
Vedic chants of Vedic mantras with the establishment of the urn with t
नागौर. मां शाकम्भरी को आदिशक्ति दुर्गा का अवतार माना जाता है। माता का मंदिर सांभर कस्बे में स्थित है। करीब ढाई हजार साल पुराना मंदिर बताया जाता है। शाकम्भरी माता चौहान वंश की कुलदेवी होने के साथ ही माता का दर्शन करने के लिए अन्य समाज के लोग भी पहुंचते हैं। विशेषकर नवरात्रि के दिनों में लगातार नौ दिनों तक यहां पर मेला सरीखा दृश्य लगा रहता है। दुर्गा सप्तशती के पाठ के साथ हो रहे विविध धार्मिक कार्यक्रमों से पूरा माहौल नौ दिनों तक नवरात्रिमय बना बना रहता है। मन्दिर में ***** सुदी अष्टमी को मेला होता है। शारदीय नवरात्र में माता के दर्शन करने के लिए देश के विभिन्न जिलों से लोग यहां पर पहुंचते हैं। प्रतिमा के संबंध में मान्यता है कि देवी की यह मूर्ति भूमि से स्वत: प्रकट हुई थी। विभिन्न लेखों के अनुसार, चौहान वंश के शासक वासुदेव ने सातवीं सदी में सांभर झील और सांभर नगर की स्थापना शाकम्भरी माता के मन्दिर के पास की थी। किदवंती है कि शाकम्भरी का अपभ्रंश सांभर है। महाभारत, शिव पुराण और मार्कण्डेय पुराण जैसे धर्म ग्रंथों में माता शाकम्भरी का उल्लेख मिलता है। इसके अनुसार, माता ने 100 साल तक इस निर्जन स्थान पर जहां बारिश भी नहीं होती थी वहां तपस्या की थी। इस तपस्या के दौरान माता ने केवल महीने में एक बार शाक यानि वनस्पति का सेवन किया था। इस निर्जन स्थान पर शाक की उत्पत्ति माता के तप के कारण हुई थी। शाक पर आधारित तपस्या के कारण शाकम्भरी नाम पड़ा। इस तपस्या के बाद यह स्थान हराभरा हो गया। भूगर्भ में बहुमूल्य धातुओं की प्रधानता होने साथ ही यहां इस प्राकृतिक सम्पदा को लेकर झगड़े शुरू हो गए। इस पर माता ने यहां बहुमूल्य संपदा को नमक में बदल दिया। कहा जाता है कि पौराणिक कथा में उल्लेख है कि यहां राजा ययाति ने शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी और शर्मिष्ठा के साथ विवाह किया था। यह केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि शक्तिपीठ के रूप में इसकी मान्यता है। यहां पर आने वाले माता के समक्ष अपनी मनोकापना पूर्ति के लिए नवरात्र में नौ दिनों तक विविध धार्मिक कार्यक्रमों को करते रहते हैं।
Published on:
15 Oct 2018 10:10 am
बड़ी खबरें
View Allनागौर
राजस्थान न्यूज़
ट्रेंडिंग
