
नागदा (उज्जैन)। रूस और यूक्रेन में युद्ध के 9 माह हो गए हैं, इसका असर दुनियाभर में पड़ रहा है। बेरोजगारी और महंगाई की मार झेल रहे उज्जैन जिले के नागदा में भी लोगों की मुश्किल भरे हो सकते हैं। ग्रेसिम उद्योग प्रबंधन ने वैश्विक मंदी का हवाला देते हुए एक दिसंबर से मजदूरों को ले-ऑफ देने की घोषणा की है। इससे कर्मचारियों के सामने बेरोजगारी का टेंशन गहरा गया है।
नागदा में आर्थिक रीड की हड्डी माने जाने वाले ग्रेसिम उद्योग प्रबंधन ने वैश्विक मंदी का हवाला देते हुए 1 दिसंबर यानी गुरुवार से मजदूरों को ले-ऑफ देने की घोषणा कर दी है। उद्योग प्रबंधन द्वारा उठाए इस कदम से जहां श्रमिकों को रोजाना काम नहीं मिल सकेगा, वहीं इसका बुरा असर शहर के व्यापार-व्यवसाय पर भी पड़ेगा। हालांकि उद्योग प्रबंधकों ने भरोसा दिया है निकट भविष्य में ले-ऑफ का ठेका श्रमिकों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। उन्हें पूर्वानुसार ही काम पर बुलाया जाएगा। बता दे कि उद्योग में डेढ़ हजार के करीब स्थायी श्रमिक कार्य करते है। वहीं ठेका श्रमिकों की संख्या सात सौ के करीब है। मंगलवार को ले-ऑफ की जानकारी उद्योग प्रबंधन ने नोटिस बोर्ड पर चस्पा मजदूरों को दे दी गई है।
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श्रम कानून के मुताबिक विपरित परिस्थितियों में कोई भी उद्योग मजदूरों को 45 दिन तक ले-ऑफ दिया जा सकता है। ले-ऑफ कानून मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा के लिए बनाया गया है, ताकि कोई भी उद्योग प्रबंधन मजदूरों को किसी भी मजबूरी का हवाला देकर उन्हे कार्यमुक्त नही कर सकता है। ले-ऑफ के दौरान स्थाई श्रमिकों को बिना कार्य के भी 50 प्रतिशत वेतन एवं अन्य हित लाभ दिए जाने का प्रावधान है। हालांकि ग्रेसिम उद्योग ने ले-ऑफ के दौरान श्रमिकों को शेडयूल के मुताबिक कार्य पर बुलाने की बात कही है। नोटिस में यह भी जिक्र है कि जिन श्रमिकों को कार्य पर बुलाया जाएगा और उपस्थित होते है तो उन्हे कार्य दिवस का वेतन एवं अन्य भत्ते व हितलाभ पूर्वानुसार ही दिए जाएंगे।
ले-ऑफ अवधी के दौरान सभी मजदूरों को आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य, दुर्घटना बीमा आदि का लाभ मिलेगा, लेकिन श्रमिक को जिस दिन कार्य पर नहीं बुलाया गया उस दिन का आधा वेतन और महंगाई भत्ते की 50 प्रतिशत राशि ही दी जाएगी। अगर कोई श्रमिक कार्य पर बुलाने के बावजूद उपस्थित नहीं हुआ तो उसे महंगाई भत्ता एवं वेतन नहीं मिलेगा। चिंता की बात यह है कि अगर ले-ऑफ अवधि 45 दिन के बाद भी हालात नहीं सुधरे तो श्रमिकों के पास बेकारी के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा। हालांकि ट्रेड यूनियन नेता एवं श्रम संगठन एचएमएस के प्रधानमंत्री जोधसिंह राठौर ने मजदूरों को भरोसा दिया है कि घबराने की जरूरत नहीं है। ट्रेड यूनियन नेताओं की मैंनेजमेंट के साथ लगातार चर्चाओं का दौर जारी है। मंदी का दौर लंबा खींचा तो भी मजदूरों को बेरोजगार नहीं होने दिया जाएगा। कोई बीच का रास्ता निकाल कर उनके हितों की रक्षा की जाएगी।
4 मशीनों को करना पड़ा है बंद
ग्रेसिम उद्योग में फायबर उत्पादन का कार्य 11 मशीनों पर किया जाता है, लेकिन वर्तमान में चार मशीनों को बंद किया गया है। मशीन क्रमांक 08-09 को 04 जुलाई 2022 को ही बंद कर दी गई थी। शेष दो मषीन क्रमांक 06 को 17 सितबंर एवं 11 नबंर मशीन को 01 अक्टूबर को शट-डाउन किया गया था।
मिल प्रबंधन का कहना है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के साथ ही विश्व पटल पर उनके माल की मांग में गिरावट आ गई थी। जिसके कारण चार मशीनों को बंद कर उत्पादन प्रक्रिया को कम करना पड़ा था। फिलहाल सात मशीनों पर फाइबर का प्रोड्क्शन जारी है। मांग नहीं होने के कारण ज्यादातर माल को स्टोरेज करना पड़ रहा है। माल नहीं बिकने के कारण उनके सारे गोडाउन फुल हो चुके है। आशंका जताई गई है कि युद्ध लंबा खींचा तो आने वाले दिनों में उत्पादन प्रक्रिया को पूरी तरह बंद करना पड़ सकता है, जिसका सीधा असर श्रमिकों एवं शहर के जन जीवन पर पड़ेगा।
Updated on:
30 Nov 2022 04:18 pm
Published on:
30 Nov 2022 04:07 pm
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