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VIDEO…नागौर में आठ सौ बरस से पुराना रहा है मोहर्रम का इतिहास

Nagaur. राजस्थान में नागौर जिला ही रहा ऐसा जहां पर दो ताजिये जुलूस के साथ कभी नहीं चलते, जहां स्थापित होते हैं, वहीं से सैराब करने के लिए ले जाया जाता है इन दोनों को

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Nagaur news

The history of Muharram is more than eight hundred years old in Nagaur

-मुस्लिम समाज की ओर से तकरीबन एक दर्जन ताजिये निकाले जाते हैं
-मातमी धुनों के बीच मोहर्रम पर आज निकलें ताजिये
नागौर. मोहर्र्रम शनिवार को पूरे अकीदत के साथ मनाया गया। हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में ताजियों का जुलूस निकलेगा। इस बार भी दस बड़े एवं 20 से ज्यादा छोटे ताजिये निकलेंगे। ताजियों का जुलूस दोपहर दो बजे के बाद अपने मुकाम से निकलेंगे। जुलूस में नकास, घोसीवाड़ा , सर्राफे दरवाजा अजमेरी गेट ,दरगाह डोडी,दड़ा मोहल्ला, दरगाह बड़े पीर साहब , पिंजरों का मोहल्ला ,बाजरवाड़ा आदि इलाक़ो के ताजिये शामिल होंगे। अपने मार्गों से होते हुए यह यह ताजिये काजियों का चौक एवं बाजरवाड़ा होते हुए माही दरवाजा पहुंचे। यहां से ताजियों को कर्बला में सैराब करने के लिए ले जाया गया। क़ाजिय़ों के चौक मे शाम 5 बजे बाद नकास और डोडी द्वारा अखाड़ा कार्यक्रम हुआ। इसमे नकास के अखाडा की अगुवाई मोहम्मद हुसैन भाटी घोसी ने किया। जबकि डोडी अखाड़ा की अगुवाई पीर गुलाम शब्बर सुलेमानी ने किया। दोनो अखाड़ों का कार्यक्रम रात में आठ बजे तक चला। इसके पूर्व गत शुक्रवार की रात्रि में ड्योडी पीर की दरगाह, सिलावटों का मोहल्ला, न्यारो का मोहल्ला, बड़े पीर साहब की दरगाह, अजमेरी गेट, खान साहबों का मोहल्ला, पिंजरों का मोहल्ला, नकाश दरवाजा, लोहरपुरा, बाजारवाड़ा सहित अन्य जगहों पर ताजियों को जियारत के लिए रखा गया।
आठ सौ बरस पुराना रहा है नागौर के मोहर्रम का इतिहास
हजरत इमाम हुसैन की याद में मनाया जाने वाला मोहर्रम का नागौर का इतिहास आठ सौ बरस से ज्यादा पुराना बताया जाता है। बुजुर्गों की माने तो ताजियों को जुलूस के साथ बरसों से निकालने की परंपरा रही है। यह कब कैसे शुरू हुई, इसकी पूरी जानकारी नहीं है, लेकिन बचपन से ताजियों का जुलूस देखते आ रहे हैं। पहले भी ताजियों की संख्या कम नहीं रहती थी। मुख्य ताजियों के साथ ही मन्नत का ताजिया भी निकलता रहा है। किले की ढाल स्थित अहमद अली शाह बाबा दरगाह के सदर साकिर अली चौहान बताते हैं कि नागौर में मोहर्रम पर ताजियों को निकालने की परंपरा काफी पुरानी है। हम अपने बुजुर्गों से भी इसके बारे में सुनते थे। पहले तो इससे ज्यादा ताजिये निकलते थे। अब तो निकलने वाले ताजियों की संख्या भी पहले से कम हो गई है।
जियारत के लिए रखे गए ताजिये
शुक्रवार की रात्रि में ड्योडी पीर की दरगाह, सिलावटों का मोहल्ला, न्यारो का मोहल्ला, बड़े पीर साहब की दरगाह, अजमेरी गेट, खान साहबों का मोहल्ला, पिंजरों का मोहल्ला, नकाश दरवाजा, लोहरपुरा, बाजारवाड़ा सहित अन्य जगहों पर ताजियों को जियारत के लिए रखा गया।

