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बरसों पहले नागौर में दो सिद्धों का चमत्कार रहा चर्चा का विषय

राजस्थान के नागौर में जन्मे (जेठाराम) महर्षि जनार्दनगिरी महाराज ने ऋषिकेश के कैलाश आश्रम में किया शास्त्रों का गहन अध्ययन...

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Nagaur Hindi news

Janardan Giri Maharaj

नागौर. राजस्थान के नागौर में जन्मे जेठाराम ऋषिकेश के कैलाश आश्रम पहुंकर शास्त्रों का गहन अध्ययन करने के बाद स्वामी जनार्दन गिरी बने। विक्रम संवत 1967 फाल्गुन कृष्ण एकादशी को महामंडलेश्वर धनराज गिरी के ब्रह्मलीन हो जाने पर उस रिक्त पद पर उनके सैकड़ों यति शिष्यों में से सर्वाधिक योग्य स्वामी जनार्दन गिरी को सभी सन्तों ने ब्रह्मविद्यापीठ कैलाश आश्रम का पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर बनाया। वे वहां ब्रह्मविद्या के प्रचार कार्य में संलग्न हो गए।
नत मस्तक हो गए फकीर
जानकारी के अनुसार एक बार गुरु पूर्णिमा के दिन प्रतापसागर के पास स्थित श्री बड़लेश्वर महादेव बगीची में भण्डारा का आयोजन किया गया। देव योग से एक फकीर अपना खप्पर लेकर आया और प्रसादी की याचना की। स्वामी ने शिष्य को खीर का पात्र देकर भेजा। शिष्य ने कई पात्र लाकर खीर डाली लेकिन खप्पर खाली का खाली। जब स्वामी को इस बात की जानकारी मिली तो वे स्वयं खीर का पात्र लेकर गए और खप्पर में खीर डालने लगे। काफी समय बीत जाने पर भी न तो खप्पर भरा और न ही स्वामी के हाथ का खीर का पात्र ही खाली हुआ। आखिर फकीर स्वामी के चमत्कार के आगे नतमस्तक होकर उनके चरणों पर गिर पड़ा। दो सिद्धों का ये चमत्कार जन चर्चा का विषय बन गया।
कैलाशपीठ का स्वर्णिम काल
स्वामी जनार्दन गिरी का आचार्यत्व काल कैलाशपीठ का स्वर्णिम काल कहा जा सकता है। उनकी छत्रछाया में अनेक दिव्य विभूतियों का प्रादुर्भाव हुआ। अनेक सन्तों ने आपसे ब्रह्म विद्या एवं सन्यास शिक्षा प्राप्त की। महामंडलेश्वर स्वामी विष्णु नृसिंह गिरी जैसे दक्षिण मूर्ति मठ के प्रकाण्ड विद्वान संस्थापक महामंडलेश्वर स्वामी महादेवानन्द गिरी जैसे प्रतिभावान वीतराग संत और हिमालय सम्राट स्वामी तपोवन महाराज जैसे सन्यासी उनकी ही देन है। अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चिन्मय मिशन के संस्थापक चिन्मयानन्द सरस्वती जैसे सन्त आध्यात्म साधना कर प्रसिद्ध हो गए।
हाथी पर बैठाकर ले गए हरिद्वार
एक बार आश्रम के व्यवस्थापक एवं पीठाधीश्वर के बीच सामंजस्य न होने के कारण उन्होंने पद त्याग कर दिया। पदत्याग के समाचार फैलते ही निरंजनी अखाड़ों के महंत इनको हाथी पर बैठाकर हरिद्वार ले गए और निरंजनी अखाड़े के आचार्य पद पर बिठाया। तीन साल पश्चात कैलाश आश्रम के समस्त संत स्वामी के शरणागत हुए। उन्होंने उनके अनुरोध को स्वीकार कर लिया। उन्हें कैलाश आश्रम में पुन: पीठाधीश्वर पद पर बिठाया गया। उनके लिए न तो पद त्याग पर विषाद हुआ था और न ही पुन: पद प्राप्ति पर हर्ष ही।
स्मृति में चल रहा स्कूल
प्रथम और द्वीतीय समय मिलाकर 13 वर्ष तक आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी जनार्दन गिरी ने कैलाश आश्रम की पीठाचार्य पदभार सम्भाला। वैशाख शुक्ल 6 विक्रम संवत 1985 में वे ब्रह्मलीन हो गए। उनकी स्मृति में आज भी नागौर शहर में 1983 में स्थापित श्री महर्षि जनार्दन गिरी पुष्टिकर माध्यमिक विद्यालय संचालित हो रहा है।