयोगशाला ही चालू है।
सरकार चाहे तो बदल सकती है तस्वीर
मृदा स्वास्थ्य कार्ड का असली उद्देश्य खेती की लागत को कम करना और उसकी उत्पादकता को बढ़ाना है। यह तभी संभव जब गांव-गांव में किसानों को एकत्र करके उनको उनके खेतों के स्वास्थ्य के बारे में स्पष्ट रूप से बताया जाएगा। केवल कार्ड बांटने का टार्गेट पूरा करने से कागज और पैसे की बर्बादी से अधिक कुछ नहीं होगा। इस कार्ड को सीधे-सीधे रासायनिक खाद की कम खपत और बढ़ी हुई उपज से जोडऩा होगा। यदि सरकार गंभीर हो तो एक वर्ष में राजस्थान की जीडीपी छलांग मार सकती है और किसानों का लाभ बीस से तीस प्रतिशत तक सीधे सीधे बढ़ सकता है।
- डॉ. अशोक चौधरी, अध्यक्ष, अभिनव पार्टी, राजस्थान
उद्देश्य ही सही नहीं था
केन्द्र सरकार ने जब योजना लागू की, उस समय इसका उद्देश्य उर्वरकों एवं केमिकल फर्जीलाइजर के कृषि में उपयोग को कम कर जैविक खेती (जैसा कि प्रधानमंत्री खुद चाहते हैं) पर जोर देना होना चाहिए था, लेकिन मृदा स्वास्थ्य कार्ड में भी यही बताया गया है कि यूरिया, डीएसपी, जिंक या फॉस्फोरस कितना उपयोग करना है। तकनीकी जानकारी नहीं होने से किसान मृदा स्वास्थ्य कार्ड का न तो महत्व समझ पाए और न ही उसका सही उपयोग कर पाए। यह समस्या राजस्थान ही नहीं पूरे देश की है। विभाग को जितना लक्ष्य मिला, उससे ज्यादा कार्ड जारी कर दिए, जबकि कई जगह तो मिट्टी के नमूने तक नहीं लिए गए। केमिकल फर्जीलाइजर के अधिक उपयोग से जमीन खराब खराब हो रही है। ज्यादा अच्छा होताख् यदि सॉयल हैल्थ कार्ड के बारे यदि लिखित जानकारी किसान तक पहुंचाई जाती तो काफी हद तक फायदा हो सकता था।
- डॉ. देविन्दर शर्मा, कृषि विशेषज्ञ एवं पर्यावरणविद
Published on:
22 Jun 2019 10:42 am
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