मोहर्रम की शान हैं यह ताजिये
शहर में प्रमुख रूप से इन नौ जगहों पर ताजिया बनाया जाता है। हालांकि मन्नती ताजियों की संख्या इससे अलग होती है। मन्नती ताजियों की संख्या ज्यादा भी होती है। इनके अलावा शहर के इन प्रमुख क्षेत्रों में हर साल मोहर्रम पर यह ताजिये बनते हैं। ताजियों को बनाने में पाकीजगी का पूरा ध्यान रखा जाता है।
1. लोहारपूरा का ताजिया
2. दरगाह डोडी का ताजिया
3. नकास का ताजिया
4.अजमेरी गेट का ताजिया
5. बड़े पीर की दरगाह का ताजिया
6.बाजरवाड़ा का ताजिया
7. दड़ा मोह्ल्ले का ताजिया
8.नियारों का मोहल्ले का ताजिया
9.पिंजारों के मोहल्ले का ताजिया

इन दो मोहल्ला का ताजिया जुलूस के साथ नहीं घूमता
बताते हैं कि नियारों का मोहल्ला एवं लोहारपुरा का ताजिया हर साल बनाया जाता है, लेकिन यह दोनों ताजिये जुलूस के साथ सामूहिक रूप से नहीं घूमते हैं। अपने मुकाम से इनको सैराब करने के लिए ले जाया जाता है। बुजुर्गों के अनुसार यह परंपरा भी बरसों से चली आ रही है। अब यह परंपरा कैसे, क्यों बनी, इसकी जानकारी लोगों को नहीं है, लेकिन यह बरसों से चली आ रही पंरपरा है। इसलिए हर साल इसे निभाया जाता है।
एक माह पहले से ही शुरू हो जाता है ताजियों को बनाने का काम
बताते हैं ताजियों को बनाने का काम तकरीबन एक माह पहले से ही शुरू कर दिया जाता है। हालांकि इसको बनाते तो स्थानीय कलाकार हैं, लेकिन इसकी बनावट की शैली पूरी तरह से इस्लामिक शैली ही रखी जाती है। कलाकारों को भी इसका पूरा ध्यान रखना पड़ता है। हालांकि कुछ लोग बाहर यानि की बीकानेर एवं जोधपुर से बनवाकर मंगाते रहे हैं, लेकिन ज्यादातर ताजियों को बनाए जाने का काम स्थानीय स्तर पर इसलिए किया जाता है कि बाहर से मंगाने की स्थिति में कई बार यह ताजिये पूरी तरह से व्यवस्थित नहीं हो पाते हैं।
शहादत की याद दिलाता है मोहर्रम
मोहर्रम हजरत इमाम हुसैन के शहादत की याद दिलाता है। यह बताता है कि कभी भी अन्याय के खिलाफ झुकना नहीं चाहिए। कितनी भी मुसीबतें आएं, लेकिन इनके सामने सर झुकाकर समर्पण नहीं करना चाहिए।
मोहम्मद मेराज उस्मानी, शहर काजी
मोहर्रम अपने आप में ही अकीदत का एहसास कराता है। यह ताजिये का जुलूस इमाम हुसैन की शहादत की याद में निकलता है। यह केवल जुलूस नहीं, बल्कि पूरी रूह को बदलकर रख देता है। यानि की हजरत इमाम हुसैन की राह में चलने के लिए प्रेरित करने का कार्य करता है।
पीर गुलाम शब्बर, दरगाह डोडी शरीफ
किसी भी प्रकार के अन्याय के प्रति संघर्ष करने की प्रेरणा देता है यह मोहर्रम। यह बताता है कि संख्या में शत्रु यानि की दुश्मन भले ही ज्यादा हों, लेकिन अन्याय के खिलाफ लडऩे वाला अपना संघर्ष नहीं छोड़ता है। अन्याय के लिए संघर्ष की रूहानी ताकत देने का काम करता है यह।
शमशेर खान, सदर, सूफी हमीदु्ददीन दरगाह वक्फ कमेटी
इसलिए मनाया जाता है मोहर्रम
इराक के कर्बला में यजीद की सेना और हजरत इमाम हुसैन के बीच जंग हुई थी। इस जंग में इमाम हुस्सैन ने इस्लाम की रक्षा के अपने 72 साथियों के साथ शहादत दी थी। इमाम हुसैन और उनके साथियों के शहादत के गम में ही मुहर्रम मनाया जाता है।