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ज्योतिष और द्वारका शारदा पीठ के नए शंकराचार्य किशोरावस्था में बन गए थे संन्यासी

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के ब्रह्मलीन होने के बाद उनकी वसीयत व उनके आदेशानुसार स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज को ज्योतिष पीठ का एवं स्वामी सदानंद सरस्वती महाराज को द्वारका शारदापीठ का शंकराचार्य बनाया गया है।

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नरसिंहपुर. शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के ब्रह्मलीन होने के बाद उनकी वसीयत व उनके आदेशानुसार स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज को ज्योतिष पीठ का एवं स्वामी सदानंद सरस्वती महाराज को द्वारका शारदापीठ का शंकराचार्य बनाया गया है। दोनों ही शंकराचार्य किशोरावस्था में ही शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज की शरण में आ गए थे और सनातनी धर्म शास्त्रों का गहन ज्ञान प्राप्त करने बाद समय आने पर उनके उत्तराधिकारी बने।

उमाशंकर से शंकराचार्य बने अविमुक्तेश्वरानंद १६ साल में बन गए थे संन्यासी
ज्योतिष पीठ के नए शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का बचपन का नाम उमाशंकर पांडेय था। उनका जन्म १५ अगस्त १९५९ को हुआ था। वे उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के अंतर्गत पट्टी पुलिस थानांतर्गत बाभन गांव निवासी रामसुमेर पांडे व अनारा देवी के पुत्र हैं। पिता रामसुमेर पुरोहिताई का काम करते थे। उमाशंकर पांच भाई बहन थे जिनमें से एक भाई अब इस संसार में नहीं हैं अविमुक्तेश्वरानंद से दो छोटी बहनें हैं। उमाशंकर ने १६ वर्ष की उम्र में संन्यास ग्रहण कर लिया था और वे ब्रह्मचारी आनंद स्वरूप कहलाए। वे बचपन में करपात्री महाराज के सान्निध्य में रहे। बाद में गुजरात चले गए और वहां ब्रह्मचारी हरिकेतन महाराज के सान्निध्य में काफी समय रहे। वर्ष १९९९ में वे शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की शरण में पहुंचे। इसके बाद शंकराचार्य के निर्देश पर काशी चले गए जहां कुछ समय विद्याध्ययन किया। २००३ में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरसस्वती महाराज ने उन्हें ब्रह्मदंड संन्यास दीक्षा देकर दंडी स्वामी का वेश धारण कराया। जिसके बाद ब्रह्मचारी आनंद स्वरूप दंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद बन गए।
कई भाषाओं के ज्ञाता हैं स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज की शिक्षा दीक्षा बीएचयू और संपूर्णानंद विवि से हुई है। यहां से उन्होंने शास्त्री, आचार्य की व पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। उन्हें हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, गुजराती, मराठी,भोजपुरी, अवधिया का अच्छा ज्ञान है।
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१२ साल की उम्र में शंकराचार्य की शरण में पहुंचे रमेश बन गए स्वामी सदानंद सरस्वती
द्वारका शारदापीठ के नए शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती महाराज का जन्म गोटेगांव तहसील के अंतर्गत करकबेल के पास बरगी गांव में 1958 में हुआ था। उनका बचपन का नाम रमेश अवस्थी था। वे परिवार में सबसे छोटे थे। इनके पहले छह बड़े भाई-बहन थे। पिता पं. विद्याधर अवस्थी प्रसिद्ध वैद्य व किसान व माता मानकुंवरबाई गृहिणी थीं। 12 साल की उम्र में जब वे आठवीं कक्षा में अध्ययनरत थे तो एक दिन उनका सहपाठी से मामूली झगड़ा हो गया। घर पर माता-पिता की डांट न पड़े, इस डर से रमेश अवस्थी साइकिल से सीधे परमहंसी गंगा आश्रम पहुंच गए। यहां स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज की शरण में आ गए और फिर आठवीं कक्षा से स्कूली पढ़ाई छोड़ दी व समय आने पर शंकराचार्य बन गए। 1970 में झोतेश्वर पहुंचे रमेश अवस्थी ने संस्कृत अध्ययन शुरू किया। वर्ष 1975 से 1982 तक त्रिपुर सुंदरी मंदिर का निर्माण होने तक यहां रहे। धार्मिक शिक्षा के लिए स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने उन्हें बनारस भेजा। जहां उन्होंने करीब 8 साल तक वेद, पुराण व अन्य धर्मग्रंथों का अध्ययन किया। वर्ष 1990 में गुरू के आदेश पर द्वारका पहुंचे। वर्ष 1995 में उन्हें शंकराचार्य का प्रतिनिधि नियुक्त किया गया। स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने वर्ष 2003 में रमेश अवस्थी को दंड दीक्षा के लिए बनारस भेजा। दंड दीक्षा के साथ उनका नामकरण सदानंद सरस्वती हो गया और वे दंडी स्वामी कहलाए। शंकराचार्य सदानंद सरस्वती, हिंदी, संस्कृत, गुजराती व अंग्रेजी भाषा में अब तक करीब एक दर्जन किताब लिख चुके हैं।
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