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शहरी क्षेत्र की सरकारी स्कूलों में तृतीय श्रेणी शिक्षकों के पद लम्बे समय से खाली, पढ़ाई का बंटाधार

लम्बे से तृतीय श्रेणी शिक्षकों के तबादले नहीं होने के साथ नई भर्ती के शिक्षकों को गांवों में पोस्टिंग देने से शहरी क्षेत्र के स्कूलों में शिक्षकों का संकट, शहरी क्षेत्र की सरकारी स्कूलों में लगातार घट रहा नामांकन, कुछ स्कूलें ऐसी, जहां एक भी शिक्षक नहीं, हर नए सत्र में प्रतिनियुक्ति पर लगाए जाते हैं शिक्षक

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CG News: 65 लाख का स्कूल दो साल में खंडहर, प्राचार्य सस्पेंड, सरपंच पर होगी FIR(photo-patrika)

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नागौर. प्रदेश में शहरी क्षेत्र की सरकारी स्कूलों में रिक्त पड़े तृतीय श्रेणी शिक्षकों के पद भरने के लिए न तो कांग्रेस की सरकार ने विचार किया और न ही अब भजनलाल सरकार कर रही है। हालात यह है कि वर्ष 2018 के बाद यानी पिछले सात साल में न तो तृतीय श्रेणी शिक्षकों की नियुक्ति की गई और न ही ट्रांसफर करके पद भरे गए। ऐसे में संस्था प्रधानों के लिए शिक्षण व्यवस्था को सुचारू रखना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। शहरी क्षेत्र की सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ाना तो दूर, जो है उसे बनाए रखना भी मुश्किल हो रहा है। नागौर शहर के राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय लौहारपुरा में 13 में से 10 पद खाली हैं, ऐसे में इस साल नवीं व दसवीं की 30 में से 20 छात्राओं ने टीसी मांग ली है, मात्र 10 छात्राएं बची हैं। नागौर शहर के हनुमान बाग के राजकीय प्राथमिक विद्यालय संख्या 9 में पिछले 6 वर्ष से एक भी शिक्षक नहीं है। यहां 50 बच्चों का नामांकन है और अधिकारी हर बार प्रतिनियुक्ति पर शिक्षक लगाकर पढ़ाई करवा रहे हैं। यही हाल शहर की अन्य स्कूलों के साथ प्रदेशभर में है।

गौरतलब है कि सरकार समय-समय पर तृतीय श्रेणी शिक्षकों की भर्ती तो आयोजित कर रही है, लेकिन नव चयनित शिक्षकों को नियुक्ति देते समय शहरी क्षेत्र की स्कूलों में पदस्थापन देने की बजाए केवल ग्रामीण क्षेत्र में ही पोस्टिंग दी जाती है। वहीं दूसरी तरफ पिछले सात साल से तृतीय श्रेणी शिक्षकों के तबादले भी नहीं किए गए हैं, ऐसे में शहरी क्षेत्र की सरकारी स्कूलों में 70 फीसदी पद रिक्त पड़े हैं।

नागौर शहर की स्कूलों के हाल बुरे

नागौर शहर में संचालित प्रारंभिक शिक्षा की आठवीं तक की सरकारी स्कूलों में आधे से ज्यादा पद रिक्त चल रहे हैं। संबंधित संस्था से मिली जानकारी के अनुसार ज्यादातर स्कूलों में तीन या तीन से ज्यादा पद खाली हैं। इसके साथ शहर की प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों के सभी पुरुष शिक्षक बीएलओ की भूमिका निभा रहे हैं। जिन्हें सत्र में तीन से चार बार 15-15 दिन के लिए आधे दिन के लिए विद्यालय से फ्री करके मतदाता सूची अपटेड करने के काम में लगा दिया जाता है।

नामांकन घट गया, संस्था प्रधान परेशान

सरकार एक ओर संस्था प्रधानों पर सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ाने का दबाव बना रही है, वहीं तृतीय श्रेणी शिक्षकों के पद रिक्त होने से पिछले दो-तीन सालों में नामांकन बढऩे की बजाए घट रहा है। जिला मुख्यालय की कई स्कूलें ऐसी हैं, जिनमें नामांकन आधा रह गया है। ऐसे में संस्था प्रधान परेशान हैं। पिछले सालों में सरकार ने कम नामांकन वाली कई स्कूलों को बंद/मर्ज भी कर दिया है।

