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इस तालाब में है पारस पत्थर जो लोहा को बना देता है सोना

पुरातत्व विभाग की अनदेखी के चलते अस्तित्व खो रहा चौरागढ़ का किला, कुछ हिस्सा गिरा, कुछ गिरने की कगार पर

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Paras stone in this pond

Paras stone in this pond

नरसिंहपुर। कभी राजगौड़ वंश की समृद्धि, शक्ति और वैभव का प्रतीक रहा चौगान या चौरागढ़ का किला अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। इतना ही नहीं इस किले में एक पारस पत्थर वाला तालाब भी है, जिस पत्थर से लोहा को स्पर्श करा दिया तो वह भी सोना बन जाएगा। बावजूद इसके यह बेशकीमती ऐतिहासिक धरोहर उपेक्षा का शिकार है। कुछ समय पूर्व शासन ने इसके जीर्णोद्धार के लिए करीब ५० लाख रुपये का प्रोजेक्ट तैयार किया था पर अभी तक इस पर एक रुपया खर्च नहीं किया गया। इसके अवशेष इसकी दुर्दशा बयान करते नजर आते हैं।

जिला मुख्यालय से करीब ५० किमी दूर सघन वनों के बीच ऊंचे पहाड़ पर बना यह किला पुरातत्व विभाग के अधीन एक संरक्षित किला है, लेकिन इसका संरक्षण नहीं किया जा रहा है करीब ५ किमी के क्षेत्र में विस्तृत चौगान के किला के अधिकांश हिस्से समय की मार से मिट्टी में मिल गए हैं और कुछ ही हिस्से खंडहरों के रूप में इसकी ऐतिहासिकता की कहानी सुनाते प्रतीत होते हैं।

पारस पत्थर वाला तालाब
ऐसी किवदंती है कि किला के अंदर बने तालाब में एक पारस पत्थर है जिसके संपर्क में आने पर लोहा सोना बन जाता है। अंग्रेजों ने इसकी तलाश में एक हाथी को लोहे की जंजीर बांध कर तालाब में उतारा था जिसकी दो कड़ी सोने की हो गई थीं पर पारस पत्थर हाथ नहीं लगा था। यह तालाब उपेक्षा का शिकार है। किला के अंदर यह एकमात्र बड़ा जलस्रोत है पर इसका पानी अब हाथ धोने लायक भी नहीं रहा।

केवल बोर्ड लगाकर भूल गया पुरातत्व विभाग
यह किला भले ही पुरातत्व विभाग के अधीन संरक्षित है। किले के प्रवेश द्वार पर दो बोर्ड जरूर लगे हैं पर न तो यहां कोई केयर टेकर है और न चौकीदार जिसकी वजह से असामाजिक तत्व यहां किला के अंदर से सागौन के वृक्ष काटने के अलावा धन की तलाश में कई जगह खुदाई कर किला को क्षति पहुंचा रहे हैं।

इनका कहना है
चौगान के ऐतिहासिक किला के जीर्णोद्धार एवं उसके विकास के लिए रूपरेखा तैयार की जा रही है। ऐतिहासिक धरोहर का विकास किया जाएगा।
अभय वर्मा, कलेक्टर