नागौर शहर के स्कूलों की स्थिति

- हनुमान बाग सीबीईओ कार्यालय के पीछे की स्कूल राजकीय प्राथमिक विद्यालय संख्या 9 पिछले 6 वर्ष से शिक्षक विहिन है। यहां पर हर बार प्रतिनियुक्ति पर शिक्षक लगाकर काम चलाया जा रहा है।

- राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय महाराणा प्रताप कॉलोनी नागौर में ढाई सौ से ज्यादा बच्चों का नामांकन है, लेकिन यहां 11 में से छह पद रिक्त हैं।

- राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय संख्या-10 बड़ली में 8 में से 3 पद खाली हैं।

- उच्च प्राथमिक विद्यालय खत्रीपुरा में करीब 300 बच्चों का नामांकन है, लेकिन यहां चार पद खाली हैं। इससे शिक्षण व्यवस्था प्रभावित हो रही है।

- संत बलरामदास उच्च प्राथमिक विद्यालय संख्या 2 में तृतीय श्रेणी शिक्षकों के चार पद रिक्त हैं।

- राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय लौहारपुरा में 13 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से केवल तीन भरे हुए हैं। तृतीय श्रेणी शिक्षकों के चार में से दो पद रिक्त हैं, जबकि द्वितीय श्रेणी के छह में से 5 पद खाली हैं। एक पद जो भरा है, उसी शिक्षक के पास प्रिंसिपल का चार्ज है।

6डी या तबादले हो तो भरे पद

शिक्षकों एवं संस्था प्रधानों का कहना है कि शहरी क्षेत्र की सरकारी स्कूलों में तृतीय श्रेणी शिक्षकों के पद या तो 6डी से भरे जाते हैं या फिर तबादलों से। क्योंकि तृतीय श्रेणी शिक्षकों की नियुक्ति जिला परिषदों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्र में दी जाती है। प्रदेश में वर्ष 2018 के बाद तृतीय श्रेणी शिक्षकों के तबादले ही नहीं हुए। और न ही 6डी की प्रक्रिया पूरी हुई। कभी-कभार स्कूलों में अधिशेष शिक्षक हुए तो भी उन्हें शहरों की बजाए ग्रामीण क्षेत्र के ही स्कूलों में लगाया गया।

बालिकाओं को रोकना मुश्किल

हमारे विद्यालय में 13 शिक्षकों के पद स्वीकृत हैं, लेकिन मात्र तीन शिक्षक लगे हुए हैं। दो तृतीय श्रेणी शिक्षक तथा एक मैं द्वितीय श्रेणी का हूं। मेरे पास प्रिंसिपल का चार्ज है, इसलिए शिक्षक, बाबू व प्रिंसिपल तीनों का काम मुझे ही करना पड़ रहा है। नवीं व दसवीं में 30 बालिकाएं थी, जिनमें से 20 दूसरी स्कूल में जा चुकी है। बालिकाओं को रोकना मुश्किल हो रहा है।

- अब्दुला, कार्यवहक प्रधानाचार्य, राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय, लौहारपुरा

बिना शिक्षकों के खाली हो रही सरकारी स्कूलें

शहरी क्षेत्र की सरकारी स्कूलों, खासकर प्रारंभिक शिक्षा की स्कूलों में लम्बे समय से रिक्त तृतीय श्रेणी शिक्षकों के पदों पर न नियुक्ति दी जा रही है और न ही सरकार तबादले कर रही है। ऐसे में शहरी क्षेत्र की स्कूलों में नामांकन तेजी से घट रहा है। हमने ढाई महीने पहले पैदल जयपुर जाकर मंत्री से वार्ता की थी, जिसमें मंत्री ने जल्द ही तबादले करने का आश्वासन दिया, लेकिन अब तक नहीं किए। जल्द ही बड़ा आंदोलन करेंगे।

- अर्जुनराम लोमरोड़, जिलाध्यक्ष, शिक्षक संघ शेखावत, नागौर